उमर खालिद को मिली अंतरिम जमानत, दिल्ली दंगे का है आरोपी
उन्हें दिल्ली से बाहर न जाने, सिर्फ घर और शादी से जुड़ी जगहों पर ही रहने और किसी भी तरह की सार्वजनिक बयानबाजी या सोशल मीडिया एक्टिविटी से दूर रहने जैसी शर्तें लगाई गई हैं।
दिल्ली दंगे मामले में आरोपी उमर खालिद को कड़कड़डूमा कोर्ट ने उनकी बहन की शादी में शामिल होने के लिए अंतरिम जमानत प्रदान की है। यह राहत उनकी पारिवारिक प्रतिबद्धताओं को ध्यान में रखते हुए दी गई है।
खालिद की तरफ से दायर जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने कहा कि सामाजिक और पारिवारिक आयोजनों में शामिल होना व्यक्तिगत अधिकार है, जिसे ध्यान में रखते हुए इस आदेश का पालन किया जाएगा। अदालत ने उमर खालिद को सीमित अवधि के लिए जमानत देने का फैसला किया है, जिसमें वह शादी के कार्यक्रम में भाग ले सकेंगे।
अदालत का आदेश क्या है?
दिल्ली की कड़कड़डूमा कोर्ट ने उत्तर–पूर्वी दिल्ली दंगा मामले में आरोपी और पूर्व जेएनयू छात्र नेता उमर खालिद को उनकी बहन की शादी में शामिल होने के लिए 16 दिसंबर से 29 दिसंबर तक के लिए अंतरिम जमानत दी है।
जमानत की शर्तें और पाबंदियां
अदालत ने कहा है कि अंतरिम जमानत अवधि के दौरान उमर खालिद कोई भी ऐसा कदम नहीं उठाएंगे जिससे गवाहों या सबूतों पर असर पड़े। उन्हें दिल्ली से बाहर न जाने, सिर्फ घर और शादी से जुड़ी जगहों पर ही रहने और किसी भी तरह की सार्वजनिक बयानबाजी या सोशल मीडिया एक्टिविटी से दूर रहने जैसी शर्तें लगाई गई हैं।
इसके अलावा अदालत ने साफ किया है कि वह किसी गवाह, सह–आरोपी या जांच से जुड़े किसी व्यक्ति से संपर्क नहीं कर सकते। अंतरिम अवधि खत्म होने पर उन्हें तय तारीख 29 दिसंबर को दोबारा सरेंडर करना अनिवार्य होगा।
मामला क्या है और आरोप कौन–कौन से हैं?
यह केस फरवरी 2020 के उत्तर–पूर्वी दिल्ली दंगों की तथाकथित ‘बड़ी साजिश’ से जुड़ा है, जिसमें पुलिस ने यूएपीए सहित कई गंभीर धाराएं लगाई हैं। आरोप है कि सीएए–एनआरसी विरोध प्रदर्शनों की आड़ में हिंसा की साजिश रची गई, जिसमें 50 से ज्यादा लोगों की मौत और सैकड़ों के घायल होने के साथ बड़ी संपत्ति को नुकसान पहुंचा।
मानवीय आधार पर अंतरिम जमानत का महत्व
भारतीय न्याय व्यवस्था में हत्या, आतंकवाद या यूएपीए जैसे गंभीर मामलों में भी अदालतें शादी, अंतिम संस्कार या गंभीर बीमारी जैसी परिस्थितियों में सीमित अवधि की अंतरिम जमानत देती रही हैं। इसके पीछे विचार यह है कि अंतिम निर्णय आने से पहले किसी व्यक्ति के बुनियादी मानवीय और पारिवारिक अधिकारों को पूरी तरह खत्म न किया जाए।
What's Your Reaction?