है नदियों की हरियाली…सदियों पुराना इतिहास, आखिर क्यों सोशल मीडिया से लेकर सड़कों तक गूंजी अरावली बचाओ की आवाज
सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले से अरावली पहाड़ियों को लेकर बहस छिड़ गई है। फैसले में कहा गया है कि 100 मीटर से कम ऊंची पहाड़ियों को अपने आप जंगल नहीं माना जाएगा। पर्यावरणविदों को डर है कि इससे अरावली रेंज की सुरक्षा कमजोर हो सकती है।
सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले ने अरावली पर्वतमाला को लेकर पर्यावरण से जुड़े विशेषज्ञों और आम नागरिकों के बीच नई बहस को जन्म दे दिया है। इस निर्णय को ‘100 मीटर नियम’ के नाम से देखा जा रहा है। फैसले में स्पष्ट किया गया है कि अरावली क्षेत्र में 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली पहाड़ियों को ‘वन भूमि’ की श्रेणी में शामिल नहीं किया जा सकता।
इस निर्णय पर ‘सेव अरावली ट्रस्ट’ से जुड़े विशेषज्ञ विजय बेनज्वाल और नीरज श्रीवास्तव ने गहरी चिंता व्यक्त की है। उनका कहना है कि हरियाणा में अरावली की केवल दो ही पहाड़ियां ऐसी हैं जिनकी ऊंचाई 100 मीटर से अधिक है-एक तोसाम (भिवानी ज़िला) और दूसरी मधोपुरा (महेंद्रगढ़ ज़िला)। ऐसे में आशंका है कि शेष अरावली क्षेत्र अब कानूनी संरक्षण के दायरे से बाहर हो सकता है, जिससे पर्यावरणीय संतुलन पर गंभीर असर पड़ने की संभावना है। इस मुद्दे को लेकर विस्तृत जानकारी आपको इस लेख में मिल जाएगी। जिसमें इस मुद्दे से जुड़ी हर जानकारी को सटीकता से प्रस्तुत किया गया है।
क्या कहता है अरावली का इतिहास ?
जब न गंगा अस्तित्व में थी, न हिमालय का जन्म हुआ था और महाद्वीप अभी बस आकार ही ले रहे थे, उसी दौर में अरावली पर्वतमाला का निर्माण हुआ। पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत हो रही थी, जिसके साथ विकसित हुई यह पर्वत श्रृंखला आज करीब 250 करोड़ साल पुरानी मानी जाती है। इतनी प्राचीन धरोहर की ऊंचाई और स्वरूप पर सवाल उठना पर्यावरणविदों के लिए चिंता का विषय बन गया है। भारत की धरती पर फैली अरावली पर्वतमाला सिर्फ एक भौगोलिक संरचना नहीं, बल्कि विश्व की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में गिनी जाती है। यह राजस्थान, हरियाणा, गुजरात और दिल्ली से होकर लगभग 670 किलोमीटर तक फैली हुई है और इसका इतिहास पृथ्वी के आदिकाल से जुड़ा हुआ है।
वैज्ञानिकों के मुताबिक, अरावली का निर्माण प्रोटेरोज़ोइक काल में हुआ था, जिसकी शुरुआत लगभग 250 से 350 करोड़ वर्ष पहले मानी जाती है। पर्यावरण और जलवायु संतुलन में अरावली की भूमिका बेहद अहम है। यह पर्वतमाला थार रेगिस्तान के विस्तार को रोकने में प्राकृतिक दीवार की तरह काम करती है और उत्तर भारत के पारिस्थितिक तंत्र को संतुलित बनाए रखती है। अरावली दक्षिण-पश्चिम दिशा में गुजरात के पालनपुर से लेकर दिल्ली तक फैली है। इसकी औसत ऊंचाई 300 से 900 मीटर के बीच है, जबकि इसकी सबसे ऊंची चोटी गुरु शिखर है, जिसकी ऊंचाई 1,722 मीटर है। गुरु शिखर राजस्थान के एकमात्र हिल स्टेशन माउंट आबू में स्थित है।
अरावली पर्वतमाला पर क्यों हो रही चर्चा?
‘ग्रेट ग्रीन वॉल ऑफ अरावली’ के नाम से जानी जाने वाली यह पर्वतमाला न सिर्फ भारत, बल्कि दुनिया की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखलाओं में शामिल है। हाल ही में यह एक बार फिर सुर्खियों में तब आई, जब सुप्रीम कोर्ट ने अरावली को लेकर उसकी कानूनी व्याख्या स्पष्ट की। अदालत के फैसले के मुताबिक अब केवल वे पहाड़ियां ही अरावली की श्रेणी में मानी जाएंगी, जिनकी ऊंचाई 100 मीटर से अधिक है।
इसका सीधा असर यह होगा कि पहले जिन छोटी पहाड़ियों, वन क्षेत्रों और प्राकृतिक संरचनाओं को अरावली का हिस्सा समझा जाता था, वे अब इस परिभाषा में शामिल नहीं होंगी। हालांकि कोर्ट ने यह भी साफ किया है कि भूमि की पहचान तय करते समय केवल ऊंचाई ही एकमात्र आधार नहीं होगी, बल्कि सरकारी रिकॉर्ड, अधिसूचनाएं और जमीन की वास्तविक स्थिति को भी ध्यान में रखा जाएगा।
अरावली को लेकर विवाद की क्या है जड़?
सवाल यह नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कोई खामी है या नहीं। असली चिंता इस फैसले के संभावित उपयोग को लेकर है। अदालत का निर्णय मूल रूप से कानूनी स्पष्टता प्रदान करता है, लेकिन इसके बाद जमीन से जुड़े फैसलों की नैतिक जिम्मेदारी अब राज्य सरकारों और स्थानीय प्रशासन पर आ जाती है।
इस आदेश के चलते उन इलाकों को, जिन्हें अब तक जंगल या संरक्षित क्षेत्र माना जाता था, भविष्य में राजस्व भूमि या गैर-वन क्षेत्र के रूप में भी वर्गीकृत किया जा सकता है। ऐसे में यह देखना अहम होगा कि राज्य सरकारें जमीन के रिकॉर्ड तय करने के लिए कौन-से मानक अपनाती हैं और पर्यावरणीय मंजूरी की प्रक्रिया कितनी सख्ती से लागू की जाती है।
सोशल मीडिया पर गूंजा 'Save Aravali'
पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर ‘सेव अरावली’ अभियान तेजी से चर्चा में बना हुआ है। बड़ी संख्या में लोग पोस्ट और संदेशों के ज़रिये अरावली पर्वतमाला के संरक्षण की अपील कर रहे हैं। उपयोगकर्ता नई कानूनी परिभाषा लागू होने के बाद संभावित पर्यावरणीय नुकसान को लेकर अपनी चिंताएं भी साझा कर रहे हैं।
इन पोस्ट्स को हजारों लाइक्स, शेयर और टिप्पणियां मिल रही हैं, जिससे यह साफ जाहिर होता है कि यह मुद्दा आम लोगों के बीच गहरी पकड़ बना रहा है। हर दिन नए लोग इस ऑनलाइन मुहिम से जुड़ रहे हैं और ‘सेव अरावली’ एक लगातार मजबूत होता जन-अभियान बनता जा रहा है।
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