नमक और चीनी में मिली प्लास्टिक!, आखिर पहुंची कैसे?
दरअसल माइक्रोप्लास्टिक, प्लास्टिक के महीन कण होते हैं, जिनका साइज 5 मिलीमीटर से भी कम होता है, ये धूल के कणों जितने महीन भी हो सकते हैं, हमारे आस-पास प्लास्टिक की जो चीजें दिखती हैं
5.23 लाख प्लास्टिक के कण, वजन करीब 26 करोड़ किलो, कहें तो 53 हजार हाथियों के वजन से भी ज्यादा, नेचर में छपी एक रिसर्च के मुताबिक, समंदर में फेंके गए प्लास्टिक की ये कम से कम मात्रा है, अब एक हालिया रिसर्च में ये कहा गया है कि भारत में बिक रहे नमक और चीनी के हर सैंपल में माइक्रोप्लास्टिक मिले हैं, सवाल उठता है कि ये Microplastic आते कहां से हैं? और मानव शरीर के बाहर, हवा, पानी, धूल, फल और सब्जियों में मौजूद ये चीज, इंसानों के लिए कितनी खतरनाक है?
दरअसल माइक्रोप्लास्टिक, प्लास्टिक के महीन कण होते हैं, जिनका साइज 5 मिलीमीटर से भी कम होता है, ये धूल के कणों जितने महीन भी हो सकते हैं, हमारे आस-पास प्लास्टिक की जो चीजें दिखती हैं, वो समय के साथ टूटकर माइक्रोप्लास्टिक के कण बनाती हैं। वहीं कुछ ब्यूटी प्रोडक्ट्स और कॉस्मेटिक्स वगैरह में भी इनका इस्तेमाल किया जाता है।
नमक और चीनी नहीं अछूते
एक हालिया रिसर्च, पर्यावरण अनुसंधान संगठन ‘टॉक्सिक्स लिंक’ ने किया है, जिसमें सादे नमक, समुद्री नमक, सेंधा नमक और स्थानीय कच्चे नमक वगैरह के सैंपल जांचे गए, कई चीनी के सैंपल भी इस लिस्ट में शामिल हैं, ये सैंपल दुकानों और ऑनलाइन दोनों ही तरीकों से लिए गए थे।
बताया जा रहा है, इन सैंपल्स में बाजार में बिकने वाले तमाम ब्रांड्स के चीनी और नमक शामिल हैं, जिनमें फाइबर, फिल्म या पैलेट्स के रूप में माइक्रोप्लास्टिक के कण पाए गए, बता दें कि ये माइक्रोप्लास्टिक के अलग-अलग तरह के आकार हैं, जो नमक और चीनी में पाए गए हैं।
बहरहाल, ये पहली बार नहीं है, जब खाने-पीने की चीजों में माइक्रोप्लास्टिक पाया गया हो, और यह समस्या सिर्फ भारत तक ही सीमित नहीं है। चीन, जर्मनी, इंडोनेशिया, वियतनाम और फ्रांस तमाम देशों में हवा-पानी में माइक्रोप्लास्टिक के सैंपल पाए गए हैं।
कहां से पहुंचा नमक में माइक्रोप्लास्टिक?
बताया जाता है कि प्लास्टिक की चीजें, कपड़े और कॉस्मेटिक प्रोडक्ट्स वगैरह, नमक में माइक्रोप्लास्टिक के सोर्स हो सकते हैं। नमक बनने के कारखाने की जगह और उसके आस-पास का वातावरण भी नमक में माइक्रोप्लास्टिक की वजह हो सकते हैं।
मसलन पाया गया कि पत्थर वाले नमक की तुलना में समंदर के पानी से बनाए गए नमक में माइक्रोप्लास्टिक होने के चांस ज्यादा हैं। इसके अलावा ज्यादा प्लास्टिक पॉल्यूशन वाले इलाकों में बन रहे नमक में भी माइक्रोप्लास्टिक होने के चांस ज्यादा हो सकते हैं।
चीनी तक किस रास्ते पहुंचा माइक्रोप्लास्टिक?
हालांकि इस बारे में कोई स्टडी तो नहीं हैं, लेकिन टॉक्सिक लिंक की रिसर्च में कुछ सोर्स, चीनी के मामले में भी गिनाए गए हैं। मसलन जब प्लास्टिक टूटता है, तो उससे बनने वाले माइक्रोप्लास्टिक पौधों की जड़ों से होते हुए, तने तक पहुंच सकते हैं. कहा जा रहा है कि माइक्रोप्लास्टिक युक्त पानी से सिंचाई करने पर ये गन्ने की फसल तक पहुंच जाते हैं, फिर जड़ों के जरिए, गन्ने के तने तक पहुंच सकते हैं।
एक कारण खेती में इस्तेमाल किए जाने वाले प्लास्टिक बेस्ड केमिकल्स को भी बताया जा रहा है।
अब हम इतना तो समझ गए कि हमारे आस-पास माइक्रोप्लास्टिक कहां-कहां हो सकते हैं, अब समझते हैं कि ये हमारे शरीर में कहां-कहां हो सकते हैं?
जरूरत से ज्यादा नमक-चीनी खा रहे हैं हम!
विश्व स्वास्थ्य संगठन दिन में 5 ग्राम नमक खाने का सुझाव देता है, जबकि एक भारतीय औसत करीब 10 ग्राम नमक हर दिन खाता है, चीनी की बात करें तो औसतन एक भारतीय दिन की 10 चम्मच या साल की करीब 18 किलो चीनी खा लेता है।
ये तो बताने की जरूरत भी नहीं कि ये दोनों ही चीजें अगर जरूरत से ज्यादा ली जाएं, तो डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर जैसी तमाम बीमारियों का कारण बन सकती हैं। वहीं अब इनके साथ माइक्रोप्लास्टिक का नाम भी जुड़ गया है।
कई रिसर्च में पाया गया है कि इंसानों के वीर्य, लार, किडनी, लिवर, यहां तक कि मां के दूध में भी माइक्रोप्लास्टिक मिले हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि हवा, पानी और खाने के जरिए ये हमारे शरीर के लगभग हर अंग तक पहुंच रहे हैं, अब बात करते हैं, इनके खतरों की।
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