CDTI से ट्रेनिंग लेकर साइबर क्राइम के आरोपियों को उनके अंजाम तक पहुंचा रही पुलिस, जानिए कैसे करते हैं काम?
सज्जन कुमार, चंडीगढ़:
समय के साथ साथ अपराधियों के अपराध करने के तरीके भी लगातार हाइटेक होते जा रहे है। साइबर क्राइम में अपराधियों को पहचान गोपनीय रखने में आसानी होती है इसलिए साइबर क्राइम के मामलों में लगातार इजाफा हो रहा है। ऐसे में पुलिस प्रशासन के लिए उन्हें पकड़ना और कड़ी सजा दिलवाना एक चुनौती भरा काम है। साइबर क्राइम से जुड़े अपराधियों पर अंकुश लगाने के लिए पुलिस को भी हाईटैक होने की आवश्यकता है ताकि वह भी साइबर स्पेस का इस्तेमाल कर डिजिटल फुटप्रिंट से अपराधियों तक पहुंचकर उन्हें दंड दिलवा सके। इसके लिए केंद्रीय गुप्तचर प्रशिक्षण संस्थान पुलिस और ज्यूडिशरी दोनों को ऐसे मामलों में डिजिटल फुटप्रिंट एकत्र करने से लेकर कोर्ट में उसे प्रस्तुत करने तक का प्रक्षिशण देता है।
लापता युवाओं को तलाशने में अहम योगदान
साइबर क्राइम के मामले लगातार बढ़ रहे है ऐसे मामलों में अपराधी तक पहुंचना काफी चुनौतीपूर्ण है। वहीं घर से भागे युवाओं को ढूंढने में भी सेंट्रल डिटेक्टिव ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट की ट्रेनिंग का अहम योगदान है। देश में पांच सीडीटीआई चंडीगढ़, हैदराबाद, कोलकाता, जयपुर और गाजियाबाद में स्थित है जो पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो गृह मंत्रालय के तहत कार्यरत हैं। गुमशुदगी के मामलों में सिडीटीआई के प्रशिक्षण से पुलिस ने कई लोगों को उनके परिवार से मिलवाने का काम किया है। वहीँ कई ऐसे मामले जिनमें साक्ष्य नहीं मिल रहे थे ऐसे में सीडीटीआई से प्रशिक्षण पाकर पुलिस ने उन्हें अंजाम तक पहुंचाया है। सीडीटीआई के फैकल्टी गुरचरण सिंह को उनकी सेवाओं के लिए ब्यूरो ऑफ़ पुलिस रिसर्च एन्ड डवलेपमेंट की तरफ से 15 अगस्त 2015 और 2024 में प्रेजिडेंट पुलिस मैडल से नवाजा गया है।
अब जुटाए जा रहे डिजिटल सबूत
डीआईजी रानी बिंदु सचदेवा ने बताया की सीडीटीआई पुलिस अनुसधान से मामलों की ट्रेनिंग देता है ताकि पुलिस जांच को ओर बेहतर बनाया जा सके। सीडीटीआई साइबर क्राइम, मर्डर , महिलाओं के विरुद्ध अपराध और आर्थिक अपराध आदि पर ट्रेनिंग प्रदान करता है। उन्होंने कहा की साइबर क्राइम अधिक हो रहे है और ऐसे में डिजिटल एविडेन्स से जांच अधिकारी को रूबरू होना पड़ता है। इसलिए डिजिटल एविडेन्स एकत्र करना और प्रस्तुत करने सम्बन्धी प्रशिक्षण दिया जाता है। डीआईजी रानी बिंदु सचदेवा ने बताया की सीडीटीआई समय समय पर छात्रों, महिलाओं और बुजुर्गों के लिए जागरूकता अभियान भी चलाता है ताकि साइबर अपराध से बचा जा सके और सोशल साइट्स का सुरक्षित प्रयोग किया जा सके।
नए कानूनों में होगा डिजिटल सबूतों का अधिक इस्तेमाल
उन्होंने कहा की तीन नए कानूनों के लागू होने के बाद डिजिटल एविडेन्स का प्रयोग अधिक होगा इसके लिए भी सीडीटीआई पुलिस, ज्यूडिशियल अफसर और प्रोसिक्यूटर को बड़े स्तर पर प्रशिक्षण दे चूका है। वर्तमान में भी डिजिटल एविडेंस को लेकर पुलिस प्रशासन की प्रेक्टिकल ट्रेनिंग चल रही है। सीडीटीआई चंडीगढ़ को कपैसिटी बिल्डिंग कमीशन की तरफ से चंडीगढ़ केंद्र को अति उत्तम प्रशिक्षण केंद्र के तौर पर सम्मानित किया गया है। आईपीएस रानी बिंदु ने बताया की इन हॉउस फैकल्टी में नेशनल स्तर के ट्रेनर गुरचरण सिंह है, जिनकी डिजिटल फुटप्रिंट और साइबर में अच्छी पकड़ है। वहीं विभाग के साथ अन्य विशेषज्ञ भी जुड़े हुए है जिनको समय समय पर प्रशिक्षण हेतु बुलाया जाता है।
‘डिजिटल फुटप्रिंय से सुलझ रहे मामले’
सीडीटीआई के फैकल्टी गुरचरण सिंह ने बताया की अपराधी वर्तमान में साइबर क्राइम अधिक कर रहे है, क्योकि यहां उनके लिए गोपनीयता बनाए रखना आसान है। बढ़ते साइबर क्राइम को देखते हुए सीडीटीआई पुलिस, ज्यूडिशियल अधिकारी और प्रोसिक्यूटर को भी साइबर स्पेस का इस्तेमाल अपराधियों को ढूंढ़ने के लिए किए जाने सम्बन्धी प्रशिक्षण देता है। डिजिटल साक्ष्य एक ऐसा साक्ष्य है जिसे टैम्पर नहीं किया सकता और यह एक पुख्ता साक्ष्य है। इन साक्ष्यों को एकत्र करने से लेकर अपराधियों को सजा दिलवाए जाने तक की प्रक्रिया को लेकर ट्रेनिंग दी जाती है। सीडीटीआई की ट्रेनिंग से डिजिटल फुटप्रिंट का इस्तेमाल कर हाल ही में पुलिस ने कई ऐसे मामलों को सुलझाया है जिन्हे साक्ष्य के आभाव में बंद कर दिया गया था।
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