भारत में सबसे ज्यादा पैदा हो रहे हैं प्री मैच्योर बेबीज, जानिए क्या हो सकते हैं कारण?
दुनिया में सबसे अधिक प्री मैच्योर बेबीज भारत में पैदा हो रहे हैं। द लैंसेट की रिपोर्ट के अनुसार विश्व में प्री मैच्योर (समय से पहले) जन्म के कुल मामलों में 20 प्रतिशत भारत में है। विश्व स्वास्थ्य संगठन, संयुक्त राष्ट्र बाल कोष और लंदन स्कूल आफ हाइजीन एन्ड ट्रॉपिकल मेडिसिन के शोधकर्ताओं के अध्ययन में पाया गया की विश्व में समय से पहले जन्म के कुल मामलों में लगभग 50 प्रतिशत मामले 8 देशों में दर्ज किए गए।
सज्जन कुमार, चंडीगढ़:
दुनिया में सबसे अधिक प्री मैच्योर बेबीज भारत में पैदा हो रहे हैं। द लैंसेट की रिपोर्ट के अनुसार विश्व में प्री मैच्योर (समय से पहले) जन्म के कुल मामलों में 20 प्रतिशत भारत में है। विश्व स्वास्थ्य संगठन, संयुक्त राष्ट्र बाल कोष और लंदन स्कूल आफ हाइजीन एन्ड ट्रॉपिकल मेडिसिन के शोधकर्ताओं के अध्ययन में पाया गया की विश्व में समय से पहले जन्म के कुल मामलों में लगभग 50 प्रतिशत मामले 8 देशों में दर्ज किए गए। इसको लेकर चंडीगढ़ में एक सेमिनार का आयोजन किया गया जिसमें महिलाओं को इसके बारे में जानकारी दी गई ताकि प्री-मेच्चोर डिलीवरी के मामलों में कमी आ सके।
डॉ. विमलेश सोनी ने जानकारी देते हुए बताया की विश्व में जन्म लेने वाले कुल प्री-मेच्योर बेबी में 20 प्रतिशत की संख्या भारत से है। इसके लिए आमतौर पर गर्भावस्था में पोषक आहार ना लेना, गर्भावस्था के दौरान उच्च रक्तचाप, अनियंत्रित मधुमेय या किसी तरह का संक्रमण जिम्मेवार होता है। वहीँ इनफर्टिलिटी भी अधिक बढ़ रहा है। इसलिए आईवीएफ का सहारा लिया जाता है लेकिन आईवीएफ में ट्विन्स बच्चो की आशंका अधिक होती है। इस कारण भी प्री-मेच्योर डिलीवरी हो सकती है। उन्होंने कहा की प्री-मेच्योर डिलीवरी की संभावनाओं को काम करने के लिए गर्भवती के खान पान का ध्यान रखना और पोषक आहार देना आवशयक है।
इसके आलावा गर्भवती महिला को नियमित मेडिकल जांच करवानी चाहिए ताकि यदि कोई दिक्कत हो तो उसे समय रहते नियंत्रित किया जा सके। प्री-मेच्योर डिलवरी में पैदा होने वाले बच्चो को होने वाली दिक्कतों पर डॉ. विमलेश सोनी ने कहा की यह गर्भावस्था के समय पर आधारित है यदि बच्चा 26 सप्ताह में पैदा होता है तो यह जयादा गंभीर हो सकता है, क्योंकि सामान्य गर्भावस्था 36 - 40 सप्ताह की होती है। प्री-मेच्योर जन्म के बच्चो में अकसर दूध ना पचा पाना, सांस लेने में दिक्कत, मस्तिष्क का पूर्ण विकास ना होने जैसी समस्याए होती है। इसके लिए मेडिकल ट्रीटमेंट का सहारा लिया जाता है। वहीँ ऐसे मामलों में मष्तिष्क का कमजोर होना, आंखे कमजोर होने जैसी कई दिक्कते है जो जीवनभर के लिए हो सकती है।
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