BJP अनिल विज को प्रमुख चेहरे के रूप में इस्तेमाल करती तो चुनावों में मिल सकता था लाभ
जीटी रोड बेल्ट पर भाजपा के दिग्गज नेता व पूर्व गृह, स्वास्थ्य व निकाय मंत्री अनिल विज द्वारा 12 मार्च को नायब सिंह सैनी के मुख्यमंत्री बनने के बाद मंत्रीमंडल में शामिल होने से इंकार करने तथा उसके बाद मंत्रिमंडल में शामिल नहीं करने का निर्णय भाजपा के लिए परेशानी का सबब रहा। राजनीतिक विशेषज्ञों की माने तो पूरे हरियाणा में भाजपा को पांच से आठ प्रतिशत वोट का लोकसभा चुनाव परिणामों में तथा विधानसभा चुनावों में इसका नुकसान झेलना पड़ा है।
चंद्रशेखर धरणी, चंडीगढ़:
जीटी रोड बेल्ट पर भाजपा के दिग्गज नेता व पूर्व गृह, स्वास्थ्य व निकाय मंत्री अनिल विज द्वारा 12 मार्च को नायब सिंह सैनी के मुख्यमंत्री बनने के बाद मंत्रीमंडल में शामिल होने से इंकार करने तथा उसके बाद मंत्रिमंडल में शामिल नहीं करने का निर्णय भाजपा के लिए परेशानी का सबब रहा। राजनीतिक विशेषज्ञों की माने तो पूरे हरियाणा में भाजपा को पांच से आठ प्रतिशत वोट का लोकसभा चुनाव परिणामों में तथा विधानसभा चुनावों में इसका नुकसान झेलना पड़ा है।
अनिल विज को भाजपा की सत्ता की राजनीति में 2014 से 2019 तक मनोहर पार्ट-वन में तथा 2019 से 2024 तक मनोहर पार्ट-टू में जो-जो विभाग मिले, उनमें ज्यादातर ऐसे अधिकारी लगाए गए जिनसे अनिल विज का तालमेल सही नहीं बैठ पाया। दबंग अंदाज में काम करने वाले अनिल विज अपने विभागों का संचालन करते रहे, लेकिन राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि 6 बार के विधायक अनिल विज को ‘साइड लाइन’ लगाने का क्रम लगातार चलता रहा, लेकिन यह पकड़ में नहीं आए।
अनिल विज की ओर से लगाए जा रहे जनता दरबार में हजारों लोगों की मौजूदगी और उनके काम करने के अंदाज और तरीके से यह भीड़ बढ़ती गई, इनके नेता इस योजना में लगे रहे कि जनता दरबार कैसे बंद करवाया जाए। कोरोना कार्यकाल में हरियाणा सचिवालय में लॉकडाउन के दौरान जब कोई मंत्री नहीं आया था, उस समय भी केवल अनिल विज एक बार बाथरूम में स्लिप होने और दो बार कोविड के शिकार होने के बावजूद ऑक्सीजन सिलेंडर लगाकर भी हरियाणा सचिवालय में मौजूद रहे।
बता दें कि उन दिनों में प्रदेश का कोई भी मंत्री हरियाणा सचिवालय में नजर नहीं आता था। अनिल विज, जिनकों इनके कई नेता साइड लाइन लगाने में लगे रहे, मगर अनिल विज अपने इन्हीं नेताओं के लिए विपक्ष के खिलाफ तीखे बयान देने और तेवरों को दिखाकर एक मजबूत दीवार की तरह अपने नेताओं के साथ खड़े नजर आए। कभी आरएसएस तथा बीजेपी में रहकर अनिल विज ने अपने लिए कुछ भी नहीं मांगा।
अनिल विज खुद मानते हैं कि मनोहर लाल जी के स्थान पर नायब सैनी को मुख्यमंत्री बनाया गया, जोकि काफी जूनियर है। ऐसे में कईं लोगों ने सवाल किया कि अनिल विज क्यों नहीं, इसके जवाब में कई लोगों ने कहा कि विज तो बनना ही नहीं चाहता। इसलिए कहा कि यदि पार्टी ने उन्हें जिम्मेदारी दी तो वह मना नहीं करेंगे। 2014 में बीजेपी की सरकार बनने पर भी वह वरिष्ठ थे, उससे पहले 5 साल तक विधायक दल के नेता भी रहे।
कांग्रेस के खिलाफ भी उन्होंने लड़ाई लड़ी। हुड्डा के खिलाफ भी लड़ाई लड़ी। सरकार बनने पर कभी कोई दावा नहीं किया। इस बार भी कोई दावा नहीं किया है। राजनीति के जानकार यह मानते हैं कि भाजपा लोकसभा और विधानसभा चुनावों में सभी जातियों और धर्मों के लोगों में पकड़ रखने वाले अनिल विज को यदि ताकत देकर यदि प्रमुख चेहरे के रूप में इस्तेमाल करती तो लोकसभा और विधानसभा चुनावों में भाजपा को लाभ मिल सकता था।
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