सुप्रीम कोर्ट : राज्यपाल और राष्ट्रपति पर बिल मंजूरी की कोई तय समय सीमा नहीं
सुप्रीम कोर्ट की पाँच जजों की संविधान पीठ ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा भेजे गए प्रेसिडेंशियल रेफरेंस पर गुरुवार को महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि राज्य विधानसभाओं से पारित विधेयकों को मंजूरी देने के लिए न तो राज्यपाल और न ही राष्ट्रपति के लिए कोई तय समयसीमा निर्धारित की जा सकती है
सुप्रीम कोर्ट की पाँच जजों की संविधान पीठ ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा भेजे गए प्रेसिडेंशियल रेफरेंस पर गुरुवार को महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि राज्य विधानसभाओं से पारित विधेयकों को मंजूरी देने के लिए न तो राज्यपाल और न ही राष्ट्रपति के लिए कोई तय समयसीमा निर्धारित की जा सकती है। साथ ही अदालत ने यह भी कहा कि न्यायपालिका भी इस दिशा में कोई समय-सीमा लागू नहीं कर सकती।
हालांकि, पीठ ने यह साफ किया कि राज्यपाल अनिश्चितकाल तक बिलों को लंबित नहीं रख सकते। ऐसा करना संघीय ढांचे को नुकसान पहुँचाता है और जनता द्वारा चुनी गई सरकार की कार्यप्रणाली को बाधित करता है।
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ, जिसमें जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जस्टिस ए.एस. चंदुरकर शामिल थे। उन्होनें सर्वसम्मति से कहा कि यदि राज्यपाल आर्टिकल 200 में तय प्रक्रिया का पालन किए बिना विधेयकों को रोक कर रखते हैं, तो यह भारतीय संघवाद की भावना के विपरीत होगा।
इसके अलावा कोर्ट ने कहा कि राज्यपालों के पास राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित बिलों को रोकने की "असीमित शक्ति" नहीं है। राष्ट्रपति द्वारा आर्टिकल 143(1) के तहत राय मांगे जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि राज्यपालों के पास बिल मिलने पर केवल तीन विकल्प होते हैं। मंजूरी देना, अस्वीकार करना या पुनर्विचार के लिए विधानसभा को भेजना।
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