दिवाली कब है, हो गया फाइनल! 31 अक्टूबर या 1 नवंबर?
इस लिहाज से त्योहार 31 अक्टूबर को है। ज्योतिषाचार्य मनोज पाराशर का कहना है कि इसमें कोई असमंजस नहीं है।
दिवाली की तिथि को लेकर असमंजस बरकरार है। हिंदू और जैन दो दिन दीये जलाएंगे। बौद्ध धर्मावलंबी 31 अक्टूबर की रात को दिवाली मनाएंगे। ज्योतिषियों के अनुसार दिवाली के लिए प्रदोष व्यापिनी और रात में अमावस्या जरूरी है। इस लिहाज से त्योहार 31 अक्टूबर को है। ज्योतिषाचार्य मनोज पाराशर का कहना है कि इसमें कोई असमंजस नहीं है।
दीपोत्सव और लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त 31 अक्टूबर की रात है। ज्योतिषाचार्य पूनम वार्ष्णेय का कहना है कि दिवाली उदया तिथि में है। उन्होंने बताया कि 31 अक्टूबर और एक नवंबर दोनों ही दिन त्योहार हैं। दोनों दिन लक्ष्मी-गणेश की पूजा की जा सकती है। दीप भी जलाए जा सकते हैं।
कैलाश मंदिर के महंत गौरव गिरि का कहना है कि एक नवंबर को दिवाली का त्योहार है। इसी तिथि पर मंदिरों में दीपोत्सव मनाया जाएगा। अखिल भारतीय शाक्य महासभा के प्रदेश संयोजक कुलदीप कुमार शाक्य का कहना है कि बौद्ध धर्मावलंबी 31 अक्तूबर की रात को दिवाली मनाएंगे। बुद्ध वंदना के साथ ही भिक्षुओं के कल्याण के लिए दान दिया जाएगा। फिरोजाबाद से आए जैन धर्म के विद्वान अनूप चंद जैन एडवोकेट का कहना है कि दो दिन तक दीप जलाए जाएंगे। 31 अक्तूबर को लोकाचार और एक नवंबर को निर्वाण महोत्सव पर दीपदान होगा। सुबह मंदिरों में लड्डू का भोग लगाया जाएगा।
दीप पर्व: सबके अपने-अपने कारण हैं
हिंदू
श्रीराम लंका पर विजय प्राप्त कर अयोध्या लौटे थे। इस खुशी में अयोध्या नगरी दीपों से जगमगा उठी थी। कार्तिक अमावस्या को लक्ष्मी का जन्म भी माना जाता है।
जैन
जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी ने कार्तिक अमावस्या को निर्वाण प्राप्त किया था। इसलिए जैन धर्म के अनुयायी इस रात दीप जलाते हैं। इसी दिन महावीर स्वामी के प्रमुख शिष्य गौतम स्वामी को कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।
बौद्ध
कार्तिक अमावस्या को गौतम बुद्ध समाधि (पूर्ण ज्ञान) प्राप्त कर कपिलवस्तु लौटे थे। तभी से अमावस्या की रात दीप जलाने की परंपरा है। सम्राट अशोक ने इस पर्व को दीप दानोत्सव नाम दिया था।
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