किसी भी जज को पद से हटाने की क्या है प्रक्रिया ?
यशवंत वर्मा के कैश कांड मामले में संसद में महाभियोगी की कार्यवाही शुरू की गई है। जिसमें ओम बिरला ने जानकारी दी है कि उन्हें वर्मा के खिलाफ 146 सांसदों द्वारा हस्ताक्षरित महाभियोग प्रस्ताव प्राप्त हुआ है। जिसमें सत्ता पक्ष और विपक्ष के कई नेता शामिल हैं। वहीं इस महाभियोग में जस्टिस वर्मा को उनके पद से हटाने के लिए यह किया जा रहा है । ऐसा इसलिए क्यों कि वर्मा के घर पर "जले हुए 500 रुपये के नोटों के ढेर" पाए गए थे, जिसके बाद पहले उनका तबादला किया गया और अब उन्हें उनके पद से हटाने के लिए महाभियोग प्रस्ताव लाया जा रहा है।
यशवंत वर्मा के कैश कांड मामले में संसद में महाभियोगी की कार्यवाही शुरू की गई है। जिसमें ओम बिरला ने जानकारी दी है कि उन्हें वर्मा के खिलाफ 146 सांसदों द्वारा हस्ताक्षरित महाभियोग प्रस्ताव प्राप्त हुआ है। जिसमें सत्ता पक्ष और विपक्ष के कई नेता शामिल हैं। वहीं इस महाभियोग में जस्टिस वर्मा को उनके पद से हटाने के लिए यह किया जा रहा है । ऐसा इसलिए क्यों कि वर्मा के घर पर "जले हुए 500 रुपये के नोटों के ढेर" पाए गए थे, जिसके बाद पहले उनका तबादला किया गया और अब उन्हें उनके पद से हटाने के लिए महाभियोग प्रस्ताव लाया जा रहा है।
तो सवाल यह उठता है कि आखिर किसी भी जज को हटाने के लिए क्या प्रक्रिया होती है ? आएइ जानते हैं
भारत के संविधान के अनुच्छेद 124(4) और 124(5) के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालय (अनुच्छेद 217 ) के न्यायाधीश को उनके पद से हटाया जा सकता है। यह काम राष्ट्रपति करते हैं, लेकिन तभी जब संसद उन्हें हटाने का प्रस्ताव पास करती है।
न्यायाधीश को हटाने के लिए संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) में विशेष बहुमत से प्रस्ताव पास होना जरूरी है।
विशेष बहुमत का मतलब है:
- सदन के कुल सदस्यों का बहुमत
- और, उपस्थित और मतदान करने वाले कम से कम दो-तिहाई सदस्यों का समर्थन
वहीं इस मामलें पर इससे जुड़े कुछ पुराने मामले भी हैं जिसके बारे में जाकर आप भी सोच में पड़ सकते हैं...
- 1993 वी. रामास्वामी जस्टिस पहले न्यायाधीश थे जिनके खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू की गई थी। 1993 में, यह प्रस्ताव लोकसभा में लाया गया, लेकिन आवश्यक दो-तिहाई बहुमत हासिल नहीं कर सका।
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2011 वहीं दूसरा मामला कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सौमित्र सेन का है जो कि 2011 में राज्यसभा द्वारा उनके विरुद्ध महाभियोग प्रस्ताव पारित किए जाने के बाद इस्तीफा दे शौंप दिए थे। वे पहले ऐसे न्यायाधीश थे जिन पर उच्च सदन द्वारा कदाचार के लिए महाभियोग चलाया गया था।
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2015 : गुजरात हाईकोर्ट के जस्टिस जे.बी. पारदीवाला के खिलाफ 58 सांसदों ने प्रस्ताव दिया, वजह थी आरक्षण पर आपत्तिजनक टिप्पणी।
जस्टिस एस.के. गंगेले के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोप में प्रस्ताव लाया गया, लेकिन जांच में सबूत नहीं मिले, इसलिए मामला खत्म हो गया
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2017: आंध्र प्रदेश और तेलंगाना हाईकोर्ट के जस्टिस सी.वी. नागार्जुन रेड्डी के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया गया।
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2018: विपक्षी दलों ने तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ प्रस्ताव लाने की कोशिश की।
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