हरियाणा राजनीति के अनोखे किस्से : किसी ने मुख्यमंत्री की कुर्सी को ठुकराया तो किसी ने हजारों रुपए की नगदी लौटाई
आज राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती है। इसके साथ ही हरियाणा में विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार में भी केवल एक दिन का ही समय शेष बचा है।
चंद्रशेखर धरणी, चंडीगढ़ : आज राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती है। इसके साथ ही हरियाणा में विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार में भी केवल एक दिन का ही समय शेष बचा है। ऐसे में सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की इस जयंती के मौके पर हम आपको हरियाणा के कुछ उन नेताओं के बारे में बताएंगे, जिन्होंने साम-दाम, दंड-भेद से हटकर सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलकर ना केवल दूसरे नेताओं बल्कि समाज को भी नई दिशा देने का काम किया था।
आज राजनीति किसी जंग के अखाड़े से कम नहीं रह गई है, क्योंकि राजनीति में नेताओं के अपने बात से पलटने के साथ ही एक-दूसरे के खिलाफ हिंसात्मक बयान देने से भी कोई परहेज नहीं किया जा रहा। इसके कईं उदाहरण इस विधानसभ चुनाव के प्रचार के दौरान दिखाई भी दिए हैं, लेकिन यदि पूर्व के कुछ राजनेताओं को देखे तो आज हमें उनके मार्ग पर चलने की जरूरत महसूस होती है। आजकल राजनेता और राजनीतिक दल चुनाव जीतने के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा देते हैं। उन्हें बस किसी भी सूरत में चुनाव में जीत हासिल करनी होती है, लेकिन हरियाणा के राजनीतिक परिदृश्य पर गौर करें तो पता चलता है कि 1982 में किलोई विधानसभा से लोकदल की टिकट पर चुनावी मैदान में उतरे एडवोकेट हरिचंद हुड्डा को चौधरी चरण सिंह ने चुनाव लड़ने के लिए 20 हजार रुपए दिए थे।
आज जहां चुनावी मैदान में उतरने वाले उम्मीदवार प्रचार के लिए लाखों रुपए खर्च करने के साथ ही अपने काफिले में गाड़ियों का लाव लश्कर लेकर चलते हैं। वहीं, 1982 में चुनावी मैदान में उतरे हरिचंद ने अपने प्रचार के लिए अकेले ही निकल पड़ते थे। उन्होंने अपने प्रचार के लिए कोई टीम भी नहीं बनाई थी। वह घर से खाना खाकर किराए पर ऑटो लेकर प्रचार के लिए निकल पड़ते थे। वह गांवों में जमने वाली बैठकों और चौपालों में पहुंचकर जाते और कहते कि चौधरी साहब ने टिकट दे दी है। अब तुम जानों और चौधरी साहब। उनकी यह सादगी जनता को काफी पसंद आई और वह चुनाव में जीत गए। चुनाव के पूरे प्रचार में हरिचंद के 7 हजार रुपए खर्च हुए। इस पर वह बचे हुए 13 हजार रुपए लेकर दिल्ली में चौधरी चरण सिंह को वापस करने पहुंच गए थे। अब ऐसे नेता शायद ढूंढने से भी ना मिले।
…जब देवीलाल सीएम बने
हरियाणा की राजनीति अधिकतर जाट नेताओं के ईर्द-गिर्द ही घूमती है। ऐसे में 1977 में जब जनता पार्टी के 75 विधायक जीते तो चौधरी चरण सिंह ने अपनी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष चौधरी चांदराम को मुख्यमंत्री बनाने की बात कही, लेकिन चांदराम ने मुख्यमंत्री बनने से इंकार करते हुए कहा कि हरियाणा में गैर जाट सीएम से जनता में नाराजगी बढ़ेगी। इस पर उन्होंने चौधरी देवीलाल को मुख्यमंत्री बनाने का प्रस्ताव रखा।
आज का राजनीतिक परिदृश्य
इन सबके उलट मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य को देखे तो हर कोई खुद मुख्यमंत्री बनना चाहता है। फिर वह चाहे बीजेपी हो या फिर कांग्रेस या अन्य कोई दल। आज की राजनीति किसी दिशा में जा रही है ? यह बात किसी से छिपी नहीं है। यदि आज भी पुराने राजनेताओं के पदचिन्ह पर चलते हुए नेता राजनीति को जनसेवा का कार्य समझकर करें तो शायद किसी भी प्रदेश में जनता को किसी भी प्रकार की समस्या नहीं होगी। खैर यह पब्लिक है, जो सब जानती है। इसलिए राजनेताओं को भी अपनी ओर से संयम और धैर्य पूर्वक कार्य करते हुए बयानबाजी करनी चाहिए।
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