Mahakumbh 2025: संगम में तीन शंकराचार्यों का अमृत स्नान, सनातन परंपरा की दिव्य झलक
Mahakumbh 2025: आस्था, तप और सनातन परंपराओं के पावन संगम में एक ऐतिहासिक दृश्य उस समय देखने को मिला, जब तीन शंकराचार्यों ने मौनी अमावस्या के पावन अवसर पर त्रिवेणी संगम में एक साथ ‘अमृत स्नान’ किया।

Mahakumbh 2025: आस्था, तप और सनातन परंपराओं के पावन संगम में एक ऐतिहासिक दृश्य उस समय देखने को मिला, जब तीन शंकराचार्यों ने मौनी अमावस्या के पावन अवसर पर त्रिवेणी संगम में एक साथ ‘अमृत स्नान’ किया।
श्रृंगेरी शारदा पीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी विधु शेखर भारती जी, द्वारका शारदा पीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती जी, और ज्योतिष पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज ने पवित्र संगम में आस्था की डुबकी लगाई।
इस शुभ अवसर पर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती महाराज ने कहा, "इस पावन स्नान से अपार आनंद की अनुभूति हो रही है। यह एक दिव्य और आध्यात्मिक अनुभव है, जो आत्मशुद्धि और मोक्ष की ओर ले जाता है।"
मौनी अमावस्या का महत्व
मौनी अमावस्या को सनातन धर्म में अत्यंत पवित्र तिथि माना जाता है। यह दिन आत्मशुद्धि, ध्यान और मौन व्रत धारण करने का होता है। मान्यता है कि इस दिन संगम में स्नान करने से सभी पापों का नाश होता है और व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। प्रयागराज के त्रिवेणी संगम में गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती का मिलन होता है, जिससे इसका धार्मिक महत्व और भी बढ़ जाता है।
तीन शंकराचार्यों का ऐतिहासिक संगम स्नान
इस बार मौनी अमावस्या विशेष रही क्योंकि तीन शंकराचार्यों ने एक साथ अमृत स्नान किया। यह अवसर इसलिए भी महत्वपूर्ण था क्योंकि आमतौर पर अलग-अलग मठों और परंपराओं के संत अपने-अपने अनुयायियों के साथ स्नान करते हैं, लेकिन इस बार तीनों जगद्गुरुओं ने संगम में एक साथ डुबकी लगाकर सनातन परंपरा की एकता का संदेश दिया।
शंकराचार्य कौन हैं और उनका महत्व?
आदि शंकराचार्य ने भारत में सनातन धर्म को एकजुट करने के लिए चार पीठों की स्थापना की थी—
- ज्योतिषपीठ (उत्तराखंड)
- श्रृंगेरी पीठ (कर्नाटक)
- द्वारका पीठ (गुजरात)
- गोवर्धन पीठ (पुरी, ओडिशा)
वर्तमान में इन्हीं पीठों से जुड़े शंकराचार्य हिंदू धर्मगुरु के रूप में धर्म और अध्यात्म का मार्गदर्शन करते हैं।
तीनों शंकराचार्यों ने दिया विशेष संदेश
संगम में स्नान के बाद तीनों शंकराचार्यों ने सनातन संस्कृति और आध्यात्मिक एकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि—
- गंगा स्नान केवल बाहरी शुद्धि नहीं, बल्कि आत्मिक शुद्धि का भी प्रतीक है।
- सनातन धर्म को मजबूत बनाने के लिए हमें जाति, भाषा और क्षेत्रीय भेदभाव से ऊपर उठना होगा।
- युवाओं को भारतीय संस्कृति और मूल्यों के प्रति जागरूक रहना चाहिए।
लाखों श्रद्धालुओं ने किया संगम स्नान
तीनों शंकराचार्यों के साथ-साथ इस पावन अवसर पर करीब 2 करोड़ श्रद्धालुओं ने भी संगम में डुबकी लगाई। कड़ाके की ठंड के बावजूद लोगों की आस्था इतनी प्रबल थी कि वे सूर्योदय से पहले ही संगम तट पर उमड़ पड़े। स्नान के बाद श्रद्धालुओं ने पवित्र गंगा जल से अभिषेक किया, दान-पुण्य किया और ध्यान साधना में लीन रहे।
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