144 साल बाद महाकुंभ की वापसी, श्रद्धालुओं ने संगम में लिया पहला अमृत स्नान
प्रयागराज में आज से महाकुंभ का शुभारंभ हो गया है, और इस ऐतिहासिक अवसर पर श्रद्धालुओं की अपार भीड़ संगम तट पर जुटी है। पहले अमृत स्नान के लिए लाखों श्रद्धालु ब्रह्मुहुर्त में मां गंगा में डुबकी लगाने पहुंचे
प्रयागराज में आज से महाकुंभ का शुभारंभ हो गया है, और इस ऐतिहासिक अवसर पर श्रद्धालुओं की अपार भीड़ संगम तट पर जुटी है। पहले अमृत स्नान के लिए लाखों श्रद्धालु ब्रह्मुहुर्त में मां गंगा में डुबकी लगाने पहुंचे, जिसमें भारत की समृद्ध धार्मिक परंपराओं और आस्थाओं का अद्भुत दृश्य देखने को मिला। महाकुंभ का आयोजन 144 साल बाद हो रहा है, और इस अवसर पर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बधाई दी है।
महाकुंभ का ऐतिहासिक महत्व
महाकुंभ एक ऐसा धार्मिक आयोजन है, जो भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता का प्रतीक है। इस साल, महाकुंभ संगम तट पर श्रद्धालुओं की जबरदस्त भीड़ उमड़ी है, और हर कोई मां गंगा के पवित्र जल में डुबकी लगाकर अपने पापों का नाश और आत्मिक शांति की प्राप्ति की कामना कर रहा है। महाकुंभ का आयोजन प्रत्येक बारह साल में होता है, और इस बार यह संगम तट पर आयोजित किया गया है, जहां हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु स्नान करने आते हैं।
समानता और समरसता का प्रतीक
महाकुंभ का आयोजन भारतीय संस्कृति की विविधता और एकता का प्रतीक है। यहां कोई भेदभाव नहीं होता, कोई पक्षपात नहीं होता और न ही कोई ऊंचा या नीचा होता है। सभी श्रद्धालु यहां समान रूप से आस्था के साथ स्नान करने आते हैं। महाकुंभ में हर वर्ग, जाति, और धर्म के लोग एक साथ आते हैं, जो भारत की समरसता और सांस्कृतिक एकता का जीवंत उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। संगम तट पर यह दृश्य अत्यंत भावुक और प्रेरणादायक होता है, जहां सभी लोग एकता की भावना से परिपूर्ण होते हैं।
भारत की सांस्कृतिक धरोहर का उत्सव
महाकुंभ भारतीय सभ्यता की प्राचीनता और गहरी आध्यात्मिकता का प्रतीक है। यह आयोजन न केवल धार्मिक आस्थाओं का प्रतीक है, बल्कि भारतीय समाज की सांस्कृतिक धरोहर का भी उत्सव है। संगम तट पर श्रद्धालुओं की लाखों की भीड़ यह साबित करती है कि भारतीय संस्कृति और धर्म की जड़ें आज भी इतनी गहरी हैं, कि वह सदी दर सदी जीवित और प्रासंगिक बनी हुई हैं।
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