सांसद संबित पात्रा ने लगाया UPA सरकार पर आरोप, बोले- इंदिरा गांधी के कॉल पर SBI ने दे दिए थे 60 लाख
कॉल पर विश्वास करते हुए, बैंक ने 60 लाख रुपये की नकदी बिना किसी लिखित आदेश या औपचारिकता के नागरवाला को सौंप दी।
भाजपा सांसद संबित पात्रा ने संसद भवन में एक बार फिर ठग नागरवाला का मुद्दा उठाया जिसके बाद संसद में जोरदार हंगामा शुरू हो गया। सांसद संबित पात्रा ने लोकसभा में कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि कांग्रेस के कार्यकाल में बैंकिंग व्यवस्था इतनी लचर थी कि सिर्फ एक कॉल करके ही ठग नागरवाला ने एसबीआई से 60 लाख रुपए की ठगी कर ली थी। संबित पात्रा ने आरोप लगाया कि ठग नागरवाला ने कॉल पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की आवाज ही निकाल कर एसबीआई से यह फ्रॉड कर लिया था जिसे भारतीय बैंकिंग के साथ हुए बड़े फ्राड के तौर पर गिना जाता है जिसे नागरवाला एसबीआई फ्राड कांड से भी जाना जाता है।
संबित पात्रा ने लोकसभा में उस समय की सरकार पर आरोप लगाते हुए 1971 की एक घटना का जिक्र करते हुए कहा कि उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने संसद मार्ग स्थित एसबीआई की ब्रांच में फोन करके नगरवाला को 60 लाख रुपए देने के लिए कहा था तब फोन बैंकिंग चलती थी। संबित पात्रा के इस बयान के बाद संसद में जमकर हंगामा हुआ। विपक्ष की ओर से सांसद केसी वेणुगोपाल ने उनके इस बयान की कड़ी निंदा की।
क्या था नागरवाला एसबीआई फ्रॉड कांड ?
भारतीय बैंकिंग इतिहास में कई फ्रॉड और घोटाले हुए हैं, लेकिन 1971 में हुए नागरवाला एसबीआई फ्रॉड कांड ने पूरे देश को चौंका दिया। यह एक ऐसा मामला था जिसमें एक फर्जी कॉल और भरोसे की कमी ने देश के सबसे बड़े बैंक को निशाना बनाया।
घटना का विवरण:
स्थान: यह घोटाला भारतीय स्टेट बैंक (SBI) की संसद मार्ग शाखा, नई दिल्ली में हुआ।
तारीख: 24 मई 1971
उस दिन बैंक के प्रमुख कैशियर वेद प्रकाश मल्होत्रा को प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) से एक फोन आया। कॉल करने वाले ने खुद को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का सचिव बताया और कहा कि तत्काल 60 लाख रुपये निकालकर सेना के एक गुप्त मिशन के लिए दिए जाने हैं। यह कॉल इतनी प्रभावशाली और आत्मविश्वास से भरी थी कि मल्होत्रा को इसमें कोई शक नहीं हुआ।
कैसे हुआ फ्रॉड ?
1. फर्जी कॉल:
कॉल करने वाला व्यक्ति रामचंद्र नागरवाला था, जो एक पूर्व सेना अधिकारी था। उसने इंदिरा गांधी के सचिव की आवाज की नकल कर बैंक अधिकारियों को धोखा दिया।
2. कैश की निकासी:
कॉल पर विश्वास करते हुए, बैंक ने 60 लाख रुपये की नकदी बिना किसी लिखित आदेश या औपचारिकता के नागरवाला को सौंप दी।
3. धोखाधड़ी का खुलासा:
बाद में जब बैंक ने पीएमओ से इस बारे में संपर्क किया, तो उन्हें पता चला कि ऐसा कोई निर्देश नहीं दिया गया था।
जांच और सजा:
इस फ्रॉड के खुलासे के बाद पुलिस ने नागरवाला को गिरफ्तार कर लिया। पूछताछ में उसने इस धोखाधड़ी की बात स्वीकार कर ली। जिसके लिए नागरवाला को 4 साल की सजा सुनाई गई। लेकिन जेल में सजा पूरी करने से एक दिन पहले ही दिल का दौरा पड़ने से नागरवाला की मृत्यु हो गई।
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