ISRO ने अंतरिक्ष में लगाई एक और छलांग, मिशन SpaDex की हुई सफल लॉन्चिंग           

इसरो ने बताया कि यह तकनीक भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS) के निर्माण और संचालन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। इसके अलावा, यह चंद्रमा पर भारतीय एस्ट्रोनॉट भेजने जैसी योजनाओं को भी साकार करने में मदद करेगी। 

Dec 31, 2024 - 03:44
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ISRO ने अंतरिक्ष में लगाई एक और छलांग, मिशन SpaDex की हुई सफल लॉन्चिंग           
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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने 30 दिसंबर 2024 को अपने महत्वाकांक्षी स्पैडेक्स मिशन को सफलतापूर्वक लॉन्च किया। यह लॉन्च श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से भारतीय समयानुसार रात 10 बजे किया गया। इस मिशन का मुख्य उद्देश्य अंतरिक्ष में डॉकिंग और अनडॉकिंग तकनीक का विकास और प्रदर्शन करना है।

स्पैडेक्स मिशन की विशेषताएँ

मिशन का नाम और उद्देश्य
स्पैडेक्स का अर्थ है "स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट"। इस मिशन में दो छोटे उपग्रह शामिल हैं, जिनका वजन लगभग 220 किलोग्राम है। इनमें एक चेजर (एसडीएक्स01) और दूसरा टारगेट (एसडीएक्स02) उपग्रह है। ये उपग्रह पृथ्वी से 470 किलोमीटर की ऊँचाई पर चक्कर लगाएंगे और एक-दूसरे के साथ डॉकिंग और अनडॉकिंग करेंगे। 

तकनीकी महत्व
स्पैडेक्स मिशन की सफलता के बाद, भारत दुनिया का चौथा देश बन जाएगा, जिसके पास स्पेस डॉकिंग तकनीक होगी। वर्तमान में, अमेरिका, रूस और चीन ही इस तकनीक में सक्षम माने जाते हैं। केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने इसे भारत के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि बताया, जो भविष्य के चंद्रयान-4 जैसे मिशनों के लिए आवश्यक है। 

मिशन के प्रमुख लक्ष्य

1. डॉकिंग और अनडॉकिंग
   स्पैडेक्स मिशन का मुख्य लक्ष्य दो अंतरिक्ष यानों के बीच सफल डॉकिंग और अनडॉकिंग की प्रक्रिया को प्रदर्शित करना है। यह प्रक्रिया भविष्य में अन्य अंतरिक्ष मिशनों के लिए आधार प्रदान करेगी। 

2. ऊर्जा हस्तांतरण 
   इस मिशन में डॉक किए गए अंतरिक्ष यानों के बीच ऊर्जा हस्तांतरण का प्रदर्शन भी किया जाएगा, जो स्पेस रोबोटिक्स जैसे प्रयोगों में महत्वपूर्ण होगा। 

3. स्वायत्त डॉकिंग
   यह मिशन पृथ्वी से जीएनएसएस पर निर्भर हुए बिना चंद्रयान-4 जैसे भविष्य के चंद्र मिशनों के लिए आवश्यक स्वायत्त डॉकिंग तकनीक का परीक्षण करेगा। 

भविष्य की योजनाएँ
स्पैडेक्स मिशन की सफलता से भारत को अपने अंतरिक्ष कार्यक्रमों में नई ऊँचाइयाँ हासिल करने का अवसर मिलेगा। इसरो ने बताया कि यह तकनीक भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS) के निर्माण और संचालन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। इसके अलावा, यह चंद्रमा पर भारतीय एस्ट्रोनॉट भेजने जैसी योजनाओं को भी साकार करने में मदद करेगी। 

 

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