SYL को लेकर सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई, केंद्र सरकार SC के समक्ष रखेगी दोनों राज्यों की रिपोर्ट
विशेषज्ञों का मानना है कि इस रिपोर्ट के आधार पर सुप्रीम कोर्ट आगे के कदम तय करेगा, जो इस लंबे समय से चल रहे विवाद को सुलझाने में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं।
सतलुज-यमुना लिंक यानी SYL पर सुप्रीम कोर्ट आज सुनवाई करेगा, इस सुनवाई में केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पंजाब और हरियाणा सरकार की रिपोर्ट पेश करेगी। जो हाल ही में दोनों राज्यों के बीच हुई बैठक के बाद तैयार की गई है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस रिपोर्ट के आधार पर सुप्रीम कोर्ट आगे के कदम तय करेगा, जो इस लंबे समय से चल रहे विवाद को सुलझाने में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं।
बता दें कि 6 अगस्त को दिल्ली में पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान और हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने केंद्रीय जल शक्ति मंत्री की अध्यक्षता में बैठक की थी, इस बैठक में SYL नहर परियोजना को लेकर दोनों पक्षों ने अपने-अपने सुझाव और समस्याएं साझा की थीं।
SYL मुद्दे पर महत्वपूर्ण बैठक
पंजाब के CM भगवंत मान ने पिछली बैठक में कहा था कि अगर पंजाब को रावी और चिनाब नदियों से पानी मिलता है, तो वे हरियाणा को पानी देने में सहयोग करेंगे। वहीं, हरियाणा के मुख्यमंत्री सैनी ने इस मुद्दे पर सकारात्मक चर्चा की उम्मीद जताई थी, साथ ही इस बात पर ज़ोर दिया था कि पंजाब और हरियाणा के बीच यह विवाद जल्द खत्म होना चाहिए।
हरियाणा की 10 लाख एकड़ कृषि भूमि बंजर होने के कगार पर
हरियाणा सरकार का दावा है कि SYL के नहीं बनने से प्रदेश को अब तक 20 हजार करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हो चुका है। पिछले 46 वर्षों से सिंचाई पानी नहीं मिलने से दक्षिण हरियाणा की 10 लाख एकड़ कृषि भूमि बंजर होने के कगार पर पहुंच गई है।
सिंचाई पानी के अभाव में प्रदेश को हर साल 42 लाख टन खाद्यान्न का भी नुकसान हो रहा है। यदि वर्ष 1981 के समझौते के अनुसार 1983 में एसवाईएल बन जाती तो हरियाणा 130 लाख टन अतिरिक्त खाद्यान्नों और दूसरे अनाजों का उत्पादन कर सकता है।
SYL नहर विवाद दशकों पुराना है, जिसका उद्देश्य सतलुज और यमुना नदियों को जोड़कर दोनों राज्यों के बीच पानी का समान वितरण करना है। हरियाणा ने अपनी तरफ़ 92 किलोमीटर नहर का निर्माण पूरा कर लिया है, जबकि पंजाब ने 122 किलोमीटर का निर्माण बीच में ही रोक दिया है। 2002 में सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा के पक्ष में फ़ैसला सुनाया, लेकिन पंजाब ने 2004 में जल समझौता रद्द कर दिया, जिससे विवाद और उलझ गया।
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