पार्टी उम्मीदवारों के विरूद्ध निर्दलीय चुनाव लड़ रहे बागियों पर कार्रवाई करने में कांग्रेस और भाजपा दोनों मौन

करीब दो सप्ताह बाद 5 अक्टूबर को हरियाणा की 15वीं विधानसभा के लिए निर्धारित आम चुनाव के मतदान में प्रदेश के दोनों प्रमुख राजनीतिक दल कांग्रेस और भाजपा की ओर से प्रदेश की 90 विधानसभा सीटों में से 89-89 पर ही उम्मीदवार उतारे गए हैं।

Sep 21, 2024 - 17:02
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पार्टी उम्मीदवारों के विरूद्ध निर्दलीय चुनाव लड़ रहे बागियों पर कार्रवाई करने में कांग्रेस और भाजपा दोनों मौन

चंद्रशेखर धरणी, चंडीगढ़ :  करीब दो सप्ताह बाद 5 अक्टूबर को हरियाणा की 15वीं विधानसभा के लिए निर्धारित आम चुनाव के मतदान में प्रदेश के दोनों प्रमुख राजनीतिक दल कांग्रेस और भाजपा की ओर से प्रदेश की 90 विधानसभा सीटों में से 89-89 पर ही उम्मीदवार उतारे गए हैं।

कांग्रेस पार्टी की ओर से भिवानी विधानसभा सीट पर सीपीआई से चुनाव लड़ रहे कामरेड ओम प्रकाश का समर्थन करते हुए अपना उम्मीदवार मैदान में नहीं उतारा है। वहीं, बीजेपी ने सिरसा विधानसभा सीट से पार्टी प्रत्याशी रोहताश जांगड़ा का नामांकन वापसी के अंतिम दिन 16 सितंबर को नामांकन वापस करवा दिया गया था। हालांकि राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि बीजेपी की ओर से इस सीट पर हलोपा से चुनाव लड़ रहे गोपाल कांडा के समर्थन में अपने प्रत्याशी का नामांकन पत्र वापस करवाया गया है, जबकि बीजेपी की ओर से अभी तक इसका कोई साफ कारण नहीं बताया गया है।

गौरतलब है कि कांग्रेस एवं भाजपा दोनों राजनीतिक पार्टियों के  अनेक नेताओ और कार्यकर्ताओं ने इस बार पार्टी टिकट न मिलने कारण अथवा  टिकट कटने के कारण अपनी अपनी पार्टी से बागी होकर निर्दलीय के तौर पर चुनाव के लिए नामांकन भर दिया था जिनमें से कईयों  को तो पार्टी के वरिष्ठ नेताओं द्वारा मान-मुनव्वल कर  16 सितम्बर अर्थात उम्मीदवारी वापसी लेने के अंतिम दिन तक उनका  नामांकन वापिस लेने के लिए मन लिया गया  परन्तु आज भी कांग्रेस के करीब अढाई दर्जन  और भाजपा के करीब डेढ़ दर्जन बागी नेता निर्दलीय अथवा किसी अन्य राजनीतिक दल से अपनी मूल पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार विरूद्ध  चुनावी मैदान में हैं।

बहरहाल, इसी बीच  पंजाब एवं‌ हरियाणा हाईकोर्ट के एडवोकेट और चुनावी-राजनीतिक विश्लेषक  हेमंत कुमार का कहना है कि रोचक बात यह है कि हरियाणा विधानसभा चुनाव में उम्मीदवारी वापसी के  पांच दिन बीत जाने के बाद भी न तो कांग्रेस पार्टी और न ही भाजपा दोनों पार्टियों के शीर्ष नेतृत्व द्वारा ऐसे पार्टी के बागी नेताओं के विरूद्ध  कोई सख्त कार्रवाई जैसे पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से छह वर्ष के लिए निष्कासित करना नहीं की गई है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि कांग्रेस और भाजपा दोनों राजनीतिक दलों को लगता है कि 8 अक्टूबर को चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद सरकार बनाने के लिए  ऐसे निर्दलीय के तौर पर लड़ने वाले और  चुनाव जीते बागी नेताओं का समर्थन लेने की आवश्यकता पड़ सकती है।

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