कांग्रेस का 140वां स्थापना दिवस: आज़ादी की लड़ाई से सत्ता के लंबे अनुभव तक का सफर 

भारतीय राजनीति की सबसे पुरानी और ऐतिहासिक पार्टी इंडियन नेशनल कांग्रेस आज अपना 140वां स्थापना दिवस मना रही है। 28 दिसंबर 1885 को जन्मी कांग्रेस ने न सिर्फ़ ब्रिटिश शासन के ख़िलाफ़ स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व किया, बल्कि आज़ादी के बाद आधुनिक भारत की नींव रखने में भी अहम भूमिका निभाई

Dec 28, 2025 - 14:42
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कांग्रेस का 140वां स्थापना दिवस: आज़ादी की लड़ाई से सत्ता के लंबे अनुभव तक का सफर 

भारतीय राजनीति की सबसे पुरानी और ऐतिहासिक पार्टी इंडियन नेशनल कांग्रेस आज अपना 140वां स्थापना दिवस मना रही है। 28 दिसंबर 1885 को जन्मी कांग्रेस ने न सिर्फ़ ब्रिटिश शासन के ख़िलाफ़ स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व किया, बल्कि आज़ादी के बाद आधुनिक भारत की नींव रखने में भी अहम भूमिका निभाई। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद अंग्रेज़ों को यह एहसास हो गया था कि भारत में असंतोष लगातार बढ़ रहा है। पंजाब में राम सिंह कूका और महाराष्ट्र में बलवंत फड़के जैसे आंदोलनों ने ब्रिटिश हुकूमत की चिंता और बढ़ा दी। इसी पृष्ठभूमि में अंग्रेज़ों ने भारतीय असंतोष को एक संवैधानिक और कानूनी मंच देने की रणनीति बनाई।

वायसराय लॉर्ड डफरिन के दौर में आईसीएस अधिकारी एलन ऑक्टेवियन ह्यूम ने भारतीय नेताओं से विचार-विमर्श के बाद एक राष्ट्रीय संगठन की कल्पना रखी। इसका उद्देश्य ऐसा मंच तैयार करना था, जो भारत में वही भूमिका निभाए जैसी इंग्लैंड में एक विपक्षी पार्टी निभाती है।

कांग्रेस की स्थापना और शुरुआती दौर

28 दिसंबर 1885 को मुंबई के गोकुलदास तेजपाल संस्कृत कॉलेज में इंडियन नेशनल कांग्रेस की स्थापना हुई। इसका नाम अमेरिकी ‘हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स’ की तर्ज़ पर रखा गया। कांग्रेस के पहले अधिवेशन में देशभर के विभिन्न जाति और धर्मों से जुड़े 72 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। वोमेश चंद्र बनर्जी कांग्रेस के पहले अध्यक्ष बने।

शुरुआत में अंग्रेज़ों को लगा कि कांग्रेस उनके लिए फायदेमंद साबित होगी, लेकिन जल्द ही यह मंच देशभर की समस्याओं और आकांक्षाओं की आवाज़ बन गया। कांग्रेस के शिक्षित सदस्य पूरे देश में घूमने लगे, जिससे उन्हें भारत की सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक चुनौतियों की गहरी समझ मिली।

कांग्रेस के तीन अहम चरण

1. उदारवादी राजनीति (1885–1905):
इस दौर में दादाभाई नौरोजी, गोपाल कृष्ण गोखले, बदरुद्दीन तैयबजी और फिरोजशाह मेहता जैसे नेताओं ने संवैधानिक तरीकों से सुधारों की मांग की। याचिकाओं, संवाद और अपील के ज़रिए प्रशासन में भारतीयों की भागीदारी और आर्थिक शोषण के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई गई। हालांकि, यह धीमी रणनीति कई युवा नेताओं को रास नहीं आई।

2. उग्र विचारधारा का उदय (1905 के बाद):
बंगाल विभाजन के विरोध ने उग्र राजनीति को बल दिया। लोकमान्य तिलक, लाला लाजपत राय और बिपिन चंद्र पाल जैसे नेताओं ने स्वराज की खुली मांग की। आंदोलन ज़्यादा आक्रामक और जन-आधारित हो गया।

3. गांधी युग और जन आंदोलन:
1920 में महात्मा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस एक व्यापक जन आंदोलन बन गई। असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन और 1942 का ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ ब्रिटिश शासन के ख़िलाफ़ निर्णायक साबित हुए। 1929 के लाहौर अधिवेशन में कांग्रेस ने पूर्ण स्वतंत्रता का संकल्प लिया।

आज़ादी के बाद कांग्रेस की भूमिका

15 अगस्त 1947 को भारत की आज़ादी के साथ कांग्रेस का ऐतिहासिक मिशन पूरा हुआ, लेकिन इसके बाद भी पार्टी ने लंबे समय तक देश का नेतृत्व किया। पंडित जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के नेतृत्व में योजना आयोग, सार्वजनिक क्षेत्र, वैज्ञानिक विकास, शिक्षा और लोकतांत्रिक मूल्यों की मजबूत नींव रखी गई। प्रोफेसर डॉ. वैभव मस्के के अनुसार, भले ही आज कांग्रेस को राजनीतिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा हो, लेकिन भारतीय राजनीति में उसकी भूमिका अब भी महत्वपूर्ण और सक्रिय बनी हुई है। 

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