हकृवि में ‘फसल अवशेष प्रबंधन’ पर दो दिवसीय कृषि मेला संपन्न, हरियाणा सहित पड़ोसी राज्यों के किसानों की रही भारी भीड़
चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार में दो दिवसीय कृषि मेला (रबी) का समापन हुआ। इस वर्ष कृषि मेले का थीम ‘फसल अवशेष प्रबंधन’ रहा। विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों एवं निजी क्षेत्र की कंपनियों द्वारा नई तकनीकों की जानकारी देने के लिए 262 स्टालें लगाई गई। मेले में किसानों को रबी फसलों की उन्नत किस्मों के प्रमाणित बीज व कृषि साहित्य भी उपलब्ध करवाए साथ ही मिट्टी-पानी की जांच की सुविधा भी उपलब्ध करवाई गई।
सज्जन कुमार, चंडीगढ़:
चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार में दो दिवसीय कृषि मेला (रबी) का समापन हुआ। इस वर्ष कृषि मेले का थीम ‘फसल अवशेष प्रबंधन’ रहा। विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों एवं निजी क्षेत्र की कंपनियों द्वारा नई तकनीकों की जानकारी देने के लिए 262 स्टालें लगाई गई। मेले में किसानों को रबी फसलों की उन्नत किस्मों के प्रमाणित बीज व कृषि साहित्य भी उपलब्ध करवाए साथ ही मिट्टी-पानी की जांच की सुविधा भी उपलब्ध करवाई गई।
विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने बताया कि हकृवि द्वारा इजाद की गई किस्मों की पैदावार ज्यादा व गुणवत्ता से भरपूर होने के कारण किसानों के बीच में उनकी मांग ज्यादा रहती है। विश्वविद्यालय अब तक 295 उन्नत किस्में विकसित कर चुका है तथा इन किस्मों की अन्य प्रदेशों में मांग बढ़ रही है। मेले में विश्वविद्यालय की गेंहू की कम पानी में उगाई जाने वाली डब्ल्यूएच 1142 व 1184, राया की आरएच 1424 व आरएच 761 तथा चारे वाली फसल मल्टीकट जई की एचजे 8 व एचएफओ 707 जैसी नई किस्मों की काफी मांग रही।
मेले में आए किसानों ने जहां सब्जियों के, फलदार पौधों के बीज खरीदे वहीं प्रदर्शन प्रक्षेत्र पर लगी हुई उन्नत किस्मों के प्रदर्शन प्लाटों का भी भ्रमण किया। मेले में नवीनतम कृषि पद्यतियों को जानने के अलावा उनके तकनीकी बुलेटिन भी किसानों के लिए मुख्य आकर्षण रहते हैं। साथ ही प्रश्नोत्तरी सत्र में किसानों ने अपनी खेती संबंधी समस्याओं के निदान मिलते हैं व उन्हे कृषि वैज्ञानिकों से मिलने का मौका भी मिलता है।
इस वर्ष के मेले का थीम ‘फसल अवशेष प्रबंधन’ इसीलिए रखा गया है ताकि किसानों को इसके प्रति जागरूक किया जा सके। वर्तमान समय में हमें फसल अवशेषों को मिट्टी में मिलाकर जीवांश की मात्रा बढ़ाने, फसल विविधिकरण अपनाने के साथ-साथ जल संरक्षण जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर ध्यान देने की जरूरत है। कृषि क्षेत्र में उत्पादन बढ़ाने, जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों से निपटने के लिए कम पानी में उगाई जाने वाली किस्मों के साथ-साथ फलदार पौधों व वृक्षारोपण को भी बढ़ाने की जरूरत है।
‘फसल अवशेष प्रबंधन’
विभिन्न फसलों की कटाई के बाद बचे हुए डंठल, बचे हुए पुआल, भूसा, तना तथा जमीन पर पड़ी हुई पत्तियों आदि को फसल अवशेष कहा जाता है। विगत एक दशक से खेती में मशीनों का प्रयोग बढ़ा है। साथ ही खेतीहर मजदूरों की कमी की वजह से भी यह स्थिति बन गई है। ऐसे में कटाई व गहाई के लिए कंबाईन हार्वेस्टर का प्रचलन बहुत तेजी से बढ़ा है, जिसकी वजह से भारी मात्रा में फसल अवशेष खेत में पड़ा रह जाता है।
जिसका समुचित प्रबन्धन एक चुनौती है। किसान अपनी सहुलियत के लिए इसे जला देते हैं। परन्तु फसल अवशेष को जलाने से खेत की मिट्टी, वातावरण व मनुष्य एवं पशुओं के स्वास्थ्य के लिए कितना घातक है इसका अंदाजा भी लगाना मुश्किल है। विश्वविद्यालय एवं कृषि तथा किसान कल्याण विभाग द्वारा किसानों को जागरूक करने के लिए चलाए जा रहे अभियान के कारण हरियाणा फसल अवशेष प्रबंधन के क्षेत्र में देश का अग्रणीय राज्य बन गया है लेकिन इसे और अधिक प्रचारित करने की जरूरत है।
विश्वविद्यालय के विस्तार शिक्षा निदेशक डॉ. बलवान सिंह मंडल ने मेले में दी गई सुविधाओं जैसे मिट्टी पानी की जांच, बीज व पौध तथा कृषि साहित्य की उपलब्धता के साथ नई किस्मों के प्रदर्शन प्लाट के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी दी। किसानों को प्रदर्शन प्लाट दिखाने के लिए गाडिय़ों का विशेष इंतेजाम किया गया था। युवा किसानों के द्वारा कृषि क्षेत्र से संबंधित स्वरोजगार स्थापित करने हेतु मेले में विभिन्न प्रकार की जानकारियां प्रदान की गई।
2 करोड़ 39 लाख के बिके बीज
मेले में दोनो दिन 39 हजार 600 किसानों की उपस्थिति दर्ज की गई। उन्होंने नए उन्नत बीजों, कृषि विधियों, सिंचाई यंत्रों, कृषि मशीनरी आदि की जानकारी हासिल की। मेले में आगामी रबी फसलों के बीजों के लिए किसानों में भारी उत्साह देखा गया जहां किसानों ने गेहूं, जौ, सरसों, चना, मेथी, मसूर, बरसीम, जई, तथा मक्का की उन्नत किस्मों के लगभग 2 करोड़ 39 लाख रूपए के बीज खरीदे।
मेले में 65 हजार रूपए के कृषि साहित्य की बिक्री हुई। सब्जी व बागवानी फसलों के बीजों की 1 लाख 97 हजार 900 रूपए की बिक्री हुई। किसानों ने मेले में मिट्टी व पानी जांच सेवा का लाभ उठाते हुए मिट्टी के 123 तथा पानी के 290 नमूनों की जांच करवाई। किसानों ने विश्वविद्यालय के अनुसंधान फार्म पर वैज्ञानिकों द्वारा उगाई गई फसलें भी देखीं तथा उनमें प्रयोग की गई प्रौद्योगिकी के साथ-साथ जैविक खेती बारे जानकारी हासिल की।
What's Your Reaction?