ट्रंप ने शपथ लेते ही चीन को दिखाए तेवर, टैरिफ से बढ़ाई दुनिया की धड़कन
ट्रंप की अमेरिका फर्स्ट नीति ने रातों-रात कई देशों के साथ अमेरिका के संबंधों को बदल दिया। भारत में भी ट्रंप के आने का मिला-जुला असर देखने को मिल सकता है।
डोनाल्ड ट्रंप के दोबारा अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के बाद उनके द्वारा लिए गए फैसले और कई मामलों पर की गई घोषणाओं का वैश्विक अर्थव्यवस्था और कूटनीतिक संबंधों पर गहरा असर पड़ रहा है। ट्रंप की अमेरिका फर्स्ट नीति ने रातों-रात कई देशों के साथ अमेरिका के संबंधों को बदल दिया। भारत में भी ट्रंप के आने का मिला-जुला असर देखने को मिल सकता है।
डोनाल्ड ट्रंप ने पनामा नहर पर चीन के नियंत्रण को सीधे चुनौती दी है और पनामा नहर को अमेरिका के नियंत्रण में लाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। चीन के प्रति सख्त नीति को जारी रखते हुए अमेरिका ने विश्व स्वास्थ्य संगठन से भी हटने का फैसला किया है। ट्रंप राष्ट्रपति बाइडेन द्वारा चीन से संबंध रखने वाले अमेरिकी जनरल मार्क मिली को दी गई माफी से भी काफी नाराज हैं।
अमेरिकी प्रशासन ने अपने घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए जो टैरिफ लगाने का फैसला किया है, उसका चीनी निर्यात पर काफी असर पड़ेगा। शपथ ग्रहण समारोह में क्वाड देशों के विदेश मंत्रियों को आमंत्रित करके और अगले दिन अमेरिका में क्वाड की बैठक करके ट्रंप ने यह संदेश दिया है कि भविष्य में भी चीन के खिलाफ कार्रवाई जारी रहेगी। पहले ही दिन पुतिन से नाराज हो गए
डोनाल्ड ट्रंप को उम्मीद थी कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन उनके शांति प्रस्ताव को स्वीकार कर लेंगे। ट्रंप के शपथ ग्रहण से ठीक दो घंटे पहले पुतिन ने रूस-यूक्रेन युद्ध में संघर्ष विराम को अस्वीकार करने की घोषणा कर दी। यह राष्ट्रपति ट्रंप के लिए किसी झटके से कम नहीं है। अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए ट्रंप पुतिन पर निजी हमला करने से भी नहीं चूके। ट्रंप ने कहा कि पुतिन ने रूस को बर्बाद कर दिया है। चेतावनी भरे लहजे में ट्रंप ने कहा कि शांति प्रस्ताव रूस के लिए फायदे का सौदा है और पुतिन को यह सौदा कर लेना चाहिए।
यूरोप का भरोसा टूटा, नाटो को लेकर अनिश्चितता बढ़ी
हालांकि डोनाल्ड ट्रंप शुरू से ही कहते आ रहे हैं कि यूरोपीय देशों को नाटो का खर्च उठाने के लिए आगे आना चाहिए, लेकिन रूस के साथ चल रहे युद्ध के बीच यूरोपीय देश नाटो को लेकर ट्रंप के रुख से काफी चिंतित हैं। यूरोपीय देशों को डर है कि अगर अमेरिका नाटो के प्रति उदासीनता दिखाता है तो यह रूस के लिए बड़ा मौका होगा और यूरोपीय देशों की सुरक्षा पर बहुत बड़ा संकट खड़ा हो सकता है।
ईरान को लेकर नए युद्ध का माहौल
ट्रंप के सत्ता संभालने से पहले इजरायल-हमास के बीच हुए युद्ध विराम के बाद उम्मीद बढ़ गई थी कि मध्य पूर्व में पिछले सवा साल से चल रहा युद्ध अब खत्म हो जाएगा, लेकिन हालात तेजी से बदल रहे हैं। ट्रंप और उनके नए विदेश मंत्री मार्को रुबियो ईरान के प्रति सख्त रुख अपना रहे हैं। आने वाले दिनों में इजरायल इस मौके का फायदा उठाना चाहेगा और ईरान के खिलाफ इजरायल और अमेरिका की कोई भी कार्रवाई मध्य पूर्व में नए युद्ध को जन्म दे सकती है।
जलवायु परिवर्तन के खिलाफ अभियान को लगा झटका
अपने पहले ही दिन के फैसलों में ट्रंप ने पेरिस जलवायु समझौते से अमेरिका के हटने का ऐलान कर दिया है। इस समझौते से हटकर अमेरिका अब लीबिया, सीरिया जैसे देशों में शामिल हो गया है, जो जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए किए जा रहे प्रयासों में शामिल नहीं होंगे। छोटे समुद्री द्वीप वाले देशों या फिर तमाम विकासशील देशों के लिए यह दुखद खबर है।
अवैध प्रवासियों के खिलाफ सबसे बड़ा अभियान
शपथ लेने के बाद अपने भाषण में डोनाल्ड ट्रंप ने सबसे पहले मैक्सिको सीमा पर राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा की। ट्रंप ने अमेरिकी इतिहास में प्रवासियों के खिलाफ सबसे बड़े अभियान का ऐलान किया है। ट्रंप के इन कदमों से न सिर्फ पड़ोसी देश मैक्सिको के साथ अमेरिका के रिश्ते खराब होंगे, बल्कि यूरोप में अप्रवासियों के खिलाफ आवाजें भी तेज होने की आशंका है।
भारत पर ट्रंप के आने का असर
पिछले कुछ दशकों में भारत और अमेरिका के बीच बहुआयामी संबंध विकसित हुए हैं। यह देखा गया है कि अमेरिका का राष्ट्रपति कोई भी बने, भारत के साथ संबंधों को मजबूत करने में निरंतरता बनी रही है। ट्रंप के आने का भारत पर मिलाजुला असर देखने को मिल सकता है।
ट्रंप के आने के फायदे
डोनाल्ड ट्रंप के शासनकाल में भारत को रक्षा और तकनीक के क्षेत्र में सकारात्मक सहयोग देखने को मिल रहा है। क्वाड देशों को तरजीह देकर ट्रंप ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपना एजेंडा जाहिर कर दिया है।
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