पंजाब में पराली जलाने की घटनाएं 75% घटी, किसान हो रहे जागरूक
हर साल की तरह, राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली एक बार फिर गंभीर वायु प्रदूषण की चपेट में है। इसके साथ ही, इस प्रदूषण के स्रोतों को लेकर राजनीतिक बहस और आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी शुरू हो गया है
हर साल की तरह, राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली एक बार फिर गंभीर वायु प्रदूषण की चपेट में है। इसके साथ ही, इस प्रदूषण के स्रोतों को लेकर राजनीतिक बहस और आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी शुरू हो गया है। हालाँकि, इस साल यह बहस एक नए मोड़ पर है। पंजाब से आए नए आँकड़े पराली जलाने की घटनाओं में एक अभूतपूर्व गिरावट दर्शाते हैं।
सबसे पहले, उन आँकड़ों पर नज़र डालना ज़रूरी है जो इस बहस को एक नई दिशा दे रहे हैं। 15 सितंबर से 21 अक्टूबर के बीच पराली जलाने की घटनाओं की तुलनात्मक संख्या एक महत्वपूर्ण कहानी बयां करती है। जहाँ साल 2022 में इसी अवधि के दौरान 3114 घटनाएँ दर्ज की गई थीं, वहीं 2023 में यह घटकर 1764, 2024 में 1510 और इस साल 2025 में यह आँकड़ा आश्चर्यजनक रूप से गिरकर महज़ 415 रह गया है। यह आँकड़ा इस सीज़न में 75% से अधिक की भारी गिरावट का स्पष्ट प्रमाण है, जो पंजाब सरकार के प्रयासों और किसानों के सहयोग की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।
पहला और सबसे महत्वपूर्ण सवाल दिल्ली सरकार और उन नेताओं से है जो पंजाब पर उंगली उठा रहे हैं: यदि पंजाब में पराली जलाना 75% से अधिक कम हो गया है, तो दिल्ली की हवा में ज़हर घोलने वाले प्रमुख कारक कौन से हैं? क्या दिल्ली के प्रदूषण के लिए केवल पंजाब को ज़िम्मेदार ठहराना, दिल्ली के अपने आंतरिक प्रदूषण स्रोतों—जैसे वाहन उत्सर्जन, औद्योगिक प्रदूषण और निर्माण स्थलों की धूल—की अनदेखी करना नहीं है?
एक और तकनीकी और तार्किक प्रश्न एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) की तुलना से उठता है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, वर्तमान में पंजाब का AQI दिल्ली की तुलना में काफी बेहतर है (लगभग 5 गुना तक)। यहाँ सवाल यह बनता है कि अगर दिल्ली का दम घोंटने वाला स्मॉग पंजाब से आ रहा है, तो पंजाब की अपनी हवा इतनी साफ़ कैसे है? हवा का यह पैटर्न तार्किक रूप से समझाना मुश्किल है कि प्रदूषित हवा पंजाब को छोड़कर सीधे दिल्ली को कैसे प्रभावित कर रही है। यह विसंगति इस दावे पर संदेह पैदा करती है कि दिल्ली के संकट का मुख्य कारण पंजाब के खेत हैं।
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