PM मोदी ने की तारीफ, सिंगापुर दुनिया का सबसे महंगा देश क्यों?
दोनों देशों के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर हुए हैं। इस समझौते के तहत दोनों देश मिलकर सेमीकंडक्टर की डिजाइनिंग और मैन्युफैक्चरिंग पर ध्यान देंगे। सिंगापुर भले ही अपने पर्यटन स्थलों, साफ-सफाई और शॉपिंग के लिए जाना जाता हो
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सिंगापुर के दौरे पर हैं। पीएम लॉरेंस वोंग से मुलाकात के दौरान उन्होंने कहा, 'सिंगापुर सिर्फ मित्र देश नहीं है, यह हर विकासशील देश के लिए प्रेरणा है। हम भारत में कई सिंगापुर बनाना चाहते हैं।' दोनों देशों के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर हुए हैं। इस समझौते के तहत दोनों देश मिलकर सेमीकंडक्टर की डिजाइनिंग और मैन्युफैक्चरिंग पर ध्यान देंगे। सिंगापुर भले ही अपने पर्यटन स्थलों, साफ-सफाई और शॉपिंग के लिए जाना जाता हो, लेकिन इसकी गिनती दुनिया के महंगे देशों में होती है। इस साल आई जूलियस बेयर की रिपोर्ट ने भी इसकी पुष्टि की है। रिपोर्ट में सिंगापुर को महंगाई के मामले में दुनिया का सबसे महंगा देश बताया गया। दूसरे नंबर पर हांगकांग और तीसरे नंबर पर लंदन है।
अब सवाल उठता है कि सिंगापुर में ऐसा क्या है कि उसने महंगाई के मामले में दुनियाभर के देशों को पीछे छोड़ दिया है। जानिए इसकी बड़ी वजह।
महंगाई के मामले में सिंगापुर दुनिया को कैसे पीछे छोड़ रहा है?
वर्ल्डोमीटर की रिपोर्ट के मुताबिक, सिंगापुर की आबादी 58 लाख है, यहां की बढ़ती आबादी और लिमिटेड स्पेस महंगाई बढ़ने की एक अहम वजह है, साल-दर-साल यहां प्रॉपर्टी के दामों में तेजी आई है, फिर चाहें मामला रेजिडेंशियल हो या फिर कॉमर्शियल, यहां का माहौल बिजनेस फ्रेंडली होने के कारण विदेशी निवेशक और बहुराष्ट्रीय कंपनियां यहां आ रही हैं। नतीजा, प्रॉपर्टी की मांग बढ़ रही है, यहां जमीन की औसतन कीमत 1,783 डॉलर प्रति वर्ग फ़ुट है।
लिमिटेड स्पेस और बढ़ती आबादी के कारण यहां के 77.8 फीसदी लोग फ्लैट में रह रहे हैं, मात्रा 4.8 फीसदी लोगों की जमीन पर मकान हैं, यानी लैंडेड प्रॉपर्टी है, यह देश को महंगा बनाने की एक बड़ी वजह है। यहां के लिविंग स्टैंडर्ड ने इसे और महंगा बना दिया है। साफ-सफाई, हाईक्लास लिविंग और खानपान ऐसी तमाम वजह हैं जो इस पर मुहर लगाती हैं।
लोगों की सेफ्टी, क्वालिटी ऑफ लाइफ जैसे मामलों में सिंगापुर लोगों की उम्मीदों पर खतरा उतरता है, इसे बेहतर करने के लिए हो रहे प्रयास इसे महंगा देश बना रहे हैं।
मजबूत करंसी और आयात पर निर्भरता
सिंगापुर की मुद्रा दुनिया के कई बड़े देशों से ज़्यादा मजबूत है, विदेशी पर्यटकों के लिए यह मुद्रा महंगी साबित होती है, इसका असर उनकी खरीदारी और खर्चों पर पड़ता है। सिंगापुर उन देशों में से है जो खाने-पीने की बहुत सी चीज़ें आयात करते हैं, इसमें सबसे अहम चीज़ है खाने-पीने की चीज़ें और कच्चा माल, आयात से देश पर भारी बोझ पड़ता है, परिवहन लागत ज़्यादा होने की वजह से ये चीज़ें आम लोगों तक पहुँचते-पहुँचते और भी महंगी हो जाती हैं।
यह देश अपने बेहद कुशल कर्मचारियों के लिए जाना जाता है, कार्यस्थल पर ज़्यादा अनुभवी और उच्च शिक्षित लोगों की वजह से वेतन मानक भी अच्छे हैं, नतीजतन, चीज़ों की सेवा लागत बढ़ जाती है, यही वजह है कि यहाँ सेवाएँ महंगी हैं।
यहाँ व्यवसाय स्थापित करने का माहौल भले ही बेहतर हो, लेकिन किराया, उससे जुड़ी सुविधाएँ और वेतन मानक ऊंचे हैं, टैक्स और शुल्क बोझ को और बढ़ाने का काम करते हैं, इससे चीज़ों की कीमत बढ़ जाती है, उनका उद्देश्य लोगों को विश्वस्तरीय सुविधाएँ देना है, इस तरह उस लक्ष्य तक पहुँचने में लागत बढ़ती है और साथ ही महंगाई भी।
सरकारी नीतियां भी जिम्मेदार
सिंगापुर में महंगाई बढ़ने के लिए सरकारी नीतियां भी जिम्मेदार हैं, मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, यहां की सरकार कई बार प्रॉपर्टी की कीमत को बरकरार रखने के लिए घरों की सप्लाई या तो रोकती है या उसे कंट्रोल करती है, प्रॉपर्टी ट्रांजेक्शन पर लगने वाला टैक्स और फीस और भार बढ़ाती है।
कोई देश कैसे महंगा साबित किया जाता है, यह भी जान लेते हैं, इसके अलग-अलग मानक है, जैसे- यहां प्रॉपर्टी के दाम, कार ओनरशिप, प्राइवेट मेडिकल केयर, कंज्यूमर गुड्स सर्विसेज, लिविंग कॉस्ट समेत कई फैक्टर्स इसमें शामिल किए जाते हैं, इसके आधार पर उस देश को रहने के लिए महंगा सा सस्ता देश बताया जाता है।
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