SYL को लेकर केंद्र सरकार की पहल, नहर के पानी बंटवारे को लेकर हरियाणा-पंजाब को लिखा पत्र
केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय ने हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान को पत्र भेजकर इस मुद्दे पर जल्द बैठक करने को कहा है। सूत्रों के मुताबिक यह वार्ता 10 जुलाई के आसपास दिल्ली में हो सकती है।

सतलुज-यमुना लिंक (SYL) नहर के जल बंटवारे को लेकर पंजाब और हरियाणा के बीच दशकों पुराने विवाद को सुलझाने के लिए केंद्र सरकार ने एक बार फिर पहल की है।
केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय ने हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान को पत्र भेजकर इस मुद्दे पर जल्द बैठक करने को कहा है। सूत्रों के मुताबिक यह वार्ता 10 जुलाई के आसपास दिल्ली में हो सकती है।
आपको बता दें कि केंद्रीय जल शक्ति मंत्री सीआर पाटिल ने यह पहल तब की है, जब उनके पूर्ववर्ती मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के समय इस मुद्दे पर वार्ता विफल हो गई थी। अब केंद्र दोनों राज्यों के बीच मध्यस्थता के जरिए समाधान निकालने की कोशिश कर रहा है।
मई में सुप्रीम कोर्ट ने सुलह के लिए कहा था
मई में सुप्रीम कोर्ट ने फिर से पंजाब और हरियाणा को मामले को सुलझाने के लिए केंद्र के साथ सहयोग करने का निर्देश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने पहले जल शक्ति मंत्री को इस मामले में मुख्य मध्यस्थ नियुक्त किया था और उनसे कहा था कि वे केवल "मूक दर्शक" बने रहने के बजाय सक्रिय भूमिका निभाएं।
पाटिल ने पुष्टि की कि विवाद को सुलझाने के प्रयास जारी हैं। पाटिल ने कहा, "सुप्रीम कोर्ट ने मामले में कुछ आदेश पारित किए हैं और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार, हम एसवाईएल मुद्दे को सुलझाने की दिशा में आगे बढ़ेंगे।"
यहां पढ़िए क्या है पूरा मामला..
1982 से ठंडे बस्ते में है SYL
यह मामला 214 किलोमीटर लंबी SYL नहर के निर्माण से जुड़ा है, जिसमें से 122 किलोमीटर पंजाब और 92 किलोमीटर हरियाणा में बनना था। हरियाणा ने अपना हिस्सा पूरा कर लिया, जबकि पंजाब ने 1982 में इस परियोजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया। यह मामला 1981 का है, जब दोनों राज्यों के बीच जल बंटवारे को लेकर समझौता हुआ था और बेहतर जल बंटवारे के लिए एसवाईएल नहर बनाने का फैसला किया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब के कानून को खारिज कर दिया
जनवरी 2002 में सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा के पक्ष में फैसला सुनाया और पंजाब को समझौते की शर्तों के मुताबिक नहर बनाने को कहा, लेकिन पंजाब विधानसभा ने 1981 के समझौते को खत्म करने के लिए 2004 में कानून पारित कर दिया। 2004 के पंजाब के इस कानून को 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। तब से यह मामला सुप्रीम कोर्ट में अटका हुआ है। अब अगली सुनवाई की तारीख 13 अगस्त तय की गई है।
पिछली तारीख पर सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब को लगाई थी फटकार
इस मामले में 6 मई को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस गवई ने पंजाब सरकार को फटकार लगाते हुए कहा था कि अगर यह मनमानी नहीं है तो क्या है? नहर बनाने का आदेश पारित होने के बाद इसके निर्माण के लिए अधिग्रहित की गई जमीन को डी-नोटिफाई कर दिया गया?
यह कोर्ट के आदेश की अवहेलना करने का प्रयास है। यह मनमानी का स्पष्ट मामला है। इससे तीनों राज्यों को मदद मिलनी चाहिए थी। परियोजना के लिए जमीन अधिग्रहित की गई और फिर उसे डी-नोटिफाई कर दिया गया।
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