विधानसभा चुनाव के बीच भूपेंद्र हुड्डा पर ED का बड़ा एक्शन, 834 करोड़ की संपत्ति की जब्त

Aug 30, 2024 - 11:28
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विधानसभा चुनाव के बीच भूपेंद्र हुड्डा पर ED का बड़ा एक्शन, 834 करोड़ की संपत्ति की जब्त
विधानसभा चुनाव के बीच भूपेंद्र हुड्डा पर ED का बड़ा एक्शन, 834 करोड़ की संपत्ति की जब्त

चंद्रशेखर धरणी, चंडीगढ़:

हरियाणा में विधानसभा चुनाव के बीच प्रदेश के पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा पर ईडी ने बड़ी कार्रवाई की है। ईडी ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा, मेसर्स ईमार इंडिया लिमिटेड और एमजीएफ डेवलपमेंट लिमिटेड समेत अन्य आरोपियों के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग के एक केस में 834 करोड़ रुपए की संपत्ति जब्त की है। 

दिल्ली और गुरुग्राम के 20 गांवों में जब्त की गई संपत्ति

ईडी की ओर से जब्त की गई संपत्ति गुरुग्राम और दिल्ली के 20 गांवों में है। आरोप है कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा और इन कंपनियों ने नगर एवं ग्राम नियोजन विभाग के तत्कालीन डायरेक्टर त्रिलोक चंद गुप्ता के साथ मिलकर सस्ते दामों पर जमीन ली थी। इसकी वजह से न केवल लोगों को बल्कि, सरकार को भी नुकसान हुआ था। ईडी ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा से इस साल जनवरी 204 में मानेसर लैंड डील केस में चंडीगढ़ में 7 घंटे पूछताछ की थी। इसके साथ ही ईडी ने 2004-07 के दौरान हुए गुरुग्राम के 1500 करोड़ के भूमि घोटाले में मनी लॉन्ड्रिंग की जांच के सिलसिले में हुड्डा को नोटिस भेजकर ईडी मुख्यालय बुलाया था।

छह साल पहले सीबीआई ने दर्ज किया था केस

बताया जा रहा है कि करीब छह साल पहले गुड़गांव में 1,417 एकड़ भूमि के अधिग्रहण में भ्रष्टाचार के आरोप में सीबीआई ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा के खिलाफ केस दर्ज किया था। केस दर्ज करने के बाद सीबीआई ने हुड्डा के रोहतक स्थित घर के अलावा दिल्ली, गुड़गांव, चंडीगढ़ और मोहाली में विभिन्न बिल्डर्स के 20 से ज्यादा परिसरों पर छापे मारे थे। 

सुप्रीम कोर्ट ने सौंपी थी जांच

गुरुग्राम के सेक्टर 58 से 63 और 65 से 67 में भूमि अधिग्रहण में अनियमितता की जांच सुप्रीम कोर्ट ने 1 नवंबर  2017 को सीबीआई को सौंपी थी। केस में भूपेंद्र सिंह हुड्डा, त्रिलोक चंद गुप्ता, मेसर्स ईमार एमजीएफ लैंड लिमिटेड और 14 अन्य कॉलोनाइजर कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई हुई थी।

जांच में यह आया सामने 

सूत्रों के अनुसार ईडी की जांच में पता चला कि मेसर्स ईमार एमजीएफ लैंड लिमिटेड ने 27.306 एकड़ जमीन के लिए किसानों के साथ छह पूर्व-दिनांकित विकास समझौते किए थे। इन समझौतों पर अप्रैल 2009 की गलत तारीख लिखी गई थी, लेकिन वास्तव में मार्च 2010 में हस्ताक्षर किए गए थे। जांच में आगे पता चला कि इन तथाकथित सहयोग समझौतों को इस तरह से गढ़ा गया था कि ऐसा लगे कि ये भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 की धारा 4 के तहत अधिसूचना से पहले किए गए थे, ताकि डीटीसीपी से लाइसेंस प्राप्त करने में आने वाली जटिलताओं से बचा जा सके।

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