15 अगस्त के दिन पतंग क्यों उड़ाते हैं लोग, आजादी से क्या है कनेक्शन ?
स्वतंत्रता दिवस यानी 15 अगस्त के मौके पर देशभर में तिरंगे की शान और देशभक्ति के गीतों के साथ आसमान में रंग-बिरंगी पतंगों का मेला सजता है। दिल्ली की गलियों से लेकर छतों तक, पुरानी दिल्ली, चांदनी चौक और लखनऊ जैसे शहरों में पतंगबाजी इस दिन के उत्सव का अहम हिस्सा है
स्वतंत्रता दिवस यानी 15 अगस्त के मौके पर देशभर में तिरंगे की शान और देशभक्ति के गीतों के साथ आसमान में रंग-बिरंगी पतंगों का मेला सजता है। दिल्ली की गलियों से लेकर छतों तक, पुरानी दिल्ली, चांदनी चौक और लखनऊ जैसे शहरों में पतंगबाजी इस दिन के उत्सव का अहम हिस्सा है। बच्चे, युवा और बुजुर्ग सभी जोश और उमंग के साथ पतंग उड़ाते हैं, लेकिन यह परंपरा केवल मनोरंजन तक सीमित नहीं है, इसके पीछे एक गहरी ऐतिहासिक कहानी और आज़ादी का संदेश छिपा है।
परंपरा की शुरुआत
पतंगबाजी की यह परंपरा 1928 में शुरू हुई, जब भारत ब्रिटिश हुकूमत से आज़ादी की लड़ाई लड़ रहा था। उस समय साइमन कमीशन के विरोध में स्वतंत्रता सेनानियों ने अनोखा तरीका अपनाया-काली पतंगों पर "Simon Go Back" लिखकर उन्हें आसमान में उड़ाया गया। ये पतंगें ब्रिटिश शासन के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध का प्रतीक बनीं और लोगों में स्वतंत्रता की भावना को और प्रबल कर गईं।
आज़ादी का प्रतीक बनी पतंग
1947 में स्वतंत्रता मिलने के बाद पतंगबाजी विरोध के बजाय खुशी और जश्न का माध्यम बन गई। अब 15 अगस्त को उड़ने वाली पतंगें आज़ादी, उम्मीद और खुले आसमान में सपनों की उड़ान का प्रतीक हैं। खासकर तिरंगे के रंगों वाली पतंगें देशभक्ति की भावना को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाती हैं।
बाजारों में उत्सव का रंग
स्वतंत्रता दिवस से पहले दिल्ली और कई अन्य शहरों के बाजार तिरंगे और रंग-बिरंगी पतंगों से सज जाते हैं। लोग बड़े उत्साह के साथ इन्हें खरीदते हैं और इस परंपरा को निभाते हैं। हालांकि, कुछ क्षेत्रों में मांझे से होने वाली दुर्घटनाओं के कारण पतंग उड़ाने पर पाबंदी या सख्ती भी रहती है। इसलिए पतंगबाजी करते समय सावधानी बरतना और यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि मांझा किसी इंसान, जानवर या पक्षी को नुकसान न पहुंचाए।
15 अगस्त की पतंगबाजी केवल एक खेल नहीं, बल्कि यह स्वतंत्रता के जश्न, इतिहास की याद और सपनों को आसमान में उड़ाने की खूबसूरत परंपरा है।
What's Your Reaction?