साधना और श्रद्धा: 5,000 नागा साधुओं का संगम घाट पर अनुष्ठान, किया खुद का पिंडदान
प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ मेले के दौरान, शनिवार को जूना अखाड़े से जुड़े 5,000 साधकों ने नागा साधु बनने की प्रक्रिया शुरू की।
प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ मेले के दौरान, शनिवार को जूना अखाड़े से जुड़े 5,000 साधकों ने नागा साधु बनने की प्रक्रिया शुरू की। इस अवसर पर उन्होंने संगम घाट पर अपने और अपनी सात पीढ़ियों का पिंडदान किया। यह एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है जो नागा साधुओं की दीक्षा का हिस्सा है।
नागा साधु बनने की प्रक्रिया
नागा साधु बनने की प्रक्रिया अत्यंत कठिन और लंबी होती है, जिसमें साधकों को लगभग छह वर्षों तक तैयारी करनी होती है। इस दौरान वे केवल एक लंगोट पहनते हैं और अंत में दिगंबर जीवन अपनाते हैं। नागा साधुओं की दीक्षा मौनी अमावस्या के दिन विशेष पूजा और स्नान के साथ होती है, जिसमें साधक गंगा में 108 डुबकियां लगाते हैं और उनकी आधी शिखा काटी जाती है.
पिंडदान का महत्व
पिंडदान का यह अनुष्ठान न केवल साधकों के लिए बल्कि उनके पूर्वजों के लिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है। यह प्रक्रिया उनके जीवन के मोड़ को दर्शाती है, जहां वे सांसारिक बंधनों को छोड़कर आध्यात्मिकता की ओर बढ़ते हैं। संगम घाट पर पिंडदान करते समय, साधकों ने अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि अर्पित की, जो उनकी धार्मिक आस्था का प्रतीक है.
महाकुंभ का महत्व
महाकुंभ मेला एक प्राचीन सनातनी परंपरा का प्रतीक है और इसे हर छह वर्ष में आयोजित किया जाता है। इस बार, महाकुंभ में कुल 8,000 साधुओं के नागा बनने की उम्मीद है, जो विभिन्न अखाड़ों से संबंधित हैं। नागा साधु अपनी अनोखी वेशभूषा और व्यवहार के कारण श्रद्धालुओं और पर्यटकों का ध्यान आकर्षित करते हैं.
इस प्रकार, प्रयागराज का महाकुंभ मेला न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और परंपरा का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसमें लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं.
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