पुतिन का भारत दौरा, इन खास रक्षा समझौतों पर लग सकती है मुहर

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के भारत दौरे का आज दूसरा दिन है। यह यात्रा भारत-रूस के बीच दशकों पुराने सामरिक और रक्षा संबंधों को नई दिशा देने वाली मानी जा रही है।

Dec 5, 2025 - 12:57
Dec 5, 2025 - 12:58
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पुतिन का भारत दौरा, इन खास रक्षा समझौतों पर लग सकती है मुहर

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के भारत दौरे का आज दूसरा दिन है। यह यात्रा भारत-रूस के बीच दशकों पुराने सामरिक और रक्षा संबंधों को नई दिशा देने वाली मानी जा रही है। दोनों देशों की निगाहें इस शिखर वार्ता में नई रक्षा परियोजनाओं और तकनीकी सहयोग समझौतों पर टिकी हैं।

रूस से हमारा दशकों पुराना रिश्ता

भारत और रूस का रक्षा सहयोग सोवियत युग से चला आ रहा है। उस समय भारत ने अपने सैन्य आधुनिकीकरण के लिए रूस पर भरोसा किया था। लड़ाकू विमानों से लेकर युद्धपोतों और मिसाइलों तक, भारत की बड़ी सैन्य खरीद रूस से होती रही है। बीते वर्षों में फ्रांस, अमेरिका और इस्राइल से रक्षा सौदे बढ़े हैं, लेकिन भारत की अधिकांश रक्षा प्रणाली अब भी रूसी तकनीक पर निर्भर है।

2021–2031 रक्षा सहयोग समझौता

दोनों देशों ने 2021 में सैन्य तकनीकी सहयोग कार्यक्रम को 2031 तक बढ़ाने पर सहमति जताई थी। इसके तहत रिसर्च, विकास, उत्पादन और हथियार प्रणालियों के रखरखाव पर मिलकर काम करने का निर्णय हुआ। भारत और रूस के बीच रक्षा मामलों की समीक्षा के लिए भारत-रूस अंतर-सरकारी सैन्य तकनीकी सहयोग आयोग (IRIGC–MTC) काम करता है, जिसकी स्थापना वर्ष 2000 में हुई थी। यह आयोग हर साल बैठक कर प्रगति की समीक्षा करता है। इसके तहत दो कार्य समूह और नौ सब–ग्रुप अलग-अलग तकनीकी विषयों पर काम करते हैं।

मौजूदा परियोजनाएं: ब्रह्मोस से लेकर एके-203 तक

भारत और रूस के बीच वर्तमान में टी-90 टैंक और सुखोई-30 MKI लड़ाकू विमान का भारत में लाइसेंस उत्पादन जारी है। इसके अलावा कामोव (Ka-31) हेलीकॉप्टर की पूर्ति भी रूस से की जा रही है। दोनों देशों ने अब संयुक्त रिसर्च और निर्माण की दिशा में कदम बढ़ा दिया है। इस सहयोग का सबसे बड़ा उदाहरण ब्रह्मोस सुपरसोनिक मिसाइल है, जो भारत-रूस की साझेदारी का प्रतीक है। इसी तरह, AK-203 राइफल का उत्पादन “मेक इन इंडिया” के तहत भारत में शुरू किया गया है।

पुतिन की यात्रा में मुख्य फोकस रक्षा समझौते पर रहेगा

पुतिन की मौजूदा यात्रा के दौरान भारत रूस से S-400 एयर डिफेंस सिस्टम की अतिरिक्त रेजीमेंट खरीदने पर विचार कर रहा है। यह सिस्टम भारतीय वायुसेना के सबसे घातक हथियारों में से एक है, जो 40 से 400 किलोमीटर की रेंज में दुश्मन के विमान, ड्रोन और मिसाइलों को हवा में ही नष्ट कर सकता है। 2018 में हुए समझौते के तहत भारत को पांच रेजीमेंट मिलनी हैं, जिनमें से तीन की डिलीवरी हो चुकी है। रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण दो रेजीमेंटों की डिलीवरी 2026 तक टल गई है। 

एस-500 खरीदने पर हो सकता है विचार

एस-500 ‘प्रोमिथियस’ अगली पीढ़ी की वायु रक्षा प्रणाली भारत अब रूस की नई पीढ़ी की वायु रक्षा प्रणाली एस-500 प्रोमिथियस खरीदने पर भी विचार कर रहा है। यह एस-400 का एडवांस्ड वर्जन है, जिसकी रेंज 600 किलोमीटर तक है और यह 200 किलोमीटर की ऊंचाई पर भी टारगेट को नष्ट कर सकता है। एस-500 न केवल विमान, बल्कि हाइपरसोनिक और बैलिस्टिक मिसाइलों को भी आसानी से गिराने में सक्षम है। इसकी 77 N6-N1 मिसाइलें चीन के J-20 जैसे स्टेल्थ फाइटर जेट्स को भी निशाना बना सकती हैं।

सुखोई-57 लड़ाकू विमान उत्पान का प्रस्ताव

रूस ने भारत को अपने पांचवीं पीढ़ी के सुखोई-57 (Su-57) स्टेल्थ फाइटर जेट का संयुक्त उत्पादन करने का प्रस्ताव दिया है। इस डील से भारत अपने एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (AMCA) प्रोजेक्ट के पूरा होने तक अपनी जरूरतें पूरी कर सकता है। सुखोई-57 में AESA रडार सिस्टम, AI-आधारित एवियोनिक्स, स्टेल्थ तकनीक और लंबी दूरी की मिसाइलें लगी हैं। रूस जल्द ही इसमें नया AL-51A1 इंजन लगाएगा, जिससे यह बिना आफ्टरबर्नर के सुपरसोनिक गति से उड़ सकेगा।

F-35 से मुकाबले में क्यों खास है सुखोई-57

सैन्य विशेषज्ञों का कहना है कि सुखोई-57 अमेरिकी F-35 की तुलना में कई मामलों में बेहतर है। यह हिमालयी और रेगिस्तानी इलाकों में समान दक्षता के साथ ऑपरेट कर सकता है। इसकी डॉगफाइट क्षमता, मजबूत संरचना और कम रखरखाव लागत इसे खास बनाती है। 10,300 किलोग्राम ईंधन क्षमता वाला यह जेट लंबी दूरी तक उड़ान भरने में सक्षम है और कई अभियानों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।

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