जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव से पहले नेताओं ने बदले पाले

जम्मू-कश्मीर में बहुप्रतीक्षित विधानसभा चुनावों की तैयारी के बीच राजनीतिक दलों में ‘आयाराम-गयाराम’ का दौर भी चल रहा है, जिनमें कई नेता व्यक्तिगत विवादों और अपने मौजूदा हालात से असंतोष के कारण पाला बदल रहे हैं। राज्य में 18 सितंबर से तीन चरणों के चुनाव शुरू होंगे। वर्ष 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश के रूप में पुनर्गठित किए जाने के बाद यह पहला विधानसभा चुनाव है।

Aug 26, 2024 - 17:41
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जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव से पहले नेताओं ने बदले पाले
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जम्मू-कश्मीर में बहुप्रतीक्षित विधानसभा चुनावों की तैयारी के बीच राजनीतिक दलों में ‘आयाराम-गयाराम’ का दौर भी चल रहा है, जिनमें कई नेता व्यक्तिगत विवादों और अपने मौजूदा हालात से असंतोष के कारण पाला बदल रहे हैं।

राज्य में 18 सितंबर से तीन चरणों के चुनाव शुरू होंगे। वर्ष 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश के रूप में पुनर्गठित किए जाने के बाद यह पहला विधानसभा चुनाव है।

पाला बदलने के कारण सुर्खियों में आए उल्लेखनीय लोगों में वरिष्ठ नेता ताज मोहिउद्दीन भी शामिल हैं, जो हाल में गुलाम नबी आजाद की डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी (डीपीएपी) छोड़कर पुनः कांग्रेस में शामिल हो गए हैं।

डीपीएपी से कुछ समय के लिये जुड़ने से पहले मोहिउद्दीन करीब 45 वर्ष तक कांग्रेस के साथ थे। उन्होंने कहा कि आजाद की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ कथित निकटता के कारण असंतोष उनके निर्णय का प्रमुख कारण है।

मोहिउद्दीन ने कहा, “मुझे एहसास हुआ कि डीपीएपी मूलतः एक व्यक्ति की पार्टी है और मुझे कांग्रेस में लौटने के लिए मजबूर होना पड़ा, जो मेरा सच्चा राजनीतिक घर है।”

उन्होंने चेनाब क्षेत्र में पार्टी के लिए काम करने की अपनी प्रतिबद्धता पर जोर देते हुए कहा, “सुबह का भूला अगर शाम को घर लौट आता है तो उसे भूला नहीं कहते।”

अन्य महत्वपूर्ण नेताओं में जम्मू-कश्मीर के पूर्व मंत्री उस्मान मजीद शामिल हैं, जिन्होंने अल्ताफ बुखारी की ‘अपनी पार्टी’ छोड़ दी। वहीं पूर्व विधायक एजाज मीर ने भी चुनाव लड़ने के लिए टिकट न मिलने पर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) छोड़ दी।

महबूबा मुफ्ती के करीबी सहयोगी सुहैल बुखारी ने भी टिकट न मिलने के बाद पीडीपी से इस्तीफा दे दिया, जिससे पार्टी के भीतर असंतोष उजागर हो गया।

त्राल से जिला विकास परिषद (डीडीसी) के प्रमुख सदस्य डॉ. हरबख्श सिंह ने पीडीपी में मौजूदा माहौल को ऐसा बताया, जहां नए चेहरों के लिये पुराने वफादार सदस्यों को हाशिए पर डाला जा रहा है।

सिंह ने कहा, “मैंने डीडीसी चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा और भारी अंतर से जीत हासिल की। ​​मुझे इस बात की खुशी नहीं है कि मुझे पीडीपी छोड़नी पड़ी, इससे मुझे बहुत दुख हुआ। ऐसा लगा जैसे मुझे पार्टी छोड़ने के लिए मजबूर किया जा रहा है।”

सज्जाद लोन की पीपुल्स कॉन्फ्रेंस में रहे पूर्व मंत्री बशारत बुखारी पार्टी छोड़कर पीडीपी में शामिल हो गए। वहीं पूर्व एमएलसी जावेद मिरचल ने नेशनल कॉन्फ्रेंस का दामन थाम लिया है।

सुहैल बुखारी ने कहा, “मैं देख रहा हूं कि लोगों को उनकी पूरी कोशिशों के बावजूद दरकिनार किया जा रहा है। नए नेताओं का स्वागत किया जा रहा है। कई नेता जो हमेशा पार्टी के साथ खड़े रहे, उन्हें पार्टी में जगह नहीं दी जा रही।”

उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, “ऐसे हालात में काम करना मेरे लिए मुश्किल हो रहा था। इसलिए मैंने मुख्य प्रवक्ता पद और प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। मैं अपनी पार्टी के सभी नेताओं का इस लड़ाई में साथ देने के लिए शुक्रिया अदा करता हूं। हमारा राजनीतिक माहौल तभी ठीक हो सकता है जब हम अपने स्वार्थों को किनारे रखें।”

नेताओं के पाला बदलने का सिलसिला सिर्फ पीडीपी और डीपीएपी तक ही सीमित नहीं है, यहां तक ​​कि भाजपा भी आंतरिक चुनौतियों का सामना करती दिख रही है।

खबरों से पता चलता है कि पार्टी ने दावेदारी अस्वीकार किये जाने पर अपने सदस्यों में असंतोष के कारण 44 उम्मीदवारों की सूची वापस ले ली, जिससे पार्टी के भीतर असंतोष का संकेत मिलता है।

डीपीएपी और अपनी पार्टी जैसे नए दलों के लिये भी दलबदल को रोकना बड़ी चुनौती साबित हो रहा है।

जम्मू-कश्मीर विधानसभा के 90 सदस्यों के लिए चुनाव तीन चरणों में 18 सितंबर, 25 सितंबर और एक अक्टूबर को होंगे और परिणाम चार अक्टूबर को घोषित किए जाएंगे।

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