इंडिया ब्लॉक की ममता बनर्जी बनती हैं अध्यक्ष तो गठबंधन में क्या-क्या बदलेगा?
दूसरा सवाल उनके अध्यक्ष बनने के बाद की स्थिति को लेकर है। अगर ममता को भारत की कमान मिलती है तो गठबंधन के अंदर क्या बदलाव आएगा?
भारत गठबंधन में अध्यक्ष को लेकर गतिरोध के बीच ममता बनर्जी से जुड़े दो सवाल चर्चा में हैं। पहला, क्या बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को भारत की कमान मिलेगी? यह सवाल इसलिए क्योंकि शरद पवार से लेकर लालू यादव और राम गोपाल यादव से लेकर संजय राउत तक सभी ने ममता के समर्थन में बयान दिए हैं।
दूसरा सवाल उनके अध्यक्ष बनने के बाद की स्थिति को लेकर है। अगर ममता को भारत की कमान मिलती है तो गठबंधन के अंदर क्या बदलाव आएगा?
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो हैं, जिन्होंने हाल ही में भारत की कमान संभालने की इच्छा जताई है।
ममता क्यों बन सकती हैं अध्यक्ष?
ममता को भारत गठबंधन की कमान मिलने की संभावना के पीछे तीन बड़ी वजहें बताई जा रही हैं। पहली वजह शरद पवार से लेकर लालू यादव का समर्थन है। सीटों के लिहाज से यूपी, बिहार, महाराष्ट्र और बंगाल देश के चार बड़े राज्य हैं। इन चारों राज्यों की बड़ी पार्टियों ने ममता का समर्थन किया है।
दूसरी वजह आंध्र प्रदेश की विपक्षी पार्टी वाईएसआर का समर्थन है। तीसरी वजह ममता का महिला नेता होना है। ममता भारत गठबंधन के भीतर सबसे तेजतर्रार महिला नेता हैं।
अब सवाल यह है कि गठबंधन में क्या बदलाव होगा?
1. व्यक्ति केंद्रित मुद्दों को तरजीह नहीं
जब ममता बनर्जी ने बंगाल में अपनी अलग तृणमूल कांग्रेस बनाई थी, तब ममता ने व्यक्तिगत मुद्दों को छोड़कर जनहित के मुद्दों पर विरोध प्रदर्शन शुरू किया था। उस समय ममता ने कोलकाता के धर्मशाला को अपने विरोध का केंद्र बनाया था। ममता हर बड़े मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन करने धर्मशाला पहुंच जाती थीं।
ममता का यह रवैया अभी भी बरकरार है। जब कांग्रेस ने संसद में उद्योगपति गौतम अडानी के मुद्दे को तरजीह देना शुरू किया, तो ममता ने खुद को इससे अलग कर लिया। ममता ने कहा कि जनहित के मुद्दे उठाए जाने चाहिए, ताकि केंद्र सरकार आसानी से बैकफुट पर आ सके।
इस समय किसान आंदोलन, महंगाई, रेल यात्रा, स्वास्थ्य सुविधाएं जैसे कई मुद्दे हैं, जिन पर सांसद बहस चाहते हैं। अगर ममता को भारत की कमान मिलती है, तो ये मुद्दे फिर से संसद में बहस के केंद्र में आ सकते हैं।
2. राहुल की पीएम दावेदारी कमजोर होगी
भारत गठबंधन में कांग्रेस इस समय सबसे बड़ी पार्टी है। यही वजह है कि विपक्ष के नेता का पद राहुल गांधी के पास है। राहुल प्रधानमंत्री पद के प्रबल दावेदार हैं, लेकिन अगर ममता को विपक्ष की कुर्सी मिलती है तो राहुल की दावेदारी पर संकट गहरा सकता है।
1989 में विपक्ष की कमान संभालने वाले वीपी सिंह को कम सीटें होने के बावजूद देश का प्रधानमंत्री बनाया गया था। ममता के समर्थक भी चुपचाप उन्हें पीएम के तौर पर प्रोजेक्ट करते रहे हैं।
बंगाल में तृणमूल समर्थकों ने इसे लेकर गाना भी बना लिया है, हवाई छोटी दिल्ली जावे (हवाई चप्पल दिल्ली जाएगी)। दिल्ली आने पर ममता की दावेदारी और मजबूत हो जाएगी।
3. भारत गठबंधन में नई पार्टियों की एंट्री संभव
फिलहाल भारत गठबंधन में देश की 26 विपक्षी पार्टियां शामिल हैं। तेलंगाना की बीआरएस, हरियाणा की आईएनएलडी और आंध्र की वाईएसआर भी एनडीए विरोधी रुख रखती हैं। वाईएसआर ने भी ममता की दावेदारी पर सकारात्मक रुख दिखाया है।
आईएनएलडी पहले भी भारत आना चाहती थी, लेकिन कांग्रेस के कारण यह संभव नहीं हो पाया। केसीआर की बीआरएस भी कभी बीजेपी विरोधी मोर्चा बनाने में सक्रिय थी।
ऐसे में कहा जा रहा है कि अगर ममता भारत की कमान संभालती हैं तो गठबंधन में कुछ नई पार्टियों की एंट्री संभव है।
4. क्या जाति जनगणना का मुद्दा ठंडे बस्ते में चला जाएगा?
कांग्रेस लोकसभा चुनाव के बाद से ही जाति आधारित जनगणना की मांग को लेकर मुखर रही है। हालांकि, ममता इस मांग को ज्यादा तूल नहीं देना चाहती हैं। 2023 में मुंबई की बैठक में भारत गठबंधन इसको लेकर प्रस्ताव भी पारित करना चाहता था, लेकिन ममता ने इसका विरोध किया।
कहा जा रहा है कि अब अगर ममता को कमान मिलती है तो नए सिरे से मुद्दे तय किए जाएंगे, जिसके बाद जाति जनगणना का मुद्दा ठंडे बस्ते में जा सकता है।
5. 3 राष्ट्रीय पार्टी प्रमुख क्षेत्रीय नेता के अधीन काम करेंगे
भारत गठबंधन में 3 पार्टियों कांग्रेस, सीपीएम और आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा प्राप्त है। ममता बनर्जी की पार्टी क्षेत्रीय पार्टी है। अगर ममता को भारत की कमान मिलती है तो देश में यह पहला मौका होगा, जब तीन राष्ट्रीय पार्टियों के प्रमुख एक क्षेत्रीय नेता के अधीन काम करेंगे।
देश के इतिहास में अब तक किसी भी गठबंधन की कमान क्षेत्रीय दलों के नेताओं को नहीं दी गई है। जब से एनडीए बना है, तब से इसकी कमान बीजेपी के हाथ में है। जब यूपीए बना था, तब इसकी कमान कांग्रेस के हाथ में थी।
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