1998 के एक हत्याकांड में तीन पूर्व सैन्य अधिकारियों को हाई कोर्ट ने ठहराया दोषी
जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर और जस्टिस सुदीप्ति शर्मा ने अपने आदेश में आरोपितों को धारा 302 के साथ धारा 34 आईपीसी और शस्त्र अधिनियम की धारा 25 के तहत दंडनीय अपराध करने के लिए दोषी ठहराया।
चंद्रशेखर धरणी, चंडीगढ़ : पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने 1998 के एक हत्याकांड में तीन पूर्व सैन्य अधिकारियों और एक अन्य को दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई है। इस मामले में उन्होंने हरियाणा के सोनीपत के गांव आहुलाना में एक व्यक्ति की गोली मारकर हत्या कर दी थी।
हाई कोर्ट ने आरोपितों को बरी करने के 2002 के सोनीपत कोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए सैन्य अधिकारियों द्वारा दी गई दलील को खारिज कर दिया। निचली अदालत ने सेना के रिकार्ड और अधिकारियों के बयानों को स्वीकार कर लिया था कि तीनों आरोपित कैप्टन आनंद, युद्धवीर सिंह और राजकुमार के साथ अपराध के दिन रुड़की में थे।
जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर और जस्टिस सुदीप्ति शर्मा ने अपने आदेश में आरोपितों को धारा 302 के साथ धारा 34 आईपीसी और शस्त्र अधिनियम की धारा 25 के तहत दंडनीय अपराध करने के लिए दोषी ठहराया।
अभियोजन पक्ष के अनुसार पंचायत चुनाव के दौरान मृतक महेंद्र सिंह और राजकुमार के परिवार के बीच पहले भी विवाद हुआ था, जिसके परिणामस्वरूप दोनों पक्षों के बीच दुश्मनी पैदा हो गई थी।रिकार्ड की जांच करने के बाद, हाई कोर्ट ने पाया कि ट्रायल कोर्ट ने प्रस्तुत प्रासंगिक साक्ष्य बेतुकापन मानते हुए अनदेखा किया है। ट्रायल कोर्ट ने राज कुमार के कथन पर ध्यान दिया जिसके कारण देशी हथियार की खोज हुई।
प्रत्यक्षदर्शियों के बयान पर ध्यान देते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि हथियार की खोज प्रत्यक्षदर्शी के बयान पर आधारित मामले में भी महत्वपूर्ण पुष्टि करने वाली कड़ी है। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि बचाव पक्ष को यह साबित करना चाहिए कि बयान और परिणामी बरामदगी जाली या मनगढ़ंत थी, यह साबित करके कि कथित खोज सीधे तौर पर अभियुक्त के हिरासत में दिए गए बयान से उत्पन्न नहीं हुई थी।
हाई कोर्ट ने कहा, परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर आधारित मामले में जब अभियुक्त द्वारा हस्ताक्षरित बयान कथन तथा उसके परिणामस्वरूप तैयार किए गए रिकवरी मेमो, सिद्धांतों के विरुद्ध नहीं होते, तो वे गंभीर साक्ष्य शक्ति प्राप्त कर लेते हैं, विशेषकर तब जब उनके अनुसरण में सक्षम रिकवरी की जाती है। अभियुक्त के कथन, हथियार की खोज, प्रत्यक्षदर्शी विवरण तथा परिस्थितिजन्य साक्ष्यों की श्रृंखला को जोड़ते हुए हाई कोर्ट ने बरी किए जाने के विरुद्ध सरकार की अपील स्वीकार कर ली।
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