दिवाली को मिली वैश्विक पहचान, UNESCO ने किया अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर सूची में शामिल
यूनेस्को ने दिवाली को अपनी अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर (Intangible Cultural Heritage) सूची में शामिल कर भारतीय संस्कृति के गहन आध्यात्मिक और सामाजिक महत्व को अंतरराष्ट्रीय मंच पर मान्यता दी है।
पूरे विश्व को प्रकाश और सकारात्मक ऊर्जा का संदेश देने वाला दीपों का पर्व दिवाली अब वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान दर्ज करा चुका है। यूनेस्को ने दिवाली को अपनी अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर (Intangible Cultural Heritage) सूची में शामिल कर भारतीय संस्कृति के गहन आध्यात्मिक और सामाजिक महत्व को अंतरराष्ट्रीय मंच पर मान्यता दी है।
यूनेस्को का यह फैसला साबित करता है कि भारत की उत्सव परंपराएं केवल रीति-रिवाज नहीं, बल्कि मानव सभ्यता की उन विरासतों में शामिल हैं जो समय, भाषा और सीमाओं से परे हैं। दिवाली को यह प्रतिष्ठित स्थान मिलने के बाद भारत की सांस्कृतिक पहचान और मजबूत हुई है।
दिवाली - उजाले, आशा और समृद्धि का वैश्विक संदेश
दिवाली की मूल भावना एकता, उजाला और शुभता में निहित है। भारत के हर राज्य में इसे अलग-अलग रूपों दीपावली, दीपोत्सव, काली पूजा, गोवर्धन पूजा, बालिप्रतिपदा के रूप में मनाया जाता है, लेकिन संदेश एक ही रहता है: अंधकार पर प्रकाश और नकारात्मकता पर सकारात्मकता की विजय। दुनिया भर में बसे भारतीय समुदाय की वजह से दिवाली न्यूयॉर्क, लंदन, दुबई से लेकर सिडनी तक एक ग्लोबल फेस्टिवल बन चुकी है।
दिवाली को यह मान्यता क्यों मिली?
यूनेस्को ने दिवाली को इसलिए शामिल किया क्योंकि:
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यह आध्यात्मिक और सांस्कृतिक एकता का अनोखा उदाहरण है।
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कुम्हारों, कारीगरों, बुनकरों, हलवाइयों और स्थानीय कलाकारों सहित करोड़ों लोगों की रोज़गार श्रृंखला इस त्योहार से जुड़ी होती है।
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यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही सांस्कृतिक विरासत और लोककला को संरक्षित करती है।
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दुनिया में शांति, प्रकाश और मानवता के संदेश को आगे बढ़ाती है।
यूनेस्को की सूची में शामिल होना दिवाली जैसे पर्व के संरक्षण और वैश्विक प्रचार-प्रसार के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण कदम है।
भारत की 16 अमूर्त सांस्कृतिक धरोहरें
दिवाली के जुड़ने से पहले भारत की 15 परंपराएं यूनेस्को की अमूर्त धरोहर सूची में शामिल थीं। इनमें शामिल हैं:
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कुंभ मेला
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रामलीला परंपरा
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योग
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नवरोज त्योहार
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कुदियाट्टम
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कालबेलिया नृत्य (राजस्थान)
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चौह नृत्य
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बौद्ध चैत्य नृत्य
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आयुर्वेदिक चिकित्सा परंपराएं
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रंजीतगढ़ ढोल संस्कृति
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गरबा (गुजरात)
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सांइत लोकनाट्य परंपरा
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मुदियेट्टू (केरल)
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छऊ मुखोटा कला
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दुर्गा पूजा (कोलकाता)
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दिवाली (नव शामिल)
भारतीय संस्कृति को मिला नया आयाम
यूनेस्को की इस मान्यता से यह स्पष्ट होता है कि भारतीय संस्कृति केवल भारत की नहीं, बल्कि दुनिया की विरासत है। दिवाली का यह सम्मिलन आने वाली पीढ़ियों को इस त्योहार की सच्ची भावना, परंपरा और सामाजिक महत्व को समझने और आगे बढ़ाने में मदद करेगा।
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