Delhi : श्री गुरु तेग बहादुर जी का 350वां शहीदी दिवस, लाल किला परिसर में तीन-दिवसीय भव्य समागम का आयोजन
लाल किला परिसर में समागम के प्रथम दिन से ही श्रद्धालुओं और संगतों का बड़ा जमावड़ा देखने को मिला। समागम का शुभारंभ आध्यात्मिक परंपरा के अनुरूप कीर्तन, अरदास और शबद गायन से हुआ, जिसने माहौल को एक पवित्र और भावनात्मक ऊर्जा से भर दिया।
दिल्ली का ऐतिहासिक लाल किला वह स्थल है जिसने कई युगों की करवटें देखी हैं - सम्राटों के शासन से लेकर स्वतंत्रता का बिगुल बजने तक। और आज, वही धरोहर स्थल श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी के 350वें शहीदी दिवस पर आयोजित तीन-दिवसीय भव्य समागम का आध्यात्मिक और सांस्कृतिक केंद्र बना हुआ है।
यह पहला अवसर है जब राजधानी में इतनी विशालता और गरिमा के साथ श्री गुरु तेग बहादुर जी की शहादत को समर्पित कार्यक्रम हो रहा है, और इसका वैभव देश-विदेश से आई संगतों के चेहरे पर साफ झलक रहा है।
तीन-दिवसीय समागम की शुरुआत: श्रद्धा, भक्ति और गौरव का संगम
लाल किला परिसर में समागम के प्रथम दिन से ही श्रद्धालुओं और संगतों का बड़ा जमावड़ा देखने को मिला। समागम का शुभारंभ आध्यात्मिक परंपरा के अनुरूप कीर्तन, अरदास और शबद गायन से हुआ, जिसने माहौल को एक पवित्र और भावनात्मक ऊर्जा से भर दिया। इस उद्घाटन समारोह में दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता और कैबिनेट मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा विशेष रूप से उपस्थित रहे। दोनों नेताओं ने गुरु साहिब के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर कार्यक्रम की शुरुआत की।
“श्री गुरु तेग बहादुर- मानवता के संरक्षक” : CM रेखा गुप्ता का भावुक संबोधन
समागम के पहले दिन, CM रेखा गुप्ता ने श्री गुरु तेग बहादुर जी के जीवन और शहादत के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा:
“श्री गुरु तेग बहादुर जी का जीवन अत्याचार और धार्मिक असहिष्णुता के खिलाफ संघर्ष का ज्वलंत प्रतीक है। वे न केवल सिख पंथ के नौवें गुरु थे, बल्कि संपूर्ण मानवता के रक्षक भी थे। उनकी शहादत भारत की धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा का सर्वोच्च उदाहरण है।”
उन्होंने आगे कहा कि 350 वर्षों बाद भी श्री गुरु तेग बहादुर जी की शिक्षाएँ - स्वतंत्रता, समानता और मानवाधिकारों के प्रति संकल्प - आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी उनके समय में थीं।
मनजिंदर सिंह सिरसा ने कहा - “यह कार्यक्रम केवल समागम नहीं, इतिहास की पुनर्स्मृति है”
कैबिनेट मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने अपने संबोधन में जोर दिया कि इस तरह का आयोजन दिल्ली की विविधतापूर्ण विरासत को प्रतिबिंबित करता है।
उन्होंने कहा कि लाल किले में यह ऐतिहासिक कार्यक्रम श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी के आदर्शों के प्रति लाखों लोगों की श्रद्धा का प्रतीक है। सिरसा के अनुसार:
“यह आयोजन हमें याद दिलाता है कि आजादी, धर्म और मानवता की रक्षा के लिए श्री गुरु तेग बहादुर साहिब ने अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। उनका साहस और त्याग भारत की आत्मा में गहराई से बसता है।”
लाल किले में पहली बार इतना भव्य आयोजन: देश-विदेश से उमड़ी संगत
इस कार्यक्रम का विशेष पक्ष यह है कि दिल्ली में, विशेषकर लाल किला जैसे ऐतिहासिक स्थल पर, श्री गुरु तेग बहादुर जी की शहादत को समर्पित इतना बड़ा समागम पहली बार आयोजित किया गया है। दिल्ली पर्यटन, सिख संगत, ऐतिहासिक संस्थान और कई अंतरराष्ट्रीय संगठन इस कार्यक्रम के सहभागी बने हैं।
पहले दिन ही कार्यक्रम में बड़ी संख्या में विदेशी संगतें पहुँचीं - कनाडा, यूके, ऑस्ट्रेलिया, यूएसए, सिंगापुर और यूरोप के कई देशों से श्रद्धालु आए हुए हैं।
उनके लिए यह आयोजन केवल धार्मिक अनुभव नहीं, बल्कि भारतीय इतिहास और सिख परंपरा को समझने का अनोखा अवसर भी है।
कार्यक्रम में विविध आयोजन - कीर्तन से लेकर ऐतिहासिक प्रदर्शनी तक
तीन-दिवसीय समागम में शबद कीर्तन, गुरबाणी, पंथिक इतिहास पर आधारित प्रदर्शनियाँ, गुरु साहिब के जीवन पर आधारित डिजिटल शोकेस और सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ शामिल हैं। लाल किले के विशाल प्रांगण में श्री गुरु तेग बहादुर साहिब के जीवन से जुड़ी प्रमुख घटनाओं को चित्रों, पेंटिंग्स, इंस्टॉलेशन और आधुनिक प्रोजेक्शन तकनीक के माध्यम से प्रदर्शित किया गया है।
दर्शकों को गुरु साहिब की कैद, कश्मीर पंडितों की रक्षा, और औरंगज़ेब के सामने सत्य के लिए खड़े होने जैसे ऐतिहासिक प्रसंगों को नए रूप में देखने का अवसर मिल रहा है।
संगत में उत्साह और भावनाओं का सागर
पहले दिन से ही संगतों में एक विशेष प्रकार की ऊर्जा देखी जा रही है। सैकड़ों परिवार बच्चों के साथ पहुंचे हैं, कई बुजुर्ग आंसुओं भरी आँखों से गुरु साहिब की कथा सुनते दिखाई दिए। विदेशी श्रद्धालु भारत की संस्कृति, आध्यात्मिकता और गुरु परंपरा से प्रभावित होकर बार-बार कहते सुने गए - “श्री गुरु तेग बहादुर साहिब वर्ल्ड हीरो हैं।”
समापन
लाल किले में यह तीन-दिवसीय समागम केवल एक कार्यक्रम नहीं है - यह उस अध्याय की पुनर्स्मृति है, जिसने भारत की आत्मा को बचाए रखा।
श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी का बलिदान, उनका साहस, और उनका अडिग सत्य आज भी उतना ही प्रकाशमान है। और जब यह प्रकाश दिल्ली की ऐतिहासिक धरोहर लाल किले से फैल रहा हो, तो यह आयोजन स्वयं इतिहास बन जाता है।
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