स्पीकर प्रो-टेम और एक्टिंग स्पीकर शब्द का विवाद, संविधान विशेषज्ञ ने बताया दोनों में क्या है अंतर ?

हरियाणा में 15वीं विधानसभा के गठन के लिए बहीती 25 अक्टूबर को सभी निर्वाचित विधायकों को शपथ दिलाने के लिए राज्यपाल की ओर से डॉ. रघुबीर सिंह कादियान को एक्टिंग स्पीकर नियुक्त किया गया।

Nov 2, 2024 - 14:57
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स्पीकर प्रो-टेम और एक्टिंग स्पीकर शब्द का विवाद, संविधान विशेषज्ञ ने बताया दोनों में क्या है अंतर ?
Controversy over the words Speaker Pro-Tem and Acting Speaker
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चंद्रशेखर धरणी, चंडीगढ़: हरियाणा में 15वीं विधानसभा के गठन के लिए बहीती 25 अक्टूबर को सभी निर्वाचित विधायकों को शपथ दिलाने के लिए राज्यपाल की ओर से डॉ. रघुबीर सिंह कादियान को एक्टिंग स्पीकर नियुक्त किया गया। सदन में विधायकों को शपथ दिलाने से पहले ही स्पीकर प्रो-टेम की बजाए एक्टिंग स्पीकर बनाने का मुद्दा गर्मा गया। ऐसे में हर किसी के मन में सवाल उठने लगा कि आखिर स्पीकर प्रो-टेम और एक्टिंग स्पीकर में क्या अंतर है और संविधान इसे लेकर क्या कहता है ? इसी को लेकर हमने संविधान और संसदीय मामलों के जानकार औऱ हरियाणा विधानसभा के पूर्व अतिरिक्त सचिव राम नारायण यादव से बातचीत की। बातचीत के दौरान यादव ने कई रोचक तथ्य सामने रखे।

संविधान में नहीं कोई उल्लेख

रामनारायण यादव ने बताया कि स्पीकर प्रो-टेम नाम का शब्द संसदीय परिभाषित शब्द है, जबकि संविधान में इसका कोई उल्लेख नहीं है। उन्होंने बताया कि हरियाणा में विधानसभा के आम चुनाव के बाद राज्यपाल की ओर से विधानसभा के नए सदस्यों को शपथ दिलाने और स्पीकर का चुनाव कराने के लिए एक्टिंग स्पीकर नियुक्त किया जाता है। यादव ने बताया कि हरियाणा में 1967 में हुए पहले आम विधानसभा चुनाव के समय यह परंपरा शुरू हुई थी। उस समय 17 मार्च 1967 को राज्यपाल ने विधायक दयाकृष्ण को एक्टिंग स्पीकर नियुक्त किया था, जिसके बाद सभी सदस्यों को शपथ दिलाने के बाद स्पीकर का चुनाव किया गया था, उसके बाद से ही यह प्रथा लगातार चली आ रही है।

कुछ समय के लिए मिलता है अधिकार

यादव ने बताया कि स्पीकर प्रो-टेम के शब्द का इस्तेमाल करने के कईं कारण है, क्योंकि विधानसभा भंग होने पर डिप्टी स्पीकर का पद खाली हो जाता है, जबकि विधानसभा भंग होने के बाद नई विधानसभा की पहली मीटिंग शुरू होने से पहले तक स्पीकर अपने पद पर रहते हैं। नई विधानसभा की पहली मीटिंग शुरू होने के तुरंत पहले पुरानी विधानसभा के स्पीकर अपने पद से मुक्त हो जाते हैं. क्योंकि विधानसभा का कोई भी बिना शपथ लिए स्पीकर का पद ग्रहण नहीं कर सकता। इसलिए किसी एक सदस्य की नियुक्ति करके उसे शपथ दिलाने के बाद कुछ समय के लिए यह अधिकार देते हैं कि वह अन्य सदस्यों को शपथ दिला सके।

इसलिए होती है स्पीकर प्रो-टेम की नियुक्ति

उन्होंने बताया कि लोकसभा और संसदीय मामलों के मंत्रालय के अनुसार भी जब स्पीकर और डिप्टी स्पीकर दोनों के पद खाली होते हैं, केवल उस समय ही स्पीकर प्रो-टेम की नियुक्ति होती है। यादव ने बताया कि लोकसभा भंग होते ही डिप्टी स्पीकर का पद खाली हो जाता है। इसके साथ ही लोकसभा की पहली सीटिंग के ठीक पहले स्पीकर का पद भी खाली हो जाता है। इसलिए नए स्पीकर के चुने जाने तक स्पीकर प्रो-टेम की नियुक्ति होती है।

पंजाब की डिप्टी स्पीकर बनी थी हरियाणा की एक्टिंग स्पीकर

उन्होंने बताया कि एक नवंबर 1966 को पंजाब से अलग होकर हरियाणा के अलग राज्य बनने के समय शन्नो देवी पंजाब व धानसभा में डिप्टी स्पीकर थी। नए राज्य के रूप में हरियाणा का गठन होने पर उन्हें एक नवंबर 1966 से छह दिसंबर 1966 तक हरियाणा विधानसभा की एक्टिंग स्पीकर के पद पर नियुक्त किया गया था। 1966 में उस समय राज्यपाल ने पंजाब विधानसभा की डिप्टी स्पीकर शन्नो देवी को हरियाणा की पहली विधानसभा में चुनकर आने वाले सदस्यों को शपथ दिलाने के लिए नियुक्त किया था। उस दौरान राज्यपाल की ओर से उनकी नियुक्ति को लेकर जारी किए आदेश में एक्टिंग स्पीकर नाम का कोई शब्द नहीं था। 

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इस चुनाव के बाद आया एक्टिंग स्पीकर शब्द

रामनारायण यादव ने बताया कि हरियाणा में 1967 में हुए विधानसभा चुनाव में चुनकर आए सदस्यों को शपथ दिलाने के लिए नियुक्ति किए जाने वाले सदस्य को एक्टिंग स्पीकर कहा गया था। 

राज्यपाल दिलाते हैं शपथ

पंजाब विधानसभा को लेकर यादव ने बताया कि पंजाब विधानसभा में भी आम चुनाव के बाद राज्यपाल नए सदस्यों को शपथ दिलाने के लिए स्पीकर प्रो-टेम की नियुक्ति करते हैं और राज्यपाल खुद उन्हें (प्रो-टेम स्पीकर को) शपथ दिलाते हैं।

लोकसभा में ऐसे शुरू हुई परंपरा

रामनारायण यादव ने बताया कि देश में लोकसभा के पहले आम चुनाव के बाद राष्ट्रपति ने जीवी मावलंकर को स्पीकर प्रो-टेम नियुक्त किया था, जिन्हें 7 अप्रैल 1952 को राष्ट्रपति भवन में शपथ दिलाई गई थी। इसी प्रकार से 1957 के दूसरे आम चुनाव के बाद राष्ट्रपति ने सेठ गोविंद दास को स्पीकर प्रो-टेम नियुक्त कर उन्हें 10 मई 1957 में राष्ट्रपति भवन में शपथ दिलाई थी। उसके बाद से ही लोकसभा में यह परंपरा अब तक लगातार चल रही है।

संविधान में नहीं है मान्य

यादव ने बताया कि विधानसभा में एक्टिंग स्पीकर या फिर स्पीकर प्रो-टेम शब्द की शुरूआत विधानसभा के मुख्य सचिव, सचिव या फिर राज्यपाल के कार्यालय में उपलब्ध पूर्व के रिकॉर्ड पर की जा सकती है। उन्होंने बताया कि शपथ से पहले सदन में जो कुछ हुआ, वह कानूनी तौर पर मान्य नहीं है। 

सीएम और हुड्डा में हुई थी बहस

बता दें कि इस पूरे विवाद की शुरूआत 25 अक्टूबर को हरियाणा विधानसभा में विधायकों को शपथ दिलाने के लिए राज्यपाल की ओर से नियुक्त किए गए विधायक रघुबीर कादियान को एक्टिंग स्पीकर कहने से हुई थी। इसे लेकर पूर्व मुख्यमंत्री भपेंद्र हुड्डा और मौजूदा मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के बीच हल्की बहस भी हुई थी। उस समय मुख्यमंत्री ने भूपेंद्र हुड्डा को उनके कार्यालय में इस्तेमाल किए गए एक्टिंग स्पीकर शब्द की भी याद दिलाई थी।

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