चौ. ओम प्रकाश चौटाला जी का जीवन, संगठन से सत्ता तक की रोचक यात्रा
चौ. ओम प्रकाश चौटाला जी एक कुशल संगठन की क्षमता के धनी व्यक्तित्व रहे। संगठन को बनाकर मजबूती से खड़ा कर उसे सत्ता की दहलीज तक पहुंचाना चौ. ओम प्रकाश चौटाला जी के जीवन का एक रोचक व महत्वपूर्ण इतिहास है।
चंद्रशेखर धरणी, चंडीगढ़ : स्वर्गीय मुख्यमंत्री हरियाणा व इनेलो सुप्रीमो चौ. ओम प्रकाश चौटाला जी का जीवन संघर्ष का अभिप्राय रहा। चौ. ओम प्रकाश चौटाला जी 57 साल की सक्रिय राजनीति में सत्ता में महज 5 साल 7 महीने और 5 दिन के लिए काबिज रहे। 1968 में हरियाणा की राजनीति में सक्रिय हुए चौ. ओम प्रकाश चौटाला जी एक कुशल संगठन की क्षमता के धनी व्यक्तित्व रहे। संगठन को बनाकर मजबूती से खड़ा कर उसे सत्ता की दहलीज तक पहुंचाना चौ. ओम प्रकाश चौटाला जी के जीवन का एक रोचक व महत्वपूर्ण इतिहास है।
पत्रकारिता करते हुए चौ. ओम प्रकाश चौटाला जी के साथ पहली बार 1986 में पानीपत के एडवोकेट ऋतु मोहन शर्मा के माध्यम से मिलना हुआ था। उसके बाद बतौर पत्रकार चौ. ओम प्रकाश चौटाला जी से कईं मुलाकात अलग-अलग मोड़ पर होती रही। पानीपत के पूर्व इनेलो नेता (वर्तमान में कांग्रेस में) धर्मपाल गुप्ता के निवास पर ओपी चौटाला जी का पहली बार जीवन में इंटरव्यू प्रिंट मीडिया के लिए करने का अवसर मिला।
लाडवा से मेरे दोस्त यमुनानगर से वरिष्ठ पत्रकार डॉ. सुरेंद्र मेहता और लाडवा से वरिष्ठ पत्रकार विनोद खुराना के साथ अलग-अलग जगह स्वर्गीय चौटाला जी से कईं मुलाकात की। चौ. ओपी चौटाला जी की विशेषता यह रही कि उन्हें जीवन में कभी दोबारा परिचय देने की नौबत नहीं आई। मिलते ही उनका सबसे पहले यह पूछना “कैसे हो चंद्रशेखर” घर परिवार सब कैसे हैं, एक अपनेपन का एहसास करवाता रहा।
चौटाला जी ने खुद किया था स्वागत
पत्रकारिता के इस लंबे जीवन में 1996 में चौ. ओम प्रकाश चौटाला जी ने दिल्ली स्थित अपनी कोठी पर मेरे व मेरे 3-4 पत्रकार साथियों को खुद लंच पर आमंत्रित किया। इसके लिए पानीपत के इनेलो कार्यकर्ता व अपने विश्वस्त ईश्वर नारा की विशेष तौर पर ड्यूटी लगाई थी कि वह हमें दिल्ली स्थित उनकी कोठी पर लेकर आए।
यह दिन जीवन में नहीं भलने वाले दिनों में से एक है। मोबाइल का जमाना नहीं था। हमें साढ़े 11 सुबह का आमंत्रण था। हम 11.25 बजे दिल्ली स्थित उनकी कोठी पर पहुंच गए। चौ. ओम प्रकाश चौटाला जी की गजब की मेजबानी का प्रमाण देखिए कि वह अपने प्रवेश द्वार पर खुद हम लोगों के स्वागत के लिए मौजूद थे। आत्मियता और स्नेह के साथ वह हमें अंदर लेकर गए। पहले नींबू पानी आदि पिलवाया और उसके बाद 12.50 के करीब डाइनिंग टेबल पर हमें लेकर गए। भले ही कोठी के नौकर और बावर्ची अपना-अपना काम कर रहे थे, मगर चौ. ओम प्रकाश चौटाला जी ने एक मेजबान की भूमिका में खुद चपाती और सब्जियां सबकों परोसी और विशेष रूप से गाय का अपने घर का निकला देसी घी सभी की दाल-सब्जियों में खुद डाला।
उसके बाद छाछ पिलाई। खुद भोजन हमारे साथ बैठकर किया, उनकी बेहतरीन मेजबानी देखने को मिली। ऐसा ही एक घटनाक्रम 2022 में मेरे साथ रहा। किसी मित्र के माध्यम से चौ. ओम प्रकाश चौटाला जी ने चंडीगढ़ स्थित अपने आवास पर नाश्ते पर बुलाया और उनकी आत्मियता और स्नेह एक बार फिर से मिला।
सभी कार्यक्रम कर दिए थे रद्द
राजनीतिक रूप से सुदृढ़ इरादों वाले ब्यूरोक्रेसी पर पूरी तरह से नियंत्रण रखने की कला जानने वाले चौ. ओम प्रकाश चौटाला जी का जीवन हरियाणा व देश की राजनीति में तीसरे मोर्चे के गठन को लेकर सदैव महत्वपूर्ण भूमिंका के रूप में रहा। जब-जब हरियाणा और देश में तीसरे मोर्चे ने आकार लिया, उसमें अहम भूमिका चौ. ओम प्रकाश चौटाला जी की रही। चौ. ओम प्रकाश चौटाला जी की यह विशेषता रही कि वह अपने जानकारों के दुख-सुख में हमेशा पहुंचा करते थे।
पानीपत के एक व्योवृद्ध कांग्रेस नेता, स्वतंत्रता सेनानी तथा हथकरघा उद्योग को स्थापित करने में अहम भूमिका निभाने वाले दीवान चंद भाटिया की मृत्यु जब हुई तब की घटना याद आती है कि चौ. ओम प्रकाश चौटाला जी अपने किन्हीं कार्यक्रमों में हरियाणा के दूसरे छोर पर थे। वह अपने कार्यक्रम रद्द कर तुरंत पानीपत पहुंचे और शमशान घाट में अंतिम संस्कार से करीब 30 मिनट पहले पहुंच गए थे।
शिलान्यास के समय तक की थी उद्घाटन की तारीख
कार्यकर्ताओं के साथ चौ. ओम प्रकाश चौटाला जी का व्यक्तिगत लगाव और उन्हें नाम से बुलाने की आदत उन्हें खास बना देती है। जीवन में जो लोग चौ. ओम प्रकाश चौटाला जी के साथ जुड़े वह पूरा जीवन उनके साथ चलते रहे, क्योंकि चौटाला जी उनके मान-सम्मान में कोई कमी नहीं छोड़ते थे। ब्यूरोक्रेसी में रहने वाले लोग भी जो चौटाला जी के साथ जुड़े वह उन्हीं के होकर रह गए। सेवानिवृत्ति के बाद भी इन लोगों ने हमेशा चौटाला जी व इनेलो का साथ दिया और उनका साथ कभी नहीं छोड़ा।
ऐसी बहुत लंबी लिस्ट है। सेवानिवृत आईएएस अधिकारी आरएस चौधरी बताते है कि जब वह कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर थे, उस समय उन्होंने एक हॉल का शिलान्यास चौ. ओम प्रकाश चौटाला जी से करवाया था। उस समय चौटाला जी ने उनसे पूछा था कि कब तक इसका काम पूरा होगा। इस पर उन्होंने कहा था कि एक साल में यह हॉल बन जाएगा। इस पर चौटाला जी ने उन्हें उस दिन को याद रखने को कहते हुए अगले साल उसी दिन और तारीख पर उसका उद्घाटन करने की बात कही थी।
बेगाने को भी अपना बना लेते थे चौटाला जी
इनेलो के चंडीगढ़ कार्यालय में सेवादार का काम करने वाले मूलरूप से नेपाल के रहने वाले राम बहादुर के लिए चौ. ओम प्रकाश चौटाला जी का निधन उनके पिता के निधन के समान है। अपने मां-बाप के निधन के बाद 1995 में हरियाणा में आया रामबहादुर तभी से चौ. ओम प्रकाश चौटाला जी की सेवा में रहा। रामबहादुर चौ. ओम प्रकाश चौटाला जी के अलावा चौधरी देवीलाल की भी सेवा कर चुका है। इतना हीं नहीं जब भी चौटाला जी की पत्नी चंडीगढ़ आती तो वह भी उन्हें खास तौर पर बुलाती थी।
चौ. ओम प्रकाश चौटाला जी की यहीं खूबी है कि एक सेवादार को जो उनसे प्यार मिला, उसी की बदौलत वह उन्हें अपने पिता तुल्य मानने लगा और उनके निधन पर रोते हुए अपने सिर पर पिता का साया उठने की बात कहता रहा। चौ. ओम प्रकाश चौटाला जी की यहीं खासियत थी कि जो व्यक्ति एक बार उनसे मिल लेता था, वह उसे कभी नहीं भूलते थे।
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