हरियाणा में पुरानी ‘सोशल इंजीनियरिंग’ पर लौटी भाजपा

नायब सैनी को मुख्यमंत्री बनाना और मोहनलाल बड़ौली को प्रदेशाध्यक्ष के पद पर बैठाना, ये सब बातें इशारा करती हैं कि भाजपा 2014 से पहले वाली मूल सोशल इंजीनियरिंग के सहारे विधानसभा चुनाव में उतरने का मन बना चुकी है।

Aug 20, 2024 - 10:41
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हरियाणा में पुरानी ‘सोशल इंजीनियरिंग’ पर लौटी भाजपा

चंद्रशेखर धरणी, चंडीगढ़ :  लोकसभा चुनाव के बाद जिस तरह से भाजपा ने पूर्व सीएम मनोहर लाल खट्टर को केंद्र में कैबिनेट मंत्री बनाया, उससे पहले नायब सैनी को मुख्यमंत्री बनाना और मोहनलाल बड़ौली को प्रदेशाध्यक्ष के पद पर बैठाना, ये सब बातें इशारा करती हैं कि भाजपा 2014 से पहले वाली मूल सोशल इंजीनियरिंग के सहारे विधानसभा चुनाव में उतरने का मन बना चुकी है। हालांकि अभी राज्यसभा चुनाव के लिए बीजेपी की ओर से उम्मीदवार की घोषणा करना बाकी है। ऐसे में सबकी नजरें इसी पर लगी हुई हैं कि बीजेपी किस नेता को राज्यसभा में भेजेगी ?

लोकसभा चुनाव में हरियाणा की दस में से पांच सीट हारने के बाद भाजपा पुराने 'सोशल इंजीनियरिंग' के फॉर्मूले पर लौटते हुए पार्टी ने जब वोटों का विश्लेषण किया, तो सामने आया कि उसे जाट समुदाय के वोट नहीं मिले हैं। इसी के चलते भाजपा ने हरियाणा में दोबारा से गैर जाट मतदाता, जो कुल आबादी का लगभग 75 फीसदी हैं, पर ही फोकस करने का मन बनाया। 
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि विधानसभा चुनाव में भाजपा, जाट वोटरों से तौबा करती हुई नजर आ रही है। मौजूदा समय में प्रदेश के मुख्यमंत्री नायब सैनी, पिछड़े वर्ग से आते हैं तो वहीं अब पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष मोहनलाल बड़ौली, ब्राह्मण समुदाय से हैं।

2014 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने प्रदेश में अपने दम पर सरकार बनाई थी। पंजाबी समुदाय से आने वाले मनोहर लाल खट्टर को मुख्यमंत्री बनाया गया। इससे पहले कांग्रेस के भूपेंद्र सिंह हुड्डा लगातार दस साल तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे थे। उस वक्त रामबिलास शर्मा भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष थे। चुनाव में जीत के बाद पार्टी ने रणनीति बदली और जाट समुदाय से आने वाले सुभाष बराला को प्रदेशाध्यक्ष बनाया था। उस वक्त पार्टी जाटों को नाराज नहीं करना चाहती थी। ये अलग बात है कि हरियाणा की सत्ता में आने से पहले भाजपा को लेकर यही कहा जाता था कि यह गैर जाट वर्ग की पार्टी है। उस वक्त प्रदेश का जाट वोटर, ज्यादातर भूपेंद्र सिंह हुड्डा के पक्ष में शिफ्ट हो चुका था। पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा से पहले यह वोट बैंक खासतौर पर चौटाला परिवार के पक्ष में माना जाता था।

हरियाणा में भले ही प्रदेश में सत्ता किसी की भी रही हो, लेकिन जाट और गैर जाट हमेशा राजनीति के केंद्र में रहे हैं। भाजपा को तो शुरु से ही गैर जाटों की पार्टी माना जाता रहा है। हरियाणा में यह कहावत आम रही है कि भाजपा, शहर वालों की पार्टी है। इसी के चलते 1980 से लेकर अब तक भाजपा के अधिकांश प्रदेशाध्यक्ष, गैर जाट ही रहे हैं। सबसे पहले डॉ. कमला वर्मा को प्रदेशाध्यक्ष पद की कमान सौंपी गई। उसके बाद 1984 में डॉ. सूरजभान एक वर्ष के लिए इस पद पर आसीन हुए। डॉ. मंगलसेन ने 1986 में यह पद संभाला। वे करीब चार वर्ष तक प्रदेशाध्यक्ष रहे। 1990 में रामबिलास शर्मा को तीन साल के लिए अध्यक्ष बनाया गया। उनके बाद रमेश जोशी ने यह पद संभाला।

1998 में ओमप्रकाश ग्रोवर और 2000 में रतनलाल कटारिया प्रदेशाध्यक्ष बनाए गए। 2003 में गणेशीलाल को इस पद पर नियुक्त किया गया। उक्त नेता गैर जाट समुदाय से ताल्लुख रखते थे। साल 2006 में जाट समुदाय के ओमप्रकाश धनखड़ को भाजपा का प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया था। उसके बाद 2009 में गैर जाट कृष्णपाल गुर्जर को इस पद की कमान सौंपी गई। 2013 में रामबिलास शर्मा को पार्टी अध्यक्ष बनाया गया। वे करीब दो वर्ष तक इस पद पर रहे थे। सरकार में शिक्षा मंत्री बनने के बाद उन्होंने यह पद छोड़ दिया। जाट समुदाय से आने वाले सुभाष बराला को प्रदेश भाजपा की कमान सौंपी गई। वे पांच वर्ष से कुछ ज्यादा समय तक इस पद पर रहे। 2020 में दोबारा से ओमप्रकाश धनखड़ को प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया। गत वर्ष नायब सैनी को प्रदेशाध्यक्ष की कमान सौंपी गई। 1980 से लेकर अब तक के इतिहास पर नजर डालें तो सुभाष बराला व ओमप्रकाश धनखड़ ये दो जाट नेता ही भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष पद पर रहे हैं।  

जिस वर्ग यानी गैर जाटों को भाजपा अपना बताने का दावा करती है, उसकी संख्या करीब 75 फीसदी है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने पूरी तरह से जाट समुदाय का समर्थन हासिल किया है। जाट वोटों पर अपना हक जताने वाली इनेलो और जजपा को नकार दिया गया है। पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा मौजूदा समय में एक मात्र जाट नेता के तौर पर स्थापित हुए हैं। हालांकि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को केवल जाट समुदाय का ही नहीं, बल्कि गैर जाट वोटरों का भी समर्थन हासिल था। विशेषकर एससी समुदाय के लोगों ने कांग्रेस को वोट दिया है। दूसरे समुदाय के लोग भी कांग्रेस के पक्ष में खड़े हुए नजर आए। भाजपा ने जाट समुदाय के वोट हासिल करने के लिए तमाम प्रयास किए, मगर उसे समर्थन नहीं मिल सका।

लोकसभा चुनाव के बाद जिस तरह से भाजपा ने पूर्व सीएम मनोहर लाल खट्टर को केंद्र में कैबिनेट मंत्री बनाया। उससे पहले नायब सैनी को मुख्यमंत्री बनाना और अब मोहनलाल बड़ौली को प्रदेशाध्यक्ष के पद पर बैठाना, ये सब बातें इशारा करती हैं कि भाजपा 2014 से पहले वाली मूल सोशल इंजीनियरिंग के सहारे विधानसभा चुनाव में उतरेगी। मनोहर लाल के जरिए पंजाबी समुदाय को साधा गया है तो नायब सैनी के जरिए पिछड़े एवं एससी मतदाताओं को संदेश दिया गया है। मोहन लाल बड़ौली को अध्यक्ष बनाकर पार्टी ने यह बताने का प्रयास किया है कि विधानसभा चुनाव में उसका फोकस गैर जाट समुदाय के वोटरों पर है। केंद्रीय मंत्रिमंडल में राव इंद्रजीत सिंह और कृष्णपाल गुर्जर को जगह देकर अपनी रणनीति साफ कर दी है। 2014 में विधानसभा चुनाव में अमित शाह ने हरियाणा में गैर जाट वोटरों पर फोकस किया था। अब वे दोबारा से उसी राह पर सक्रिय हैं। 16 जुलाई को अमित शाह  अहीरवाल के महेंद्रगढ़ से चुनावी बिगुल फूंक चुके है।

विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी की ओर से किए गए ओबीसी वर्ग के सम्मेलन से भी भाजपा की गैर जाट रणनीति पर मुहर लगती दिखाई देती है। इससे पहले ओबीसी क्रीमी लेयर की आय सीमा को 6 लाख रुपए से बढ़ाकर 8 लाख रुपए करना, ओबीसी वर्ग में आरक्षण को 15 फीसदी से बढ़ाकर 27 फीसदी करने की घोषणा करना भी इसी कड़ी का हिस्सा माना जा रहा है। अहीरवाल के वोटरों ने 2014 और 2019 में भाजपा की सरकार बनवाने में अपना खास योगदान दिया है। अब भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने तीसरी बार इस क्षेत्र पर फोकस किया है।

जाट चेहरों की भी कमी नहीं

हरियाणा में बीजेपी के पास हालांकि जाट नेताओं की भी कमी नहीं है। किरण चौधरी के अलावा भिवानी-महेंद्रगढ़ से मौजूदा सांसद धर्मवीर सिंह, पूर्व वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु, राज्यसभा सांसद सुभाष बराला, ओपी धनखड़ ये कुछ ऐसे नाम है, जो हरियाणा की राजनीति में जाट समुदाय पर अपनी अच्छी पकड़ रखते हैं। ऐसे में देखने वाली बात होगी कि बीजेपी 3 सितंबर को होने वाले राज्यसभा के चुनाव में किस चेहरे को सामने लाती है, जिसके बाद बीजेपी की पूरी रणनीति सबके सामने होगी।

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