हरियाणा में कांग्रेस के जिलाध्यक्षों का एलान, 32 नए जिलाध्यक्षों के नामों का किया एलान
नए जिला समिति अध्यक्षों की नियुक्ति की प्रक्रिया जून में शुरू हुई थी जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने संगठन के कायाकल्प अभियान के तहत हरियाणा के वरिष्ठ नेताओं और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी तथा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पर्यवेक्षकों के साथ बैठक की थी।
कांग्रेस ने मंगलवार शाम हरियाणा में पार्टी के 32 नवनियुक्त अध्यक्षों के नामों की घोषणा की। सूत्रों ने बताया कि नियुक्त किए गए कई लोग वरिष्ठ नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कुमारी शैलजा के करीबी माने जाते हैं।
राहुल गांधी ने संगठन में बदलाव की बात कही थी
नए जिला समिति अध्यक्षों की नियुक्ति की प्रक्रिया जून में शुरू हुई थी जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने संगठन के कायाकल्प अभियान के तहत हरियाणा के वरिष्ठ नेताओं और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी तथा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पर्यवेक्षकों के साथ बैठक की थी।
कांग्रेस महासचिव के.सी. वेणुगोपाल ने मंगलवार शाम जिला समिति अध्यक्षों के नामों की घोषणा की। हरियाणा में एक दशक से भी ज़्यादा समय से सत्ता से बाहर कांग्रेस का 11 साल से राज्य में कोई जिला स्तरीय संगठन नहीं है।
कांग्रेस अध्यक्ष ने जिला अध्यक्षों की नियुक्ति के प्रस्ताव को मंज़ूरी दे दी है
मंगलवार को जारी पार्टी के एक बयान में कहा गया है कि कांग्रेस अध्यक्ष ने हरियाणा की जिला कांग्रेस कमेटियों के अध्यक्षों की नियुक्ति के प्रस्ताव को मंज़ूरी दे दी है। ये नियुक्तियाँ संगठन सृजन अभियान के तहत की गई हैं।
पंचकूला में कांग्रेस ने खेला बड़ा दांव
महीनों की रस्साकशी, खींचतान और पर्दे के पीछे की राजनीतिक जोड़-तोड़ के बाद आखिरकार कांग्रेस आलाकमान ने पंचकूला ज़िले के नए कप्तान की घोषणा कर दी है। हैरानी की बात यह है कि कमान एक ऐसे नाम को सौंपी गई है जिसे ज़िले के एक बड़े हिस्से के कार्यकर्ता और नेता भी नहीं पहचानते।
रायपुर रानी के बदौना कलां गाँव के संजय चौहान के पास पंचकूला ज़िला कांग्रेस की ज़िम्मेदारी है। सूत्रों के मुताबिक़, संजय चौहान का नाम आगे लाने में सांसद वरुण मुलाना की अहम भूमिका रही। इसलिए उन्हें हुड्डा गुट का माना जा रहा है।
संजय चौहान ने पुराने दिग्गजों की उम्मीदों पर पानी फेरा
संजय चौहान की ताजपोशी ने पुराने दिग्गजों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। संगठन में वर्षों से मेहनत करने वाले कई वरिष्ठ नेता इस पद की दौड़ में थे, लेकिन दिल्ली दरबार ने अचानक एक अपेक्षाकृत अनजान और नए चेहरे पर दांव लगा दिया। राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि गुटबाजी से परेशान आलाकमान ने किसी 'तटस्थ' चेहरे को आगे लाकर पुराने गुटों की पकड़ कमजोर करने की कोशिश की है।
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