खतरे में अल-फलाह यूनिवर्सिटी का माइनॉरिटी कोटा, NCMEI आज करेगी सुनवाई
आयोग ने 24 नवंबर को यूनिवर्सिटी को नोटिस जारी कर पूछा था कि जब इसके डॉक्टरों की भूमिका दिल्ली में 10 नवंबर को हुए विस्फोट में जांच के दायरे में है, तो उसका अल्पसंख्यक दर्जा क्यों बरकरार रखा जाए।
दिल्ली ब्लास्ट केस की जांच के दौरान नाम सामने आने के बाद फरीदाबाद स्थित अल-फलाह यूनिवर्सिटी का माइनॉरिटी कोटा (अल्पसंख्यक दर्जा) अब संकट में है। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान आयोग (NCMEI) इस मामले में आज, 4 दिसंबर को दिल्ली मुख्यालय में सुनवाई करेगा। आयोग ने 24 नवंबर को यूनिवर्सिटी को नोटिस जारी कर पूछा था कि जब इसके डॉक्टरों की भूमिका दिल्ली में 10 नवंबर को हुए विस्फोट में जांच के दायरे में है, तो उसका अल्पसंख्यक दर्जा क्यों बरकरार रखा जाए।
क्यों जारी हुआ नोटिस?
यह नोटिस NAAC द्वारा 12 नवंबर को भेजे गए उस पत्र के बाद आया, जिसमें मान्यता से जुड़े बयानों पर स्पष्टीकरण मांगा गया था। NCMEI ने आज की सुनवाई में यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार और हरियाणा शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव को उपस्थित रहने का आदेश दिया है।
ED की कार्रवाई और गिरफ्तारियां
अल-फलाह ट्रस्ट के चेयरमैन जावेद अहमद सिद्दीकी 18 नवंबर से ED की हिरासत में हैं। उन पर मनी लॉन्ड्रिंग और वित्तीय अनियमितताओं के आरोपों की जांच जारी है।
इसके अलावा, दिल्ली ब्लास्ट केस में यूनिवर्सिटी की डॉ. शाहीन सईद और डॉ. मुजम्मिल शकील जांच एजेंसियों की गिरफ्त में हैं। इसी यूनिवर्सिटी का डॉक्टर उमर नबी इस केस में सुसाइड बॉम्बर था।
अल्पसंख्यक स्टेटस पर सवाल क्यों?
सुनवाई में आयोग यह जांच करेगा कि-
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क्या यूनिवर्सिटी का संचालन अभी भी उसी अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा हो रहा है, जिसके आधार पर उसे दर्जा मिला था?
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क्या स्वामित्व या प्रबंधन में बदलाव हुआ है?
फिलहाल यूनिवर्सिटी की सदस्यता भारतीय विश्वविद्यालय संघ (AIU) ने निलंबित कर दी है।
NCMEI ने मांगे विस्तृत दस्तावेज
आयोग ने यूनिवर्सिटी और ट्रस्ट से दर्जनों दस्तावेज मांगे हैं, जिनमें-
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ट्रस्ट डीड के मूल कागजात
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फंडिंग का पूरा विवरण
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तीन वर्षों के बैंक लेन-देन
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कर्मचारियों और प्रशासकों की नियुक्ति प्रक्रिया
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प्रवेश संबंधी आंकड़े
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यूनिवर्सिटी की बैठकों के रिकॉर्ड शामिल हैं
शिक्षा विभाग को भी सत्यापन रिपोर्ट पेश करनी होगी, जिसमें पिछले वर्षों में किए गए निरीक्षण, निगरानी उपाय और पत्राचार का विवरण शामिल है।
यदि यूनिवर्सिटी ये दस्तावेज पेश करने में विफल रहती है, तो कड़ी कार्रवाई की संभावना है।
पहले भी धमाकों से जुड़ता रहा है यूनिवर्सिटी का नाम
यह पहला मामला नहीं है जब अल-फलाह यूनिवर्सिटी का नाम आतंकी गतिविधियों में सामने आया हो-
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लालकिला ब्लास्ट का सुसाइड बॉम्बर डॉक्टर उमर नबी इसी यूनिवर्सिटी में कार्यरत था।
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उसी नेटवर्क के डॉ. मुजम्मिल शकील और डॉ. शाहीन सईद को NIA गिरफ्तार कर चुकी है।
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2008 अहमदाबाद सीरियल ब्लास्ट का आरोपी मिर्ज़ा शादाब बेग भी इस संस्थान का पूर्व छात्र था।
7 साल में 415 करोड़ की कमाई, 9 शेल कंपनियां उजागर
जांच में पता चला है कि यूनिवर्सिटी को सात साल में 415 करोड़ रुपये की आय हुई। एजेंसियों को ट्रस्ट से जुड़ी नौ शेल कंपनियां भी मिली हैं। सभी का लेन-देन एक ही PAN नंबर से जुड़ा पाया गया। संस्थान कई वर्षों तक बिना मान्यता के चलता रहा, जबकि छात्रों से पूरी फीस वसूली गई, जिन्हें जांच एजेंसियां धोखाधड़ी मान रही हैं।
यूनिवर्सिटी की शुरुआत 20 एकड़ से हुई थी और यह बढ़ते-बढ़ते 78 एकड़ तक फैल गई।
क्या होता है माइनॉरिटी कोटा?
भारत में मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, पारसी और जैन समुदायों को अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त है। इन समुदायों द्वारा संचालित संस्थानों को शिक्षा और रोजगार में विशेष छूट और आरक्षण मिलता है। अल-फलाह यूनिवर्सिटी को मुस्लिम समुदाय के अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में मान्यता मिली हुई है।
सरकारी योजनाओं का बड़े पैमाने पर लाभ
अल-फलाह यूनिवर्सिटी को 2014 में हरियाणा सरकार से प्राइवेट यूनिवर्सिटी का दर्जा मिला।
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2014 में इसके 350 अल्पसंख्यक छात्रों को केंद्र द्वारा स्कॉलरशिप मिली।
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2016 में केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय से 10 करोड़ रुपये की स्कॉलरशिप प्राप्त हुई।
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2015 में 2,600 छात्रों के लिए 6 करोड़ रुपये जारी किए गए।
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AICTE ने भी कई बार वित्तीय मदद दी।
आज की सुनवाई पर टिकी निगाहें
NCMEI की आज की सुनवाई यह तय करेगी कि-
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यूनिवर्सिटी का माइनॉरिटी स्टेटस बरकरार रहेगा या नहीं,
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और क्या इस मामले में आगे की जांच जारी रहेगी।
देश की प्रमुख जांच एजेंसियां पहले से ही यूनिवर्सिटी के फंडिंग, संचालन और कथित आतंकी कनेक्शन की अलग-अलग जांच कर रही हैं।
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