सनातन धर्म में क्यों की जाती है मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा और क्या है इसके पीछे का धार्मिक महत्व?

सनातन धर्म में क्यों की जाती है मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा और क्या है इसके पीछे का धार्मिक महत्व?

धर्म गुरु एवं आचार्यों की मानें तो प्राण प्रतिष्ठा का अभिप्राय मूर्ति विशेष में देवी-देवता या भगवान की शक्ति स्वरूप की स्थापना करना है। भगवान की प्राण प्रतिष्ठा के लिए पूजा-पाठ धार्मिक अनुष्ठान और मंत्रों का जाप किया जाता है।

शास्त्रों के अनुसार 9 इंच से बड़ी मूर्ति को घर में नहीं रखना चाहिए। क्योंकि 9 इंच से बड़ी मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा अनिवार्य होती है और मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के पश्चात प्रतिदिन पूजा करना भी अनिवार्य हो जाता है।

सनातन धर्म में ईश्वर प्राप्ति के लिए भक्ति को सबसे सरल मार्ग बताया गया है। ईश्वर को भक्ति से बड़ी सरलता से प्राप्त किया जा सकता है। जिसके लिए हमारे शास्त्रों में पूजा-पाठ और यज्ञ आदि करने का विधान है।

पूजा-पाठ और यज्ञ मंदिर और मठों में भी किए जा सकते हैं और घर पर रहकर भी किए सकते हैं। घर में पूजा पाठ करने के लिए लोग अपने घर में ही भगवान की प्रतिमा स्थापित करते हैं।

लेकिन घरों में 9 इंच से बड़ी मूर्ति रखना निषेध माना गया है। बिना प्राण प्रतिष्ठा के 9 इंच से बड़ी मूर्ति की घर में पूजा नहीं करनी चाहिए। लेकिन क्या आपको पता है कि सनातन धर्म में क्यों मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करना इतना जरूरी है?

क्या है प्राण प्रतिष्ठा?

मंदिर में मूर्ति स्थापना के समय प्रतिमा रूप को जीवित करने की विधि को प्राण प्रतिष्ठा कहते हैं। सनातन धर्म में प्राण प्रतिष्ठा का विशेष महत्व है। मूर्ति स्थापना के समय प्राण प्रतिष्ठा करना अनिवार्य है।

अगले साल 2024 में 22 जनवरी को अयोध्या के राम मंदिर में भी रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी। जिसके लिए अयोध्या में एक ख़ास समारोह का आयोजन किया जाएगा।

इस समारोह की शुरुआत 16 जनवरी से होगी। 16 जनवरी से ही रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हेतु अनुष्ठान प्रारम्भ कर दिए जाएगें। प्राण प्रतिष्ठा के पश्चात मूर्ति रूप में उपस्थ्ति भगवान की पूजा-उपासना की जाती है।

क्या है प्राण प्रतिष्ठा की विधि?

प्राण प्रतिष्ठा से पहले भगवन की प्रतिमा को गंगाजल या विभिन्न (कम से कम 5) नदियों के जल से स्नान कराया जाता है। इसके पश्चात, भगवान के रंग अनुसार नवीन वस्त्र धारण कराए जाते हैं।

इसके बाद भगवान की प्रतिमा को शुद्ध और स्वच्छ स्थान पर विराजमान करके, उसपर चंदन का लेप लगाया जाता है। इसी समय भगवान की मूर्ति का सिंगार करके और बीज मंत्रों का पाठ कर प्राण प्रतिष्ठा की जाती है।

पंचोपचार कर विधि-विधान से भगवान की पूजा की जाती है। अंत में आरती-अर्चना करके भगवान को भोग लगाए गए प्रसाद को वितरित कर दिया जाता है।

प्राण प्रतिष्ठा हेतु मंत्र

मानो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं
तनोत्वरिष्टं यज्ञ गुम समिमं दधातु विश्वेदेवास इह मदयन्ता मोम्प्रतिष्ठ।।

अस्यै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणाः क्षरन्तु च अस्यै
देवत्व मर्चायै माम् हेति च कश्चन।।

ॐ श्रीमन्महागणाधिपतये नमः सुप्रतिष्ठितो भव
प्रसन्नो भव, वरदा भव।।