न्यायालय ने अपना ही फैसला रद्द किया, दिल्ली मेट्रो की याचिका विचारार्थ स्वीकार की

उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (डीएमआरसी) को बड़ी राहत प्रदान करते हुए बुधवार को अपना ही एक फैसला रद्द कर दिया और कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र की उपक्रम कंपनी ‘दिल्ली एयरपोर्ट मेट्रो एक्सप्रेस प्राइवेट लिमिटेड’ को 2017 के मध्यस्थता आदेश के अनुपालन में 8,000 करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान करने के लिए बाध्य नहीं है।

भारत के प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने 2021 के फैसले के खिलाफ दाखिल दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन की सुधारात्मक याचिका को विचारार्थ स्वीकार कर लिया और कहा कि शीर्ष अदालत ने दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को रद्द करने में गलती की।

दिल्ली उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने 2019 में डीएमआरसी के खिलाफ पारित मध्यस्थता आदेश को रद्द कर दिया था।

पीठ ने अपने फैसले में कहा ,‘‘ दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को खारिज करते हुए इस अदालत ने स्पष्ट रूप से एक ऐसा फैसला सुनाया जिसने एक सार्वजनिक उपक्रम को अत्यधिक जिम्मेदारी से लाद दिया।’’

पीठ ने कहा कि इस मामले में शीर्ष अदालत के पूर्व के फैसले से ‘‘न्याय का उपहास’’ हुआ और इसमें सुधार की जरूरत हुई।

फैसले में कहा गया कि डीएमआरसी द्वारा अब तक जमा की गई राशि वापस कर दी जाएगी। फैसले से पक्षकारों की वही स्थिति बहाल हो गई जिस स्थिति में वे दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले की घोषणा की तारीख पर थे। विस्तृत फैसले की प्रतीक्षा है।

वर्ष 2017 का मध्यस्थता आदेश 7,200 करोड़ रुपये का था और ब्याज और अन्य शुल्कों के साथ राशि बढ़कर 8,000 करोड़ रुपये से अधिक हो गई।

शीर्ष अदालत ने डीएएमईपीएल को 8,000 करोड़ रुपये का भुगतान करने के फैसले को चुनौती देने वाली डीएमआरसी की अपील और पुनर्विचार याचिकाएं खारिज कर दी थीं।