अश्लील कंटेंट पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को लगाई फटकार, 2-4 हफ्तों में नियम बनाने का दिया आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को सोशल मीडिया पर फैल रहे अश्लील और आपत्तिजनक कंटेंट को लेकर कड़ी टिप्पणी की।
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को सोशल मीडिया पर फैल रहे अश्लील और आपत्तिजनक कंटेंट को लेकर कड़ी टिप्पणी की। अदालत ने कहा कि सोशल मीडिया पर डाले जाने वाले एडल्ट या आपत्तिजनक कंटेंट के लिए किसी न किसी को जिम्मेदार ठहराना जरूरी है। कोर्ट ने केंद्र सरकार को आदेश दिया कि चार हफ्तों के भीतर इस पर सख्त रेगुलेशन तैयार किए जाएं, जो SC/ST एक्ट जैसी कठोरता वाले हों।
कोर्ट ने की कड़ी टिप्पणी
मुख्य न्यायाधीश CJI सूर्यकांत ने कहा - “मान लीजिए कोई व्यक्ति अपना चैनल बनाकर कुछ भी अपलोड कर देता है। फिर वह कहता है कि मैं किसी के प्रति जवाबदेह नहीं हूं। ऐसे में जवाबदेही तय करना बहुत जरूरी है।”
जस्टिस जॉयमाल्या बागची ने की टिप्पणी
जस्टिस जॉयमाल्या बागची ने कहा कि “जब तक अधिकारियों की प्रतिक्रिया आती है, गंदा कंटेंट लाखों व्यूअर्स तक पहुंच चुका होता है। इसे रोकने के लिए ठोस तंत्र बनाना ही होगा।”
4 हफ्तों में तैयार हो नियम
कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि यूजर-जनरेटेड सोशल मीडिया कंटेंट पर निगरानी रखने के लिए एक स्पष्ट और सशक्त नियामक ढांचा तैयार किया जाए। जिसमें अश्लील, आपत्तिजनक, धार्मिक या राष्ट्रीय एकता के खिलाफ कंटेंट पर तुरंत कार्रवाई की व्यवस्था होनी चाहिए।
‘इंडियाज गॉट लेटेंट’ केस
यह मामला यूट्यूबर और कॉमेडियन समय रैना तथा कंटेंट क्रिएटर रणवीर अलाहबादिया के शो “India’s Got Latent” से जुड़ा है। इस शो में कुछ बोल्ड और अभद्र कॉमेडी कंटेंट डाला गया था, जिसमें महिलाओं और पेरेंट्स को लेकर आपत्तिजनक बातें कही गईं। इस पर कई राज्यों में FIR दर्ज हुई थी। रणवीर अलाहबादिया ने FIR रद्द करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी। कोर्ट ने FIR तो रद्द नहीं की, लेकिन केंद्र से कहा कि ऐसे मामलों की रोकने के लिए नए और कड़े नियम बनाए जाएं।
"फ्री स्पीच का मतलब जिम्मेदारी से आजादी" - SG तुषार मेहता
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत में कहा “यह सिर्फ अश्लीलता का मामला नहीं है, बल्कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दुरुपयोग का मामला है। बोलने की आजादी बहुत कीमती है, लेकिन जब इसका गलत इस्तेमाल होता है, तो समाज पर बुरा असर पड़ता है।”
"एडल्ट कंटेंट पर सख्त चेतावनी और उम्र की पुष्टि जरूरी"
कोर्ट ने कहा कि सोशल मीडिया और वीडियो प्लेटफॉर्म्स को कंटेंट से पहले साफ चेतावनी देनी चाहिए। “सिर्फ दो सेकंड की चेतावनी काफी नहीं। उसे इतना स्पष्ट होना चाहिए कि दर्शक उसे समझ सके।”
CJI ने दिया सुझाव
CJI ने कहा कि “ऐसे कंटेंट देखने से पहले यूजर की उम्र वेरिफाई करने के लिए आधार या डिजिटल ID से ऑथेंटिकेशन अनिवार्य किया जा सकता है।”
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