फूस की झोपड़ी से 1966 में हुई थी मस्ताना शाह बिलोचिस्तानी आश्रम की शुरूआत

Aug 8, 2024 - 12:40
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फूस की झोपड़ी से 1966 में हुई थी मस्ताना शाह बिलोचिस्तानी आश्रम की शुरूआत
फूस की झोपड़ी से 1966 में हुई थी मस्ताना शाह बिलोचिस्तानी आश्रम की शुरूआत

जगदीश प्रजापति, कालांवाली:

हरियाणा में एक बार फिर से चर्चा में आए एक डेरे मस्ताना शाह बिलोचिस्तानी आश्रम के बारे में हर कोई जानना चाहता है। एकाएक चर्चा में आए डेरे के बारे में हर किसी के मन में उत्सुकता है। इसलिए हम आपको डेरे के बारे में विस्तार से जानकारी देते हैं। 18 फरवरी 1966 को वर्तमान मस्ताना शाह बिलूचिस्तानी आश्रम  जगमालवाली की नींव पूज्य परम संत गुरबख्श सिंह जी मैनेजर साहिब द्वारा रखी गई थी। उस समय यह स्थान रेतीला और वीरान था। शुरू में एक फूस की झोपड़ी बनाई गई थी और फिर दो कमरे जोड़े गए थे। बाद में अधिक भूमि खरीदी गई और इस आश्रम का धीरे-धीरे और निरंतर विस्तार हुआ। 

24 अप्रैल 1989 को दिल्ली में सच्चा सौदा रूहानी सत्संग ट्रस्ट के नाम से एक ट्रस्ट पंजीकृत किया गया। 31 मई 1990 को केशवपुरम दिल्ली में सच्चा सौदा रूहानी आश्रम के नाम से एक और आश्रम स्थापित किया गया। दिल्ली स्थित यह आश्रम आमतौर पर जहाजवाला डेरा के नाम से प्रसिद्ध है। पूज्य परम संत गुरबख्श सिंह जी मैनेजर साहिब ने सनमत के विचारों का प्रचार करना शुरू किया और सतगुरु की कृपा से उन्होंने योग्य मनुष्यों को दीक्षा देना शुरू किया और उन्हें अपने भीतर सतगुरु का एहसास कराकर मोक्ष के मार्ग पर लगाना शुरू किया। पूज्य परम संत गुरबख्श सिंह जी मैनेजर साहिब ने सावन शाही मस्तानी मौज हॉल नामक एक गोल सत्संग हॉल बनवाया था, जिसे सचखंड के नाम से जाना जाता है। 

यह दुनिया की अद्भुत इमारतों में से एक है। उक्त हॉल पूज्य परम संत मस्ताना शाह बलूचिस्तानी जी के आदेशानुसार बनाया गया था, जो कहा करते थे कि ऐसा अद्भुत हॉल मैनेजर साहिब ही बनवा सकते हैं। वे चाहें तो अमेरिका से इंजीनियर बुला सकते हैं, अन्यथा वे खुद ही इसे बना सकते हैं। सतगुरु की कृपा से पूज्य परम संत गुरबख्श सिंह जी मैनेजर साहिब ने 30 जुलाई 1998 को अपना जीवन चक्र पूरा किया और अपने पवित्र कर्तव्यों को पूरा करने के बाद 83 वर्ष की आयु में अनामी (स्वर्ग) के लिए प्रस्थान किया और यह प्रमुख कार्य अपने उत्तराधिकारी (वकील साहिब जी) को सौंप दिया। 

संत मैनेजर साहिब जी हमेशा वकील साहब की सेवा और सिमरन के साथ-साथ उनकी सहनशीलता की भी प्रशंसा करते थे। मंडी डबवाली में परम संत मैनेजर साहिब जी के परिसर में साप्ताहिक सत्संग होता था, जिसे कुछ प्रेमी और साधु संचालित करते थे। एक बार परम संत मैनेजर साहिब जी के अनुयायी महेंद्र कुमार लूथरा, जो दिल्ली के निवासी थे, लेकिन उस समय मंडी डबवाली में रहते थे, ने परम संत मैनेजर साहिब जी से अनुरोध किया कि क्षेत्र में साप्ताहिक सत्संग डेरा के कुछ साधुओं द्वारा संचालित किया जाना चाहिए क्योंकि उनकी वाणी में सतगुरु की छाप होती है और इससे प्रेमियों को आशीर्वाद मिलता है। 

महेंद्र कुमार लूथरा के अनुरोध पर परम संत मैनेजर साहिब जी ने वकील साहब को मंडी डबवाली में सत्संग आयोजित करने के लिए कहा। वर्ष 1991 में वकील साहिब जी ने पहली बार मंडी डबवाली में सत्संग किया था। उस समय सुनने वाले लोग परम संत मैनेजर साहिब जी की आत्मा को अपने भीतर महसूस कर रहे थे। उसके बाद वकील साहिब जी ने पंजाब और हरियाणा के अलग-अलग इलाकों में सत्संग करना शुरू कर दिया। एक बार वर्ष 1991 में डेरा जगमालवाली में मासिक भंडारे के दौरान, परम संत मैनेजर साहिब जी की तबीयत खराब होने पर उन्होंने वकील साहिब जी से सत्संग करने को कहा, जिसे वकील साहिब जी ने किया। 

सत्संग के बाद परम संत मैनेजर साहिब जी ने कहा, वकील ने सादी धुन ले ली है। यह देखकर आश्चर्य हुआ कि वकील साहिब जी को परम संत मैनेजर साहिब जी के सभी भक्तों के नाम और पते याद थे। उनकी याददाश्त बहुत तेज़ थी और उन्हें परम संत मैनेजर साहिब जी के सभी वचन भी याद थे और जब भी वे किसी सत्संग में उन्हें सुनाते थे तो लोगों को परम संत मैनेजर साहिब जी की मौजूदगी का एहसास होता था। वकील साहिब जी ने मैनेजर साहिब जी द्वारा उनके साथ साझा किए गए अनुभवों पर एक किताब भी लिखनी शुरू की। अपना चोला छोडऩे से पहले परम संत मैनेजर साहिब जी ने वर्ष 1998 में सभी संगत से कहा कि अब वकील साहिब जी डेरा जगमालवाली की देखभाल करेंगे। 

परम संत मैनेजर साहिब जी ने उन्हें 9 अगस्त 1998 को यह दायित्व सौंपा था। और तब से वे मस्ताना शाह बलूचिस्तानी डेरा जगमालवाली के गादी नशीन हैं। परम संत वकील साहिब जी हमेशा कहते हैं कि नाम, सिमरन और सत्संग सतगुरु को पाने के रास्ते हैं जो हर किसी के दिल में मौजूद जिंदा राम का ख्याल रखते हैं। वे सिमरन पर इसलिए भी जोर देते हैं क्योंकि सिमरन सतगुरु से मिलने का सबसे अच्छा तरीका है। 

वे यह भी कहते हैं कि सतगुरु सिफऱ् उन लोगों की ही परवाह नहीं करते जिन्होंने सतगुरु से नाम लिया है बल्कि उन प्रेमियों के परिवार वालों का भी ख्याल रखते हैं। वकील साहब ने पिछली 1 अगस्त 2024 को चोला छोड़ गए। आज डेरा के साथ लाखों की संगत हरियाणा,पंजाब,उत्तरप्रदेश ओर देश ओर दूसरे देशों से जुड़े हुए है। अब जिस प्रकार से संतो का परिवार व डेरा के ट्रस्ट मैंबर ओर पंचायतें व प्रूफ महात्मा वीरेंद्र के पक्ष में है तो संभानाऐं जताई जा रही है कि तीसरे संत ओर गद्वीनशीन संत के तौर पर महात्मा वीरेंद्र ही गद्दी पर बैठेंगें।

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