CM नीतीश कुमार के सामने ये 6 चुनौतियां
बिहार के पटना में नीतीश कुमार ने आज दसवीं बार शपथ ग्रहण की। बता दें कि इस बार चुनाव में जेडीयू ने 85 और बीजेपी को 89 सीटें हासिल की हैं।
बीजेपी की 89 और जेडीयू की 85 सीटों वाले एनडीए गठबंधन को बिहार में प्रचंड बहुमत मिला है, जिससे विपक्षी दलों के लिए किसी भी फैसले को राजनीतिक तौर पर चुनौती देना आसान नहीं होगा। लेकिन इस स्थिरता के साथ नीतीश कुमार सरकार के सामने कई गहरी चुनौतियां भी हैं रोजगार, उद्योग, शिक्षा, अपराध और आर्थिक असमानता जैसे मोर्चों पर उन्हें कठिन परीक्षा से गुजरना होगा।
सुशासन बाबू की नई पारी
नीतीश कुमार ने 10वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर इतिहास रच दिया है। लेकिन बिहार जैसे सीमित संसाधनों वाले राज्य में रोजगार, पेंशन, उद्योग और मुफ्त बिजली जैसे चुनावी वादों को पूरा करना आसान नहीं होगा। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नीतीश के सामने उनकी सेहत और बढ़ती उम्र भी एक प्रमुख चुनौती हो सकती है।
रोजगार और पलायन
बिहार से रोजगार के लिए पलायन दशकों से एक गंभीर मुद्दा है। रिपोर्ट के मुताबिक राज्य के हर तीन में से दो परिवारों का एक सदस्य दूसरे राज्य में काम करता है। 1981 में यह आंकड़ा सिर्फ 10-15% था, जो अब बढ़कर 65% हो गया है।
धीमा औद्योगिक विकास
2011 की जनगणना के अनुसार, बिहार में शहरीकरण की दर केवल 11.3% रही, जबकि तमिलनाडु, गुजरात और केरल में यह 40% से ऊपर है। रिपोर्ट के मुताबिक, 2013 से 2023 तक बिहार के अधिकांश क्षेत्र ग्रामीण हैं। मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर राज्य की जीडीपी में केवल 5-6% योगदान देता है।
अपराध और कानून व्यवस्था की चुनौतियां
नीतीश कुमार को 'जंगल राज' खत्म करने का श्रेय मिला, लेकिन 2015 से 2024 के बीच अपराध दर में तेज़ वृद्धि हुई है। हालांकि जानकारी के अनुसार, 2023 में 2862 हत्याओं के मामले दर्ज हुए उत्तर प्रदेश के बाद यह देश में दूसरा सबसे बड़ा आंकड़ा है। सरकारी कर्मचारियों पर हमलों के 371 मामले दर्ज हुए, जो देश में सबसे अधिक हैं।
आर्थिक असमानता सबसे बड़ी चनौती
बिहार ने शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे में सुधार किए हैं, लेकिन प्रति व्यक्ति आय अब भी देश में सबसे कम है। राष्ट्रीय औसत जहां ₹1.89 लाख है, वहीं बिहार में यह केवल ₹60,000 है। पटना में प्रति व्यक्ति आय ₹2,15,000, जबकि शिवहर जैसे जिलों में मात्र ₹33,000 है।
जनसंख्या और संसाधन दबाव
बिहार की जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है, जिससे शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार सृजन पर दबाव बढ़ा है। हालांकि, युवा आबादी बिहार की सबसे बड़ी पूंजी है। यदि राज्य इस जनसंख्या को कौशल विकास और रोजगार से जोड़ सके, तो आने वाले वर्षों में यह “बदलाव की सबसे बड़ी ताकत” बन सकती है।
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