हरियाणा में फिर शुरू हुआ  'आयाराम-गयाराम' का खेल, कुछ ने बदला पाला, कुछ की तैयारी

हरियाणा की राजनीति में शुरु हुए ‘आयाराम-गयाराम’ के खेल का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दुष्‍यंत चौटाला की पार्टी जननायक जनता पार्टी  के 10 में से छह विधायकों ने पार्टी को अलविदा कहते हुए कांग्रेस और बीजेपी का दामन थाम लिया है और थामने की तैयारी में हैं।

Aug 25, 2024 - 12:48
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हरियाणा में फिर शुरू हुआ  'आयाराम-गयाराम' का खेल, कुछ ने बदला पाला, कुछ की तैयारी
हरियाणा में फिर शुरू हुआ  'आयाराम-गयाराम' का खेल, कुछ ने बदला पाला, कुछ की तैयारी

चंडीगढ़:

हरियाणा में विधानसभा चुनाव 2024 का बिगुल बजते ही एक बार फिर से ‘आयाराम-गयाराम’ का खेल शुरू हो गया है। सूबे की राजनीति में दलबदल का सिलसिला बहुत तेज गति से चल रहा है। हालांकि ‘आयाराम-गयाराम’ का मुहावरा भी हरियाणा की ही देन है। वह कैसे यह हम आपकों आगे बताएंगे, लेकिन इससे पहले आपकों बताते हैं कि आखिर इस चुनाव में ‘आयाराम-गयाराम’ का खेल कैसे शुरू हुआ। 

हरियाणा की राजनीति में शुरु हुए ‘आयाराम-गयाराम’ के खेल का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दुष्‍यंत चौटाला की पार्टी जननायक जनता पार्टी  के 10 में से छह विधायकों ने पार्टी को अलविदा कहते हुए कांग्रेस और बीजेपी का दामन थाम लिया है और थामने की तैयारी में हैं। जेजेपी को डूबता जहाज बताकर उसके नेता और विधायक अपने लिए महफूज ठिकाना तलाश रहे हैं।

 जेजेपी को अलविदा कहने वाले अधिकांश विधायकों ने पार्टी में परिवारवाद के हावी होने का आरोप लगाया है। विधायकों का कहना था कि पार्टी में उनकी बात नहीं सुनी जाती। कई फैसले एकतरफा फैसले लिए गए, जिसे लेकर उनके साथ कोई सलाह-मशवरा नहीं किया गया। ऐसे में 2019 के चुनाव में किंग मेकर बनकर ऊभरी जननायक जनता पार्टी के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है। 

हालांकि कुछ दिन पहले चर्चा चली थी कि जेजेपी हरियाणा में आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन कर सकती है, लेकिन अब इन चर्चाओं पर भी दोनों दलों की ओर से विराम लगा दिया गया है। दोनों दलों की ओर से प्रदेश की सभी सीटों पर चुनाव लड़ने संबंधी बयान दिए जाने ये साफ हो गया कि अब कम से कम चुनाव होने तक इनके बीच कोई समझौता नहीं होगा। 

ऐसे हुई ‘आयाराम-गयाराम’ की उत्पत्ति

दअरसल राजनीति में ‘आयाराम-गयाराम’ का मुहावरा हरियाणा की राजनीति की ही देन है। आप भी जानना चाह रहे होंगे कि आखिर इसकी शुरूआत कब और कैसे हुई, चलिए आपकों बताते हैं। दअरसल यह बात 1967 की है। उस दौरान अब की होडल विधानसभा हसनपुर विधानसभा के नाम से जानी जाती थी। 1967 में गया लाल ने वहां से एक आजाद उम्मीदवार के तौर पर चुनाव जीता था। चुनाव जीतन के बाद वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए। इसके एक पखवाड़े में ही उन्होंने तीन बार दल बदल लिए। 

इस दौरान गया राम कांग्रेस से अलग होकर संयुक्त मोर्चे में शामिल हुए, इसके बाद फिर से कांग्रेस में वापस आ गए और फिर संयुक्त मोर्चे में शामिल हुए। कांग्रेस में शामिल होने के लिए जब गया राम ने संयुक्त मोर्चा छोड़ा तो कांग्रेस के उस समय के नेता राव बीरेंद्र सिंह ने चंडीगढ़ में उन्हें पार्टी में शामिल करवाते हुए मीडिया के सामने कहा था कि "गया राम अब आया राम बन गया है"। उस समय से ही हरियाणा की राजनीति में ‘आयाराम-गयाराम’ का मुहावरा प्रचलित है। हालांकि इस घटनाक्रम के बाद हरियाणा की विधानसभा को भंग कर राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया था। 

दलबदल विरोधी कानून

इस तरह के दलबदल को रोकने के लिए 1985 में दलबदल विरोधी अधिनियम पारित किया गया था। राजीव गांधी की सरकार द्वारा इसे भारत के संविधान की दसवीं अनुसूची के रूप में शामिल किया गया था। संसद और राज्य विधानसभाओं दोनों पर लागू दलबदल विरोधी अधिनियम, सदन के किसी अन्य सदस्य की याचिका के आधार पर किसी विधायक को दलबदल के आधार पर अयोग्य ठहराने के लिए लोकसभा और विधानसभा अध्यक्ष को शक्ति प्रदान करता है। 

हालांकि इस अधिनियम में प्रावधान है कि विधायक अपनी सदस्यता गंवाए बिना भी अपनी पार्टी को बदल सकते हैं या किसी और दल में उसका विलय भी कर सकते हैं, लेकिन इसके लिए उनके पास कम से कम दो तिहाई विधायक विलय के पक्ष में होने चाहिए। ऐसे में न तो विलय करने का फैसला करने वाले सदस्य और न ही मूल पार्टी के साथ रहने वाले सदस्यों को अयोग्यता का सामना करना पड़ेगा।

फैसले के लिए समय की कोई बाध्यता नहीं

किसी भी विधायक को अयोग्य करार देने के लिए फैसला सुनाए जाने को लेकर अध्यक्ष के लिए कोई समय सीमा नहीं है। विधानसभा अध्यक्ष चाहे तो दलबदल के समय अपने विवेक का इस्तेमाल कर, विधायक को अविश्वास प्रस्ताव से पहले भी अयोग्य करार दे सकते हैं या फिर अयोग्यता पर अपने फैसले में देरी भी कर सकते हैं। 

दबदल के दायरे में आती है ये गतिविधियां

सर्वोच्च न्यायालय के एक आदेश के अनुसार बिना औपचारिक त्यागपत्र के पार्टी की सदस्यता छोड़ना। सार्वजनिक रूप से अपनी पार्टी के प्रति विरोध व्यक्त करना या किसी अन्य पार्टी का समर्थन करना और पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होना भी दलबदल कानून के दायरे में आता है। इसके अलावा सार्वजनिक मंचों पर पार्टी की आलोचना करना और विपक्षी दलों द्वारा आयोजित रैलियों में भाग लेना भी इसके दायरे में आता है। 

जेजेपी और आजाद विधायक पर फैसला बाकी

जेजेपी के 6 विधायक पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा दे चुके हैं। इनमें से केवल जोगीराम सिहाग और अनूप धानक दो विधायकों ने ही विधानसभा अध्यक्ष के पास अपनी सदस्यता का त्याग पत्र भेजा है। इसके अलावा चरखी दादरी से आजाद विधायक सोमवीर सांगवान का इस्तीफा भी विधानसभा अध्यक्ष ज्ञानचंद गुप्ता को मिल चुका है। इनके अलावा जेजेपी विधायक रामकरण काला तो पार्टी से इस्तीफा देने के बाद बकायदा कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। 

साथ ही विधायक रामनिवास सुरजाखेड़ा का इस्तीफा भी अभी तक विधानसभा में नहीं पहुंचा है, जबकि सोशल मीडिया पर उनका इस्तीफा खूब वारयल हो रहा है। विधानसभा अध्यक्ष ज्ञानचंद गुप्ता ने बताया कि उनके पास विधायक सोमवीर सांगवान, जोगीराम सिहाग और अनूप धानक का इस्तीफा आया है। इन पर वह मंगलवार को फैसला लेंगे। विधायकों की ओर से दिए गए इस्तीफों के बाद विधानसभा में विधायकों की संख्या 90 से कम होकर 83 रह जाएगी।

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