राजस्थानी लोक नृत्य सहरिया स्वांग ने गीता महोत्सव में छोड़ी अपनी छाप
सहरिया स्वांग नृत्य में कलाकर तीन प्रकार के नृत्यों के द्वारा अपनी बेहतरीन कला का प्रदर्शन करते हैं, जिसमें भस्मासुर स्वांग, कालिका का स्वांग व होलिका स्वांग के द्वारा अलग-अलग मुद्राओं में अपनी कला की छाप दर्शकों के मन पर छोड़ रहे हैं।
एमएच वन ब्यूरो, चंडीगढ़ : कुरुक्षेत्र में ब्रह्मसरोवर के तट पर राजस्थान के लोक कलाकारों द्वारा लोक नृत्य सहरिया स्वांग नृत्य अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में छाप छोड़ने का काम कर रहा है। ग्रुप लीडर के नेतृत्व में 15 सदस्यों की टीम सहरिया स्वांग नृत्य के द्वारा अपनी कला का प्रदर्शन कर रहे हैं। सहरिया स्वांग नृत्य में कलाकर तीन प्रकार के नृत्यों के द्वारा अपनी बेहतरीन कला का प्रदर्शन करते हैं, जिसमें भस्मासुर स्वांग, कालिका का स्वांग व होलिका स्वांग के द्वारा अलग-अलग मुद्राओं में अपनी कला की छाप दर्शकों के मन पर छोड़ रहे हैं।
एक कलाकार ने बातचीत करते हुए कहा कि भस्मासुर स्वांग में भगवान शिव और भस्मासुर की विधाओं को दर्शाया जाता है,इसी प्रकार कालिका स्वांग चैत्र मास में किया जाने वाला स्वांग है और इसी प्रकार होलिका स्वांग फागुन माह में किया जाने वाला नृत्य है। सहरिया स्वांग में कलाकार अपने शरीर को विभिन्न प्रकार के रंगों से रंगकर आदिवासी वेशभूषा में शेर, बन्दर, नाग इत्यादि का रूप बनाकर नृत्य करते हैं। कलाकारों ने बताया कि उन्हें यहां पर आकर अपनी कला का प्रदर्शन करने का मौका मिला है, जिसे पर्यटक बहुत ही उत्सुकता से देख रहे हैं और उन्हें भी यहां के लोगों को नृत्य के माध्यम से अपनी लोक संस्कृति से रूबरू करवाने का मौका मिला है।
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