पड़ोसी राज्यों की तुलना में हरियाणा में कम हुए पराली जलाने के केस, नासा की वेबसाइट पर दिखा हरियाणा का प्रबंधन
नासा की अधिकारी वेबसाइट से 4 और 5 नवंबर की एक्टिव फायर डाटा की तस्वीरें भी हरियाणा सरकार के पराली प्रबंधन की सच्चाई को उजागर करती है।
चंद्रशेखर धरणी, चंडीगढ़ : पराली जलने के कारण वातावरण में बढ़ रहे प्रदूषण के मामले में हरियाणा सरकार की ओर से किए जा रहे प्रयास अब रंग दिखाने लगे हैं। पड़ोसी राज्यों की तुलना में हरियाणा में दो तिहाई कम पराली जलाने के केस सामने आए हैं। नासा की आधिकारिक वेबसाइट से जारी किए गए चित्रों में भी हरियाणा का पराली प्रबंधन साफ दिखाई देता है। हरियाणा सरकार के पराली प्रबंधन की लेकर सुप्रीम कोर्ट भी तारीफ कर चुका है। कोर्ट ने पड़ोसी राज्यों को भी हरियाणा से सीख लेने की सलाह दी थी। नासा की अधिकारी वेबसाइट से 4 और 5 नवंबर की एक्टिव फायर डाटा की तस्वीरें भी हरियाणा सरकार के पराली प्रबंधन की सच्चाई को उजागर करती है।
किसानों को किया जा रहा प्रेरित
हरियाणा में किसानों को पराली को खेत में मिलाकर खाद के रूप में उपयोग करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है, जिससे न केवल भूमि की उर्वरता में वृद्धि हो रही है बल्कि किसानों के लिए आर्थिक लाभ भी सुनिश्चित हो रहे हैं। किसानों को बताया जा रहा है कि फसल अवशेष को खेत में मिलाने से मृदा में कार्बन और अन्य पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे अगली फसलों की पैदावार में भी वृद्धि होती है। “वैज्ञानिक अनुसंधान से साबित हुआ है कि खेत में पराली मिलाने से मृदा का पोषक चक्र मजबूत होता है और मृदा कार्बन का स्तर बढ़ता है, जिससे अगले फसलों की उपज में भी सुधार होता है।”
सरकार दे रही आर्थिक मदद
हरियाणा में लगभग 28 लाख एकड़ भूमि पर धान की खेती होती है। इस साल राज्य सरकार द्वारा किसानों में जागरूकता फैलाने के लिए चलाई गई मुहिम का नतीजा है कि पराली जलाने की घटनाओं में उल्लेखनीय कमी आई है। राज्य सरकार ने इन-सीटू और एक्स-सीटू प्रबंधन के लिए किसानों को सब्सिडी पर मशीनें उपलब्ध कराई हैं और जो किसान पराली नहीं जलाते हैं, उन्हें सरकार की ओर से प्रति एकड़ 1,000 रुपए की आर्थिक सहायता दी जा रही है।
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