लाल किताब को लेकर बड़ा खुलासा, किताब के रचयिता के पुत्र ने दी अहम जानकारी
भारत देश में अनेक प्रकार की धार्मिक मान्यताएं पाई जाती है। इन्हीं में से एक है लालकिताब। आज देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी लाल किताब को मानने और उसमें लिखी बातों में अमल करने वालों की संख्या लाखों में है।
चंद्रशेखर धरणी, चंडीगढ़: भारत देश में अनेक प्रकार की धार्मिक मान्यताएं पाई जाती है। इन्हीं में से एक है लालकिताब। आज देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी लाल किताब को मानने और उसमें लिखी बातों में अमल करने वालों की संख्या लाखों में है। ऐसे में कईं लोगों ने लाल किताब को लेकर जनता में कईं प्रकार की भ्रांतियां फैलानी भी शुरू कर दी है। इसी को लेकर लाल किताब के रचियता पंडित रूपचंद जोशी के बेटे सोमदत्त जोशी ने बड़ा खुलासा किया है।
सोमदत्त जोशी ने बताया कि उनके पिता पंडित रूपचंद जोशी के द्वारा लिखी गई लालकिताब के अभी तक अभी केवल तक पांच संस्करण ही प्रकाशित हुए है। लाल किताब के मूल लेखक पंडित रूपचंद जोशी के पौत्र इकबाल जोशी ने बताया कि लालकिताब के पांच संस्करणों में लालकिताब के फरमान 1939, इलम सामुद्रिक की लाल किताब के अरमान 1940, सामुद्रिक की लाल किताब का तीसरा हिस्सा 1941, इलम सामुद्रिक की लाल किताब तरमीनशुदा 1942, इलम सामुद्रिक की लालकिताब 1952 है। पंडित रूपचंद जोशी के सपुत्र पंडित सोमदत्त जोशी जो पंजाब सरकार से सेवानिवृत्त तहसीलदार है, जिनकी आयु 93 साल है, वह अब अपने पुत्र इकबाल चंद जोशी के साथ हरियाणा के पंचकूला में रहते हैं।
इकबाल जोशी का कहना है कि लालकिताब फैली भ्रांतियों के निराकरण का सबसे बड़ा साधन है। इस किताब के रचनाकाल के समय से पंडित रूपचंद जोशी जी की साधना तथा लगन को उनके पिता सोमदत्त जोशी ने देखा है। पंडित सोमदत्त जोशी, इकबाल जोशी रविवार के दिन बिना अन्न ग्रहण किए लोगों की मुफ्त पत्रिका देखते हैं। लालकिताब 1952 में प्रकाशित होने के बाद पंडित रूपचंद जोशी या इनके परिवार में से किसी भी व्यक्ति ने लालकिताब को नहीं लिखा।
पंडित रूपचंद जोशी के बारे में बताया जाता है कि उन्होंने कोई शिष्य नहीं बनाया। उन्होंने ज्योतिष और लालकिताब के बारे में जो भी दिया वह केवल अपने बेटे सोमदत्त जोशी को दिया। पंडित सोमदत्त जोशी द्वारा कुछ व्यक्तियों को अपनी वस्तुएं दी गई थी, ऐसे में यह लोग लालकिताब के जानकारों तथा मानने वालों में भ्रमजाल फैला रहे हैं।
ना कोई गुरू, ना कोई चेला
लालकिताब के रचियता पंडित रुपचंद जोशी के पुत्र सोमदत्त जोशी ने बताया कि उनके पिता ने किसी को भी अपना शिष्य नहीं बनाया था। उनके पिता जब किताब लिखते थे, उस समय वह केवल पांच साल के थे। जब उनके पिता किताब लिख रहे होते थे तो वह उसे बोलकर सुना देते थे। उस समय उनके पिता भी हैरान हो जाते थे कि इतना छोटा बच्चा कैसे सब कुछ पढ़कर सुना रहा है। इसलिए उनके पिता ने अपनी विद्या किसी अन्य की बजाए उन्हें दी। अब उम्र के अंतिम पडाव में पहुंच चुके पंडित सोमदत्त जोशी ने इसे आगे अपने पुत्रों इकबाल चंद जोशी, राकेश जोशी और वीरेंद्र जोशी को दी है। यानि की लालकिताब के रचियता पंडित रूपचंद के परिवार के अलावा इस किताब के बारे में कोई अन्य जो भी बात करता है, वह केवल भ्रम ही फैला रहा है। **
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