क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड? जिस पर हो रहा है भारी विवाद

क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड? जिस पर हो रहा है भारी विवाद

आगामी लोकसभा चुनाव 2024 से पहले देश में खबरें फिलहाल इन 4 शब्दों के इर्द-गिर्द चल रही हैं। सबसे पहले देश के सबसे बड़े पब्लिक सेक्टर बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने राजनीतिक पार्टियों के मिले इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी देने से इनकार कर दिया।

इसके बाद देश की शीर्ष अदालत में एक याचिका दायर हुई जिस पर सुनवाई के दौरान एसबीआई को जमकर लताड़ पड़ी। कोर्ट ने दो दिन के अंदर चुनावी बॉन्ड को लेकर हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया।

13 मार्च 2024 को एसबीआई ने हलफनामा दाखिल कर दिया है। अब सवाल यह है कि आखिर ये इलेक्टोरल बॉन्ड होते क्या हैं? बता दें कि 2017 में इलेक्टोरल बॉन्ड की शुरुआत हुई थी।

इन चुनावी बॉन्ड के जरिए कोई भी शख्स और कॉरपोरेट कंपनी किसी भी राजनीतिक पार्टी को बिना पहचान ज़ाहिर करे अनलिमिटेड पैसा डोनेट कर सकती है।

इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम के तहत इलेक्टोरल बॉन्ड्स को SBI से फिक्स्ड डिनोमिनेशन में डोनर द्वारा खरीदा जा सकता है और किसी पॉलिटिकल पार्टी को दे दिया जाता है।

फिर वह पार्टी इन बॉन्ड को कैश रकम में बदल सकती है। इन बॉन्ड की सबसे खास बात है कि फायदा लेने वाली पॉलिटिकल पार्टी किसी भी इकाई या शख्स को डोनर का नाम बताने की जरूरत नहीं होती। यहां तक की इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया को भी नहीं।

लेकिन अब इलेक्टोरल बॉन्ड मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को फटकार लगाते हुए नोटिस जारी किया है। अदालत ने बैंक से पूछा है कि बॉन्ड नंबरों का खुलासा क्यों नहीं किया।

बैंक ने अल्फा न्यूमिरिक नंबर क्यों नहीं बताया। अदालत ने एसबीआई को बॉन्ड नंबर का खुलासा करने का आदेश दिया है। अदालत का आदेश है कि सील कवर में रखा गया डेटा चुनाव आयोग को दिया जाए, क्योंकि उनको इसे अपलोड करना है।

अदालत ने कहा कि बॉन्ड खरीदने और भुनाने की तारीख बतानी चाहिए थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ईसी में अपलोड करने के लिए डेटा जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि बॉन्ड नंबरों से पता चल सकेगा कि किस दानदाता ने किस पार्टी को चंदा दिया।

अब मामले में अगली सुनवाई सोमवार को यानी कि 18 मार्च को होगी। अब सवाल ये है कि आख़िर क्या चाहता है चुनाव आयोग तो बता दें कि चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में जो अर्जी दी है, उसमें उसने सुप्रीम कोर्ट की ओर से 11 मार्च को पारित आदेश में संशोधन की मांग की है।

इसमें आदेश के ऑपरेटिव हिस्से में कुछ स्पष्टीकरण या संशोधन की मांग की गई है। हालांकि इसकी विस्तृत जानकारी अभी नहीं मिली है।

चुनाव आयोग की ओर से जारी आंकड़ों पर नजर डालें तो राजनीतिक दलों को मदद के नाम पर सबसे ज्यादा इलेक्टोरल बॉन्ड जिन कंपनियों ने खरीदे हैं उनमें ग्रासिम इंडस्ट्रीज, मेघा इंजीनियरिंग, पीरामल एंटरप्राइजेज, टोरेंट पावर, भारती एयरटेल, डीएलएफ कमर्शियल डेवलपर्स व  वेदांता लिमिटेड, अपोलो टायर्स, लक्ष्मी मित्तल, एडलवाइस, पीवीआर, केवेंटर, सुला वाइन, वेलस्पन, सन फार्मा जैसी कंपनियों के नाम शामिल हैं।