बेहमई कांड में 43 साल बाद आया फैसला, फूलन देवी ने 20 ठाकुरों को मारी थी गोलियां

बेहमई कांड में 43 साल बाद आया फैसला, फूलन देवी ने 20 ठाकुरों को मारी थी गोलियां

14 फरवरी 1981 के दिन डाकुओं की रानी कही जाने वाली फूलन देवी के नरसंहार की घटना को सुनकर आज भी लोगों की रूह कांप उठती है।

कानपुर देहात बेहमई गांव के लोग 14 फरवरी को भयावह हत्याकांड के लिए भी याद करते हैं। ये वही काला दिन है जब डकैतों की रानी कही जाने वाली फूलन देवी ने बेहमई गांव में एक साथ करीब 20 लोगों को गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया था।

तो वहीं हत्याकांड में मारे गए लोगों की याद में स्मारक बना है। इस स्मारक के दीवार पर बीस लोगों के नाम दर्ज हैं।

बता दें कि चंबल की रानी कहलाने वाली महिला डकैत और पूर्व सांसद फूलन देवी से जुड़े सबसे चर्चित केस में 43 साल बाद फैसला आया है।

इस मामले में 36 आरोपी थे, जिनमें मुख्य आरोपी फूलन देवी समेत बाकी लोगों की मौत हो चुकी है। एकसाथ 20 लोगों की हत्या के बेहमई नरसंहार की गूंज विदेशों तक हुई थी।

जिसके बाद उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सरकारों को चंबल के डकैतों के खिलाफ विशेष अभियान शुरू करने पर मजबूर होना पड़ा था।

इस मामले में अब 43 साल बाद आए फैसले में एक आरोपी श्याम बाबू को 80 साल की आयु में उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। जबकि एक अन्य आरोपी विश्वनाथ को बरी कर दिया गया है।

बताया जाता है कि फूलन देवी जब 16 साल की थी तब बेहमई के ठाकुरों ने उनके साथ सामूहिक दुष्कर्म किया था। वह किसी तरह ठाकुरों के चंगुल से अपनी जान बचाकर भाग निकलने में कामयाब रही थी।

फूलन ने अपने साथ हुए अन्याय को याद रखा और साल 1981 में एक बार फिर बेहमई गांव में पहुंची। लेकिन इस बार वह कोई आम लड़की नहीं बल्कि डाकुओं की रानी थी।

फूलन ने गांव पहुंचकर 26 ठाकुरों के घरों को घेरा और उन पर गोलियां चलाईं, जिसमें 20 लोगों की मौत हो गई थी। घटना के समय फूलन की उम्र 18 साल की बताई गई थी।

फूलन देवी के डकैत बनने की असल वजह आज भी बहुत कम लोग ही जानते हैं। बेहमई कांड के बाद बनी बैंडेट क्वीन फिल्म देखकर लोगों के मन में यही है कि फूलन के साथ गैंगरेप हुआ तो उसने बंदूक उठा ली और डकैत बन गई।

जबकि ऐसा नहीं है। फूलन के परिवारिक भाई ने उसकी पैतृक जमीन पर कब्जा कर लिया तो उसने विरोध किया।

लेकिन उन्होंने फूलन पर चोरी का आरोप लगाकर पुलिस से पकड़वाया। कई दिनों थाने में रखा गया। बस यहीं से उसने बीहड़ में उतरने का फैसला किया था।