मोइत्रा मामले में लोकसभा में चर्चा ‘प्राकृतिक न्याय’ के सिद्धांत के खिलाफ, मौलिक अधिकारों का उल्लंघन: कांग्रेस

कांग्रेस ने ‘पैसे लेकर सवाल पूछने’ के आरोप में तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा के खिलाफ आचार समिति के प्रतिवेदन पर शुक्रवार को लोकसभा में ‘आनन-फानन’ में चर्चा कराये जाने का आरोप लगाते हुए इसे ‘प्राकृतिक न्याय’ के सिद्धांत का उल्लंघन करार दिया और कहा कि यदि सदस्यों को रिपोर्ट पढ़ने के लिए तीन-चार दिन दे दिये गये होते तो ‘आसमान नहीं टूट पड़ता’।

संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने सदन की कार्यवाही दो बार के स्थगन के बाद दोपहर दो बजे शुरू होते ही आचार समिति की प्रथम रिपोर्ट को चर्चा के लिए पेश किया, जिस पर कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने अध्यक्ष ओम बिरला से आग्रह किया कि संबंधित रिपोर्ट को पढ़कर चर्चा करने के लिए सदस्यों को कम से कम तीन-चार दिन का समय दिया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि दोपहर 12 बजे के बाद रिपोर्ट पेश हुई और चर्चा दो बजे शुरू कर दी गयी, ऐसे में सदस्यों को 406 पन्नों की रिपोर्ट पढ़ने का पर्याप्त मौका भी नहीं मिला है। उन्होंने कहा कि यह कार्यवाही प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक न्याय का सिद्धांत किसी हत्या के मामले के दोषी को भी अपना पक्ष रखने की इजाजत देता है।

हालांकि अध्यक्ष ने तीन-चार दिन बाद चर्चा कराने के अनुरोध को स्वीकार नहीं किया और चर्चा शुरू कराई। कांग्रेस की ओर से मनीष तिवारी ने कहा कि वकालत पेशे में 31 साल के कॅरियर में उन्होंने जल्दबाजी में बहस जरूर की होगी, लेकिन सदन में जितनी जल्दबाजी में उन्हें चर्चा में हिस्सा लेना पड़ रहा है, वैसा कभी उन्होंने नहीं देखा।

तिवारी ने कहा, ‘‘आसमान नहीं टूट पड़ता, यदि हमें तीन चार-दिन दे दिये जाते, ताकि हम (रिपोर्ट) पढ़कर सदन के समक्ष अपनी बात रखते।’’ उन्होंने सवाल खड़े किये कि क्या आचार समिति किसी के मौलिक अधिकारों का हनन कर सकती है? उन्होंने कहा कि यह कैसी न्याय प्रक्रिया है जिसके तहत अभियुक्त को अपनी बात रखने का मौका भी नहीं दिया गया।

तिवारी ने कहा, ‘‘समिति ये तो सिफारिश कर सकती है कि कोई व्यक्ति गुनाहगार है या नहीं, लेकिन सजा क्या होगी, इसका फैसला सदन ही कर सकता है। समिति सदस्यता रद्द करने का निर्णय कैसे ले सकती है।’’ उन्होंने तीन दलों द्वारा अपने सदस्यों को व्हिप जारी करने पर सवाल खड़े किये और कहा कि सदन की कार्यवाही तत्काल स्थगित करने और व्हिप वापस लेने का आदेश दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस मामले में यहां उपस्थित सदस्य न्यायाधीश के रूप में हैं न कि पार्टी सदस्य के रूप में।

इस पर अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि यह संसद है न कि अदालत। उन्होंने कहा, ‘‘यह संसद है न कि कोर्ट है। मैं न्यायाधीश नहीं हूं, सभापति हूं…यहां मैं निर्णय नहीं कर रहा, बल्कि सभा निर्णय कर रही है।’’ तिवारी ने संविधान के अनच्छेद 105(2) के तहत सांसदों को दी गयी विशेष छूट का भी जिक्र किया।