500 वर्षों का इंतजार, 70 से अधिक लड़ाइयां…लेकिन इन लोगों के बिना अधूरी है राम मंदिर बनने की कहानी

500 वर्षों का इंतजार, 70 से अधिक लड़ाइयां…लेकिन इन लोगों के बिना अधूरी है राम मंदिर बनने की कहानी

500 सालों के अथक प्रयास और कठोर संघर्ष के बाद आखिरकार वो पल आ गया जिसका इंतज़ार दुनियाभर के करोड़ों सनातन संस्कृति में विश्वास रखने वाले लोग कर रहे थे. दशकों टेंट में रहने वाले रामलला अब भव्य व दिव्य राम मंदिर में विराजित हो गए हैं.

लड़ी गई 70 से अधिक लड़ाइयां

मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के जन्मभूमि को वापस लेने के लिए 70 से अधिक लड़ाइयां लड़ी गई. लाखों लोगों ने रामलला के नाम अपने प्राणों की आहुति दे दी. 1990 का वो दृश्य देश कैसे भूल सकता है, जब अयोध्या में कारसेवकों पर अंधाधुंध गोलियां चला दी गई. आखिर कैसे कोई भूल सकता है कि इस राम मंदिर को मूर्त रूप दिलवाने के प्रयास में ना जाने कितने लोग माँ सरयू में समा गए.

अशोक सिंघल का रहा योगदान

इस सूची में पहला नाम विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक सिंघल का आता है. 1949 में राम लला के प्राकट्य के बाद वर्षों यह मामला कोर्ट में लटका रहा. साल 1984 में रामजन्मभूमि मुक्ति के लिए रथयात्रा निकाला गया और इस क्रम में पहली जनभागीदारी 1989 में दिखी जब अशोक सिंघल ने राम मंदिर के पहली ईंट लेकर निकले थे. उन्होंने राम मंदिर को जनांदोलन का हिस्सा बना दिया गया था. जब अक्टूबर 1990 में कारसेवा करने की घोषणा की गई थी. तब अशोक सिंघल भेष बदल कर अयोध्या पहुँचे थे. 1990 में जब कारसेवकों पर गोलियां चलाई गई थी. उसमें अशोक सिंघल भी बुरी तरह घायल हुए थे.

कोठारी बंधुओ ने दिया सर्वोच्च बलिदान

इस आंदोलन में दूसरा नाम कोठारी बंधुओ का है. राम मंदिर आंदोलन में कोठारी बंधु अप्रतिम और सर्वोच्च बलिदान से सदा-सदा के लिए अमर हो गए. वर्ष 1990 में कोलकाता निवासी सगे भाई 22 वर्षीय राम कोठारी व 20 साल के शरद कोठारी ने भागीदारी का निर्णय लिया था. राम नाम में रमे दोनों भाइयों ने अयोध्या आने का निर्णय लिया और विवादित ढांचे पर सबसे पहले 30 अक्टूबर को भगवा ध्वज फहराया. दो नवंबर 1990 को हुए गोलीकांड में दोनों भाई बलिदान हो गए. उनकी बहन पूर्णिमा कोठारी कहती हैं कि राम मंदिर का निर्माण मेरे दोनों भाइयों को सबसे बड़ी श्रद्धांजलि है.

इन लोगों का भी रहा याेगदान

इस क्रम में तीसरा नाम भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी का आता है. इन्होंने 1990 में सोमनाथ से अयोध्या तक रथयात्रा निकाला था. इस यात्रा ने राम मंदिर को पूरे देश में जनांदोलन बना दिया था. आडवाणी को इस यात्रा के दौरान ही बिहार में गिरफ्तार कर लिया गया था. 1992 में जब कारसेवा किया गया तो उस दौरान एक नाम खूब चर्चा में आया. वो नाम है लोकेंद्र सिंह का. लोकेंद्र सिंह 1992 में मात्र 9 साल के थे. लोकेंद्र उस वक़्त कारसेवा करने के लिए राजस्थान से अयोध्या पहुंचे थे.

साध्वी ऋतंभरा को जाना पड़ा था जेल

राम मंदिर के निर्माण के पीछे हज़ारों रामभक्तों का योगदान रहा.. इस आंदोलन में ऐसे कई लोग रहे जिनका लोग नाम तक नहीं जानते हैं. लेकिन एक नाम पर चर्चा ना हो तो शायद ये आंदोलन अधूरा रह जाता है। वो नाम है साध्वी ऋतंभरा. राम मंदिर आंदोलन के नाम पर उन्हें महीनों जेल में रहना पड़ा. कई आपराधिक मामले दर्ज हुआ. प्रशासन के द्वारा खूब प्रताड़ित किया गया. 1990 के दौर में साध्वी ऋतंभरा की भाषणों की चर्चा खूब हुई.