राम मंदिर का ताला राजीव गाँधी ने खुलवाया, कमलनाथ के दावे में कितनी सच्चाई?

राम मंदिर का ताला राजीव गाँधी ने खुलवाया, कमलनाथ के दावे में कितनी सच्चाई?

कलयुग भले ही भगवान श्री राम के नाम के बिना चल जाए लेकिन राजनीति राम के बिना चलना असंभव सा हो गया है. एक ओर देश 22 जनवरी की प्रतिक्षा कर रहा है. जब राम मंदिर में रामलला का प्राणप्रष्टिठा होना है. तो वहीं दूसरी ओर राम मंदिर के निर्माण का श्रेय लेने की होड़ राजनेताओं में लगी हुई है.

चुनावी राज्य मध्य प्रदेश में राम मंदिर का मुद्दा उठ गया है. मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने राम मंदिर निर्माण का श्रेय पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी को दिया है. दरअसल, कमलनाथ ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा कि राजीव गाँधी ने 1986 में राम मंदिर का ताला खुलवाया था.

क्या कमलनाथ के द्वारा दिया गया बयान सच है या फिर आधा सच है. आज हम आपको एक फरवरी 1986 की उस ऐतिहासिक घटना के बारे में बताएंगे. जब आस्था और आर्दश के सबसे बड़े प्रतिक भगवान राम के दरवाजे पर 37 सालों से लटके ताले को खोल दिया गया था.

1949 में लगा ताला 1986 से खोला गया

भगवान राम के जन्मस्थान का विवाद करीब 600 सालों तक चलता रहा. आजादी के बाद पहली बार 1949 में जब विवादित स्थल पर मूर्तियां रखी गई तो विवाद बढ़ने के डर से उस जगह को ताला से बंद कर दिया गया. हांलाकि, यह किसके आदेश से किया गया था. यह आज तक पता नहीं चला. कई सालों तक मंदिर को बंद रखा गया

लेकिन साल 1985 में उमेश पांडे नाम के स्थानीय व्यक्ति के द्वारा अदालत में याचिका दायर की गई. हालांकि कुछ टेकनिक्ल कारणों के वजह से याचिका को खारिज कर दिया गया. लेकिन एक फरवरी 1986 को जिला जज ने सुनवाई करते हुए ताला खोलने का आदेश सुना दिया. महज 40 घंटों में ही आदेश का पालन हुआ और मंदिर पर लटके ताले को खोल दिया गया.

40 घंटों के अंदर खुलवाए गए ताले

इन सब घटनाओं में राजीव गाँधी का कोई भी रोल नहीं दिखा तो आखिर उन्हें श्रेय क्यों दिया गया. तो इसके मुख्य रुप से दो कारण है. ताला खुलने के समय प्रदेश में वीर बहादुर के नेतृत्व में और देश में राजीव गाँधी के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार चल रही थी. आदेश आने के 40 घंटों के अंदर ही तालों को खुलवा दिया गया था. इसके साथ ही इस पूरे कार्यक्रम को दुरदर्शन पर लाइव चलाया गया था.

इन घटनाओं से यह अंदाजा लगाया गया कि सब कुछ पहले से ही तय था. हांलाकि, इसका एक पक्ष और निकल कर सामने आया. वो यह था कि शाहा बानो के पक्ष में दिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के बाद हिंदु समुदाय राजीव गाँधी से गुस्से में थी.

इसी कारण राजीव गाँधी ने ताला खुलवाने का फैसला लिय़ा था. साथ ही उसका देश भर में प्रसारण भी करवाया था. इन आशंकाओं और बयानों के इतर एक और भी पक्ष है. और वो पक्ष है प्रधानमंत्री राजीव गाँधी के स्कूल में जूनियर और प्रधानमंत्री कार्यालय में संयुक्त सचिव के पद पर विराजित वजाहत हबीबुल्लाह का.

उन्होंने इस पूरे प्रकरण के बारे में कहा था कि बाबरी मस्जिद का ताला राजीव गाँधी के कहने पर खुलवाए जाने और इसका इस्तेमाल शाहा बानो प्रकरण बनाम राम मंदिर करने की बात सरासर झूठ है. उन्होंने आगे कहा कि सच तो यह है कि पूर्व पीएम को ताला खुलने की घटना के बारे में कुछ पता ही नहीं था. साथ ही वजाहत ने कहा कि अरुण नेहरु को मंत्री पद से ड्रॉप किए जाने की वजह भी यही थी.